'इस वजह से मैंने शुरू किया गरीबों को हर रोज़ खाना खिलाने का काम'

गूगल पर सर्च के दौरान भुखमरी से जुड़ी एक रिपोर्ट जब लखनऊ के युवा निलय अग्रवाल ने पढ़ी तो समाज को लेकर उनकी सोच ही बदल गई; उनके जीवन का अब एक ही मकसद है कोई भूखा न सोए।

Manvendra SinghManvendra Singh   1 March 2024 10:19 AM GMT

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'भारत में करीब 20 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं और करीब 7 हज़ार लोग रोज़ देश में भूख से मर जाते हैं।'

भुखमरी से जुड़ी एक रिपोर्ट में लिखी इस लाइन ने लखनऊ के युवा निलय अग्रवाल की नींद उड़ा दी है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में निलय अग्रवाल अब एक संस्था चलाते हैं जो देश के कई शहरों में भूखे लोगों को खाना खिलाने के साथ झोपड़ पट्टी में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने का काम करती है।

निलय अग्रवाल पेशे से एक ऑन्टोलॉजिस्ट (वास्तविकता का अध्ययन करने वाले) हैं, लेकिन हज़ारों बच्चों के लिए ये उनके निलय सर हैं।

निलय कहते हैं, "जब भी शहर में भंडारा होता था, तो मैं सोचता था कितनी सुन्दर बात है, आज शहर में कोई भूखा नहीं सोएगा, लेकिन फिर सोचता था कि कल क्या होगा? सिर्फ जब कोई त्यौहार है या कोई मौका है तभी लोग खिला रहे हैं; लेकिन बाकी के दिन लोग भूखे हैं, तो मैंने सोचा की इस दिशा में मुझे काम करना चाहिए। "


"जब मैंने गूगल पर सर्च किया 'भारत में कितने लोग रोज़ रात को भूखे पेट सोते हैं' तो जो जवाब मिला उसे देख कर मैं चौक गया; भारत में करीब 20 करोड़ लोग खाली पेट सोने पर मजबूर हैं और करीब सात हज़ार लोग रोज़ हमारे देश में भूख से मर जाते हैं; आज रात जब हो जाएगी उसके बाद 7 हज़ार आदमी कल का सवेरा नहीं देखेगा और उसका कारण क्या है? भूख।" विशालाक्षी फाउंडेशन के फाउंडर निलय अग्रवाल ने गाँव पॉडकास्ट में बताया।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में भारत का स्थान 125 देशों में 111वाँ था। UNICEF की रिपोर्ट की माने तो पाँच साल से कम उम्र के 8.8 लाख बच्चे साल 2018 में भूख से मर गए, वहीं हर रोज़ 7000 लोग रोज़ भूख से मर जाते हैं।

शुरू में निलय सबको भोजन देने के अपने इस सपने को टालते रहे, लेकिन फिर कुछ ऐसा घटा जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी। निलय की एक दोस्त की अचानक मौत हो गई, जिनका सपना भी यही था, देश से भुखमरी को हटाना। इस हादसे के बाद निलय ने 'विशालाक्षी फाउंडेशन' की शुरुआत की जो अब तक 15 लाख से ज़्यादा लोगों को खाना खिला पाने में सफल है।

निलय गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "मेरी मित्र के नाम पर मैंने इस संस्थान का नाम रखा, ये मेरी तरफ से मेरी दोस्त को ट्रिब्यूट है उसको और उसके नाम को ज़िंदा रखने की एक कोशिश है।"

निलय आगे कहते हैं, "हम लोग एक हैशटैग का इस्तेमाल करते हैं #IAMVISHALAKSHI मैं भी विशालाक्षी हूँ, तो मैंने एक विशालाक्षी को खो दिया है; लेकिन आज मेरे साथ चार हज़ार वॉलन्टियर्स हैं जो सब खुद को बोलते हैं कि मैं भी विशालाक्षी हूँ; मेरे लिए तो मेरी दोस्त उन सब वॉलन्टियर्स में है जो भी मेरे स्कूल हैं, उनमें जो बच्चे हैं वो मेरे लिए विशालाक्षी है जिनके माध्यम से मैं अपनी दोस्त से रोज़ मिलता हूँ।"

निलय का सपना है वो पूरे देश से भुखमरी को ख़त्म कर दें। वे जानते हैं अकेले इस सपने को पूरा करना संभव नहीं, उन्हें लोगों को अपने साथ जोड़ना होगा। निलय आगे कहते हैं, "मैं छोटी मोटी बात नहीं करूँगा; मुझे मेरे देश से भुखमरी को ख़त्म करना है; देखिए सपना बहुत बड़ा है तो मेरे अकेले से नहीं होगा, इसीलिए मैं लोगों के पास गया और उनसे कहा कि हमसे जुड़िये और लोग जुड़े भी।"

निलय ने अपने इस सफर की शुरुआत अपने शहर लखनऊ से की, जिसे याद करते हुए वो गाँव पॉडकास्ट में कहते हैं, "हमने लखनऊ से शुरुआत की और अपने पहले प्रोजेक्ट में हमने हज़ार लोगों को खाना खिलाया था और आज मुझे ये बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि पिछले चार सालों में हमने 15 लाख से अधिक लोगों को खाना खिलाया है और हमारा यही प्रयास है कि इसको निरंतर आगे ले जाया जाए।"

"और ये सिर्फ लखनऊ में ही नहीं बल्कि दिल्ली, प्रयागराज, वाराणसी, गोरखपुर, कश्मीर, मुंबई जैसे 17 से 18 शहरों में हम लोग इस मुहिम को आगे लेकर गए हैं और कई अच्छे लोग हमसे इस मुहिम में जुड़े भी हैं।" निलय ने आगे कहा।

ऐसे हुई ड्रीम स्कूल की शुरुआत

निलय का भुखमरी मिटाओं अभियान का सफर आगे बढ़ ही रहा था कि इसी बीच उनके सामने एक और समस्या आयी वो थी शिक्षा की। जिन परिवारों और बच्चों को निलय खाना दे रहे थे वहाँ उन्होंने देखा की बच्चों के पास पढ़ाई का कोई साधन नहीं है। शिक्षा नहीं है वो कभी स्कूल नहीं गए और इसकी वजह से उनका भविष्य अंधकार में जा रहा। ये देख कर निलय को लगा कि बच्चों की मदद करनी चाहिए, बस यहीं से ड्रीम स्कूल की शुरुआत हुई।

ड्रीम स्कूल के बारे में निलय बताते हैं, "लॉकडाउन के समय गुड़गांव की एक झुग्गी में मैंने देखा कि बच्चे मिट्टी में खेल रहे हैं; मैंने उनसे पूछा की स्कूल जाते हो तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, फिर मैंने वहाँ पर एक आदमी से यही सवाल पूछा तो उसने बताया कि ये बच्चे स्कूल नहीं जाते, यहाँ तक की हमारे पूरे ख़ानदान में कोई स्कूल नहीं गया।"

"आप सोचिए आज़ादी को 77 वर्ष हो गए; लेकिन गुड़गाँव का एक स्लम है, जहाँ पर एक बच्चा है जो आज तक स्कूल नहीं गया; आज भी शिक्षा क्या होती है उसे नहीं पता, उसे नहीं पता कि की टीचर, पेंसिल, रबर, कटर, क्या होता है, मैंने सोचा जहाँ कोई राशन देने नहीं आ रहा लॉकडाउन में वहाँ इन बच्चों को शिक्षा कौन देने आएगा? तब हिम्मत जुटाई और फैसला किया की मैं इन बच्चों को शिक्षा दूंगा। " वह आगे कहते हैं।

ड्रीम स्कूल के बारे में वो आगे कहते हैं, "अगर स्लम का बच्चा स्कूल नहीं जा सकता तो क्यों न स्कूल को ही स्लम में ले आया जाए; हमने उसी स्लम में 6 कमरे किराए पर लिए उसी को तैयार किया, पढ़ने के लिए ज़रूरी सामान लाए एक टीचर खोजा और वहाँ से शुरुआत हुई ड्रीम स्कूल की; हमने वो स्कूल 52 बच्चों के साथ शुरू किया था और आज हम 18 ड्रीम स्कूल चलाते हैं और उनमें से दो ड्रीम स्कूल झारखण्ड के ग्रामीण इलाकों में है। कश्मीर की वादियों में बड़गाम एक जगह है वहाँ पर भी हमारा स्कूल हैं जहाँ पर कभी कोई नहीं पहुँचा वहाँ पर लेबरों के बच्चे पढ़ते हैं।"

निलय अग्रवाल के ये ड्रीम स्कूल देश के अलग अलग शहरों में चलते हैं। निलय ने अपनी विशालाक्षी की यात्रा और इसमें आयी कई परेशानियों के बारे में गाँव पॉडकास्ट पर खुल कर बात की है।

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