बाबा आमटे ने शुरु की थी सबसे पहली भारत जोड़ो यात्रा

बाबा आमटे के जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू उनका समाज सेवा में योगदान था। उन्होंने विभिन्न समाज क्षेत्रों में काम किया, ख़ासकर वे गरीबों, वंचितों और दिव्यांगों के लिए समर्पित थे।

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चर्चा में आज के इस शो में हम बात कर रहे हैं मुरलीधर देवीदास आमटे यानी "द मॉडर्न गांधी की; जिन्हें बाबा आमटे के नाम से भी जाना जाता है ।

आज हम उनकी ज़िंदगी के ख़ास पहलुओं को जानने की कोशिश करेंगे; जो भारतीय समाज में सेवा की नई परिभाषा हैं।

बाबा आमटे का जन्म 26 दिसंबर 1914 में महाराष्ट्र में हुआ था। उनका असली नाम डॉ॰ मुरलीधर देवीदास आमटे था। लॉ की पढ़ाई के बाद वो एक वकील बने, लेकिन जल्द ही उन्हें महसूस हुआ कि उनके जीवन का मकसद वकालत नहीं बल्कि समाज सेवा है।

उन्होंने वकालत छोड़ दी और वर्धा में सेवाग्राम आश्रम में महात्मा गांधी के साथ काम करना शुरू कर दिया।

उन्होंने महात्मा गांधी के आदर्शों का पालन किया और उनकी बातों को अपनाया। बाबा आमटे ने सामाजिक समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने में अपनी ज़िंदगी बिता दी और इसलिए उन्हें "आधुनिक गांधी" भी कहा जाता है।

उन्होंने महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर गरीबों की मदद के लिए गाँवों में एंबुलेंस सेवा की शुरुआत की थी।

उन्होंने महाराष्ट्र के आनंदवन में महारोगी सेवा समिति की शुरुआत की, जहाँ वे लेप्रोसी, दिव्यांग और समाज के दूसरे वंचित लोगों की देखभाल करते थे।

बाबा आमटे ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने वृक्षारोपण अभियान चलाए और नर्मदा बचाओ आंदोलन में भी हिस्सा लिया। वह ज़िंदगी भर गरीब आदिवासी समुदायों के हितों के लिए भी लड़ते रहे।

गाँधी वादी समाजसेवी बाबा आम्टे ने भारत जोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, जिसका सिर्फ एक ही मकसद था भारत के लोगों के बीच शांति और एकता को बढ़ावा देना।

1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद देश में सिख बेहद ही गुस्से में थे, हर जगह डर और दहशत का माहौल था और इसी को ख़त्म करने के लिए बाबा आम्टे ने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत की। यात्रा दो चरणों में शुरू की गई थी, पहले चरण में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और दूसरे चरण में अरुणाचल प्रदेश से लेकर गुजरात तक। यात्रा में ज़्यादातर लोगों की उम्र 35 साल से कम थी। कहा जाता है कि यात्रा का जोश इतना था की दिव्यांगों ने भी बढ़ चढ़ कर हिंसा लिया था।

बाबा आमटे को उनके प्रयासों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्म विभूषण और गांधी शांति पुरस्कार शामिल हैं। लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार उन लोगों की खुशी थी जिनकी उन्होंने मदद की।

बाबा आमटे के जीवन के आखिरी साल भी समाज सेवा में ही गुजरे और 93 साल की उम्र में 09 फरवरी 2008 को वो दुनिया को अलविदा कह गए।

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