ज्योतिबा फुले; जिन्होंने छुआछूत के ख़िलाफ़ और महिलाओं की शिक्षा के लिए अपना जीवन झोक दिया

'चर्चा में आज' गाँव रेडियो का साप्तहिक पॉडकास्ट शो है, इस एपिसोड में, हम बात कर रहे हैं ज्योतिबा फुले की।

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अगर आप एक महिला हैं और पढ़ी लिखी हैं तो आपको इस समाज सेवक का आभार ज़रूर व्यक्त करना चाहिए, जिन्होंने अपनी जान पर खेल कर,समाज से लड़ कर और अपने परिवार से निकाल दिए जाने के बाद भी लड़कियों की पढ़ाई और जाति आधारित भेदभाव को मिटाने के लिए ताऊम्र काम किया।

जी हाँ, 'चर्चा में आज' पॉडकास्ट के इस एपिसोड में, हम बात कर रहे हैं ज्योतिबा फुले की।

ज्योतिबा फुले, महाराष्ट्र में पहले ऐसे शख़्स थे जिन्होंने छुआछूत के ख़िलाफ़ और महिलाओं की शिक्षा के लिए अपना पूरा जीवन झोक दिया।

इस महान विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी के जीवन पर अब तक काफी कुछ लिखा और बोला जा चुका है, लेकिन उनके काम की चर्चा जितनी भी बार की जाए कम ही लगती है।

ज्योतिबा का जन्म महाराष्ट्र के पुणे में हुआ। उनका परिवार कई दशकों से फूलों के गज़रे बेचने का काम करता था, इसीलिए माली के काम में लगे ये लोग फुले के नाम से जाने जातें थे।

ज्योतिबा को पढ़ने का बहुत शौक था, उनकी शुरू की पढाई मराठी भाषा में हुई लेकिन समाज द्वारा पिता को समझाया गया की अगर लड़का पढ़ लिख गया तो किसी काम का नहीं रहेगा और फिर क्या था पिता ने स्कूल से नाम कटवा दिया; लेकिन समाज ज्योतिबा को ज़्यादा दिनों तक पढाई से दूर नहीं रख पाया और 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने सातवीं कक्षा की पढाई अंग्रेजी में पूरी की ।

ज्योतिबा का, किताबों से गहरा जुड़ाव था, वो किताबों की मदद से संत महात्माओं की बातों को जानते और समझते थे; उन्हें लगा की भगवान की नज़र में जब सब बराबर है तो समाज में भेद भाव क्यों ?

महिलाओं की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1854 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था।

आपको लगेगा की एक स्कूल ही तो हैं इसमें कौन सी बड़ी बात है, लेकिन ये बड़ी बात थी; क्योंकि ये घटना समाज का आइना बदलने वाली थी।

ये घटना 79 साल पुरानी है, जब लड़कियों को पढ़ाने की बात तो दूर, इस बारें में कोई सोचता तक नहीं था। बाल विवाह चरम पर था यहाँ तक कि ज्योतिबा की शादी भी 13 साल की उम्र में कर दी गई थी और उनकी पत्नी सावत्री बाई की उम्र महज़ नौ साल थी। उस समय का समाज कैसा था, इसका अंदाज़ा लगाने के लिए घटनाएँ काफ़ी हैं ।

क्या आप ये मान सकते हैं कि किसी के स्कूल खोलने से उसकी जान को ख़तरा हो सकता है ? लेकिन ऐसा हुआ, ज्योतिबा के साथ।

स्कूल तो खुल गया, लेकिन पढ़ाने के लिए महिला टीचर न मिलने के कारण ज्योतिबा ने अपनी पत्नी सावत्री बाई को इस काबिल बनाया की वो बच्चों को पढ़ा सकें, और वो बन गईं भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली महिला अध्यापिका।

उच्च वर्ग के लोगों ने शुरुआत से ही उनके काम में बाधा डालने की कोशिश की, लेकिन जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया; इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका ज़रूर पर जल्द ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल और खोल दिए।

जिन बच्चों को समाज ने अछूत कहकर ठुकरा दिया उन्हीं बच्चों को ज्योतिबा ने अपने घर में शरण दी , उन्हें पाला, अपने साथ खाना खिलाया और अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी जहाँ से वो जब चाहें पानी पी सकते थे।

ये सब देख कर उनकी अपनी जाती के लोगों ने उनका और उनकी पत्नी का बहिष्कार कर दिया। ज्योतिबा की समाज सेवा की ख़बरें अब सुर्खिया बन रही थी और उनका बढ़ता यश देख कर उनके विरोधियों ने उन्हें मारने की योजना बनातें हुए दो हत्यारे तैयार करवाए , लेकिन वो ज्योतिबा को मारने की बजाये उनके शिष्य बन गए।

ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार शुरू कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से मान्यता भी मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे।

अगर आप उनके विचारों को पढ़ना चाहतें है तो उनकी लिखी हुई क़िताब गुलामगिरी पढ़ सकतें हैं।

अफ़सोस 28 नवंबर 1890 को 63 साल की उम्र में महान् समाज सेवी ज्योतिबा फुले का देहांत हो गया ।

ऐसे समाज सेवक की पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन।

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