महर्षि अरविंद: देश की आध्यात्मिक क्रांति की पहली चिंगारी

'चर्चा में आज' गाँव रेडियो का साप्तहिक पॉडकास्ट शो है, आज के इस ख़ास कार्यक्रम में सुनिए महर्षि अरविंद की कहानी

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महर्षि अरविंद देश की आध्यात्मिक क्रांति की पहली चिंगारी थे। उनका जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था और 5 दिसम्बर 1950 को उनका पुडुचेरी में निधन हो गया। अरविंद के पिता के डी कृष्णघन एक डॉक्टर थे। माँ स्वर्णलता देवी और पत्नी का नाम मृणालिनी था। जाने माने बंगाली साहित्यकार राजनारायण बोस अरविंद के नाना थे।

वैसे तो अरविंद ने अपनी स्कूली शिक्षा दार्जिलिंग में पूरी की थी, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें उनके भाई के साथ विदेश भेज दिया गया था। उन्होंने इंग्लैंड में सेंट पॉल से पढ़ाई के बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में शिक्षा ली।

अपने पिता की ख़्वाहिश पूरी करने के लिए उन्होंने कैम्ब्रिज में रहते हुए आईसीएस की परीक्षा भी दी और 1890 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा पास किया , लेकिन नियति में तो कुछ और लिखा था; उन्होंने सरकारी नौकरी में जाने का ख़्याल छोड़ दिया। भारत लौटने के बाद 1902 में अहमदाबाद में, कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान, उनकी मुलाक़ात बाल गंगाधर तिलक से हुई और उनसे प्रभावित होकर वे भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े।

1906 में 'वंदे मातरम 'साप्ताहिक के सहसंपादक के रूप में भी, काम शुरू किया और सरकार की जनता विरोधी नीतियों के ख़िलाफ खूब लिखा, जिसके बाद उनपर न सिर्फ मुकदमे दर्ज़ हुए बल्कि जेल भी गए। आज़ादी की लड़ाई में कई बार वे जेल गए। कहते हैं जेल की कोठरी में अरविंद का ज़्यादा समय साधना और तप में गुजरता था।

ऐसा भी कहा जाता है कि जब अरविंद अलीपुर जेल में थे तो उन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने दर्शन दिए थे। इस घटना के बाद वे क्रन्तिकारी आंदोलन छोड़कर योग और अध्यात्म में रम गए।

साल 1910 में अरविंद पुडुचेरी चले गए और वहीँ योग सिद्धि की और आज के वैज्ञानिकों को बताया कि दुनिया को चलाने के लिए एक और जगत भी है। वहीँ उन्होंने श्री अरविंद ऑरोविले की स्थापना की। वे एक महान योगी और दार्शनिक थे। उन्होंने वेद उपनिषद पर न सिर्फ टीका लिखी, योग साधना पर मौलिक ग्रन्थ भी लिखें।

अरविंद ने डार्विन जैसे जीव वैज्ञानिकों के सिद्धांत से आगे, चेतना के विकास की एक कहानी लिखी और समझाया कि किस तरह धरती पर जीवन का विकास हुआ। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के 'विकासवादी सिद्धांत' की यूरोप में भी खूब चर्चा हुई। महर्षि अरविंद की तमाम किताबें और साहित्य विदेशी लाइब्रेरी में भी पढ़ने को मिल जाएंगी, उनकी अनूठी कृति लाइफ डिवाइन (दिव्य जीवन) विश्व की महान कृतियों में गिनी जाती है।

महर्षि अरविंद का आश्रम पूर्वी पुडुचेरी में 1926 से योग विज्ञान में दिलचस्पी रखने वालों के लिए साधना का बड़ा केंद्र है। ये आश्रम तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से 160 किलोमीटर दूर दक्षिण में है।

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