इस एक्टर ने प्रधान प्रतिनिधि बनकर बदल दी अपने गाँव की तस्वीर

कोरोना महामारी में देश ही नहीं पूरी दुनिया ठहर गयी थी; लेकिन इसी महामारी ने मुंबई में रहने वाले एक अभिनेता के जीवन की दिशा ही बदल दी और वो बन गए अपने गाँव के प्रधान प्रतिनिधि और बस फिर क्या था आज उनका गाँव पूरी तरह से बदल गया है। आज उनकी पंचायत को देखने के लिए दूसरे ग्राम प्रधान आते हैं।

Manvendra SinghManvendra Singh   13 March 2024 1:34 PM GMT

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यह ग्राम पंचायत उत्तर प्रदेश की दूसरी ग्राम पंचायतों की तरह ही है; लेकिन कुछ चीजें हैं जो इन्हें ख़ास बनाती हैं। वो है यहाँ पर लगे सीसीटीवी कैमरे, आईटी सेंटर और सरकारी स्कूल में चलने वाली स्मार्ट क्लास।

इसका श्रेय जाता है यहाँ के प्रधान प्रतिनिधि अजय सिंह को; लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था।

राजधानी लखनऊ से 90 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले में है बिछिया ब्लॉक की दुआ ग्राम पंचायत। जहाँ के प्रधान प्रतिनिधि हैं अजय सिंह।

आखिर अजय सिंह को ग्राम पंचायत में बदलाव का आईडिया कहाँ से आया के सवाल पर गाँव कनेक्शन से बताते हैं, " सभी के मन में होता है कि जो हमारी मातृभूमि है उसके लिए हम कुछ करें; इससे हमारे गाँव, परिवार और माता-पिता का नाम हो।"

वो आगे कहते हैं, "बचपन से यही इच्छा मन में थी, मुझे लगता था किसी ऐसी फील्ड में जाऊँ, जहाँ से सभी का नाम हो, बस इसी लिए साल 2008 में मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में चला गया।"


कई साल गाँव से दूर रहने के बाद अजय को गाँव से जुड़ने से मौका मिला कोविड महामारी के दौरान। अजय कहते हैं, "कोरोना में तो पूरा देश ही क्या पूरी दुनिया ही लॉक डाउन में फँसी हुई थी; जब लॉकडाउन में वापस आया तो गाँव से जुड़ने का मुझे मौका मिला,लॉकडाउन तो था ही लेकिन हमें लोगों की मदद भी करनी थी; जो लोग कोरोना से परेशान थे, चाहे आर्थिक हो या स्वस्थ्य से सम्बंधित हो तो इसी तरह मेरा गाँव भी था।"

अजय ने अपने प्रयासों से और जागरूकता के माध्यम से अपने गाँव का सफल नेतृत्व किया और उसका परिणाम ये हुआ कि उनके गाँव में कोरोना महामारी के कारण एक भी जान नहीं गई। अपने मुंबई से दुआ गाँव के सफर के बारे में अजय कहते हैं, "मुंबई में सब कुछ था सारी चीज़ें अच्छी चल रही थी; मुझे काम भी मिल रहा था, लेकिन कोविड सभी के लिए एक समय लाया था कि किसका भविष्य किधर जाएगा किसी को कुछ पता नहीं था, ऐसा लग रहा था सब कुछ ख़त्म हो जाएगा।"

आगे कहते हैं, "उस समय सबको अपना गाँव ही याद आता है कि यार चलो अपनों के पास चलते हैं, क्योंकि मेरे माता पिता गाँव में ही रहते हैं; जब मैं कोविड में आया तो सबसे पहले मैंने पूरे गाँव का सैनिटाइजेशन कराया, मैं पहुँचा तो मैं भी क्वारंटाइन में रहा और बाहर से जो लोग आ रहे थे, उनको भी रखा।"

"इन सब का रिजल्ट ये रहा की महामारी से हमारे गाँव में एक भी जान नहीं गई। जबकि हमारे बगल की पंचायतों में सुबह पता चलता था कि किसी के पिता की डेथ हो गई शाम को पता चलता था उसके बेटे की भी डेथ हो गई। " अजय ने कहा।

कोविड के बाद अजय ने यहीं रहने का फैसला किया, बस फिर क्या था उसी समय से अजय ने गाँव में बदलाव लाना शुरु कर दिया। अजय को अपने गाँव से काफी लगाव है वो मुस्कुराते हुए कहते हैं, "मेरे गाँव का नाम दुआ है 'दुआ में याद रखना' ये छोटा सा गाँव है, जिला मुख्यालय से लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर हमारा गाँव हैं; इस गाँव की ख़ास बात ये है कि हमारा गाँव तीन विधानसभाओं के बीच बॉर्डर पर है, जिसका हमें लाभ भी मिलता है।"

इस गाँव में खुले में तार नहीं हैं, अच्छी सड़कें हैं। गाँव में एक स्पेस लैब भी है और गाँव में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं। अजय ने प्रधान प्रतिनिधि की ज़िम्मेदारी निभाते हुए गाँव में अवैध रूप से कब्ज़े की ज़मीनों को खाली करवाने का काम भी किया। पंचायत भवन जहाँ लोग अपने जानवरों को बाँधते थे, गोबर और चारा रखते थे उसे साफ कर आईटी सेंटर बना दिया गया है।

अब गाँव में किसी को कोई फार्म भरने के लिए गाँव से बाहर नहीं जाना होता, योजनाओं का लाभ लेने के लिए सारे काम गाँव में हो जाते हैं।

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