बस कंडक्टर शिवाजी गायकवाड़ से सुपर स्टार रजनीकांत बनने की कहानी

'चर्चा में आज' गाँव रेडियो का साप्तहिक पॉडकास्ट शो है, आज के इस ख़ास कार्यक्रम में सुनिए सुपर स्टार रजनीकांत की कहानी

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एक दौर में साउथ सुपरस्टार रजनीकांत को बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के बराबर का कलाकार माना जाता था, हालाँकि खुद अमिताभ उन्हें बेहतरीन अभिनेता बता चुके हैं।

आज भी बात जब महान कलाकारों की होती है तो रजनीकांत का नाम जरूर लिया जाता है।

इस महान कलाकार के खुद के जीवन की कहानी भी पूरी फ़िल्मी है।

दोस्तों, आज इस अभिनेता की बात अगर करें, और शिवाजी राव गायकवाड़ का जिक्र भूल जाए तो कहानी अधूरी सी लगेगी , इसलिए पहले बात उसी शिवाजी राव की।

शिवाजी राव गायकवाड़ एक जमाने में कुली हुआ करते थे, कुछ दिनों बाद जब उनकी किस्मत पलटी, तो बस कंडक्टर की नौकरी मिल गई।

लेकिन उनके काम का तरीका दूसरों से बिल्कुल अलग था। आप कह सकते हैं वो अपनी स्टाइल के कारण स्टार बस कंडक्टर थे।

कहते हैं बस कंडक्टर शिवाजी जिस तेज़ी से टिकट काटते थे वैसा कोई नहीं काट पाता था, टिकट देने और पैसा लेने का उनका अंदाज़ काफी निराला था। बस में बैठे लोग अक्सर बोलते थे, "'तुमको तो फिल्मों में जाना चाहिए।"

यात्री तो उनके मुरीद थे ही, उनके दोस्त और साथ काम करने वाले भी उनके अंदाज़ के दीवाने थे। उनके एक दोस्त राज बहादुर ,जो उसी बस के ड्राइवर थे; वे शिवाजी की स्टाइल से इतने प्रभावित हुए कि अपने दोस्त को एक्टिंग के करियर में उतारने के लिए आर्थिक मदद तक की, और उनकी ख्वाहिश और शिवाजी की मेहनत रंग लाई।

राज बहादुर का दोस्त अपने जुनून और मेहनत के दम पर शिवाजी राव गायकवाड़ से सुपरस्टार रजनीकांत बन गया। वही रजनीकांत जिन्हें अभिनय के क्षेत्र में शानदार काम के लिए साल 2019 के दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया ।

रजनीकांत को जब इस अवार्ड से सम्मानित किया जा रहा था तब शिवाजी ने स्टेज से ही अपने दोस्त राज बहादुर को धन्यवाद दिया।

रजनीकांत का असली नाम शिवाजी राव गायकवाड़ है और उन्हें रजनीकांत का नाम जाने माने फिल्मकार के बालाचंद्र ने दिया था। बालाचंद्र उनकी पहली तमिल फिल्म अपूर्वा रागनगाल के डायरेक्टर भी थे, जो 1975 में रिलीज़ हुई थी।

12 दिसंबर 1950 को बेंगलुरु के एक मराठी परिवार में जन्मे रजनीकांत बहुत संपन्न परिवार से नहीं थे। जीजाबाई और रामोजी राव की चार संतानों में शिवाजी सबसे छोटे थे। महज चार साल की उम्र में ही रजनीकांत ने अपनी माँ को खो दिया था। घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन हालातों को खुद पर कभी हावी नहीं होने दिया।

मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट के दौर में उनकी मुलाक़ात के बालाचंदर से हुई जिसके बाद उन्हें पहली फिल्म मिली, हालाँकि इस फिल्म में उनका बहुत छोटा सा निगेटिव रोल था।

दर्शकों ने उनकी स्टाइल और सजीव अभिनय को खूब पसंद किया। हवा में सिगरेट से कलाबाज़ी की उनकी स्टाइल आज भी कई लोग या कलाकार कॉपी करने की कोशिश करते हैं, लेकिन बस कोशिश ही कर पाते हैं।

साल 1978 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म डॉन की रीमेक बनी और रजनीकांत ने उसमें मुख्य भूमिका निभाई। फिल्म ने कमाल का कारोबार किया और रजनीकांत को पहली बार फिल्म 'मुंदरू मूगम' के लिए तमिलनाडु सरकार की तरफ से साल 1982 में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड दिया गया।

फिल्म 'बाशा' से रजनीकांत सुपरस्टार बने थे, जो साल 1995 में रिलीज हुई थी। इसने बॉक्स ऑफिस के कई रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। वहीं तमिल फिल्मों को इंटरनेशनल स्टेज तक पहुंचाने का श्रेय भी रजनीकांत को ही जाता है।

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