ख़बर का असर: प्यास क्या है इस तस्वीर से समझिए...

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रांची। 29 अप्रैल को दैनिक गाँव कनेक्शन ने ये ख़बर छापी थी कि किस तरह से बोकारो के झगराहीबाद गाँव के लोगों को पीने का पानी तक मयस्सर नहीं है। अपनी प्यास बुझाने के लिए लोग हाईवे से गुज़रने वाले रेत के ट्रकों पर आश्रित हैं। झगराहीबाद गाँव के लोग रेत से लदे ट्रकों से रिसने वाले पानी को जमा करके पीने के इस्तेमाल में लाते हैं। गाँव कनेक्शन दैनिक अख़बार और न्यूज़ वेबसाइट gaonconnection.com पर ये ख़बर लिखे जाने के बाद सामाजिक संस्थान 'समाधान' ने गाँव के लोगों के लिए पानी के टैंकरों की व्यवस्था की, जिससे पूरी तरह से ना सही लेकिन झगराहीबाद गाँव के लोगों की हालत में थोड़ा सुधार ज़रूर आएगा। 'समाधान' की ओर से पानी के दो टैंकरों की व्यवस्था की गई है जो सुबह और शाम गाँव के लोगों को पानी की सप्लाई करेगा।

भीषण जल संकट की खबर पर समाधान के मुख्य प्रशासक दिनेश कुमार ने बताया की गाँव कनेक्शन सिर्फ़ एक अखबार ही नहीं बल्कि वो अपने सामाजिक दायित्वों को भी पूरा करता है।

दैनिक गाँव कनेक्शन ने क्या ख़बर छापी थी

प्यास क्या है इस तस्वीर से समझिए...(28/04/16)

रांची। झारखंड के बोकारो ज़िले से आई ये तस्वीर बदलता इंडिया और शाइनिंग इंडिया जैसे जुमलों के मुंह पर बहुत बड़ा तमाचा है। झारखंड को अलग राज्य का दर्जा मिले 16 साल हो चुके हैं लेकिन आज भी झारखंड के कई ज़िलों में लोगों को पीने का साफ़ पानी मयस्सर नहीं है।

ये तस्वीर बोकारो के झगराहीबाद गाँव की है। ये गाँव चंद्रपुरा-धनबाद रूट पर है। राजधानी रांची से इस गाँव की दूरी महज़ 180 किलोमीटर है। आज भी यहां के लोग पीने के पानी के लिए इस रूट पर चलने वाले रेत से लदे ट्रकों से बूंद-बूंद गिरते पानी पर ही निर्भर हैं। ये पानी बेहद गंदा है बावजूद इसके झगराहीबाद के लोग इस पानी को पीने के लिए मजबूर हैं।

इस पानी में तमाम तरह की अशुद्धियां हैं जिसे पीने के बाद यहां के लोग पेट की गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकते हैं लेकिन उन्हें इस बात की कतई फिक्र नहीं। प्यास बुझाने का ज़रिया सिर्फ़ रेत से भरे ये ट्रकभर हैं। अगर दिन में इन ट्रकों पर लदी रेत से रिसता पानी नहीं जुटाया तो अगले दिन तक पीने के पानी के लिए तरसना पड़ेगा।

रिपोर्टर - अंबाती रोहित

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