केंद्र की मॉनसेंटो पर दबिश 'मेक इन इंडिया' को करेगी कमजोर?
भास्कर त्रिपाठी 10 March 2016 5:30 AM GMT
लखनऊ। बीटी कपास का बीज बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी मॉनसेंटो की देश छोड़कर जाने की धमकी को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करते हुए सरकार ने बीटी कपास के दामों और प्रति पैकेट रॉयल्टी को घटा दिया है।
जानकारों का मानना है कि रॉयल्टी घटाने के फैसले से केंद्र अपनी ही 'मेक इन इंडिया' योजना को ठेस पहुंचाएगा, क्योंकि बाहरी कंपनिया इस फैसले को देखकर भारत में शोध करने से कतराना शुरू कर सकती हैं।
सरकार ने बीटी कॉटन के 450 ग्राम के पैकेट का दाम 800 रुपए तय कर दिया है जो कि पहले 1000 रुपए तक था। साथ ही एक कड़े फैसले में सरकार ने बीटी कपास की प्रति पैकेट रॉयल्टी को 74 प्रतिशत घटाते हुए 43 रुपए निर्धारित कर दिया है, जो कि पहले 163 रुपए थी। ये मूल्य जून से शुरू होने वाली अगली खरीफ फसल से लागू होंगे।
"सरकार अगर किसानों के लिए बीज सस्ता करना चाहती थी तो वह बस बीज का मूल्य 800 रुपए कर देती, लेकिन रॉयल्टी घटाने का क्या मतलब है, इससे साफ ज़ाहिर होता है कि सरकार देशी बीज कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए मनमानी कर रही है," शमनद बशीर ने गाँव कनेक्शन को बताया। बशीर भारतीय पेटेंट एक्ट के जानेमाने विशेषज्ञ हैं।
भारत में उगाया जाने वाला 90 प्रतिशत कपास बीटी कपास ही है जिसकी शत प्रतिशत सप्लाई मॉन्सेंटो कंपनी करती है।
"हम अभी सरकार की इस सूचना के तथ्यों को पूरी तरह से समझने की कोशिश कर रहे हैँ, उसके बाद ही कुछ कह सकेंगे," मॉनसेंटो के एक प्रवक्ता ने गाँव कनेक्शन से कहा।
दरअसल मॉनसेंटो दरों के घटाए जाने का विरोध इसलिए कर रही है क्योंकि बीटी कपास बीज इसी कंपनी ने अपने संसाधनों से कई सालों के शोध के बाद विकसित किया है। अब यदि कोई अन्य बीज कंपनी इस बीज को बनाने की तकनीक मॉन्सेंटो से लेती है तो उसे रॉयल्टी भुगतनी पड़ती है।
"यह फैसला अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के बारे में एक बुरा संदेश भेजता है। हां सरकार के पास पेटेंट को रेग्युलेट करने की शक्ति है लेकिन ऐसा करने का ठोस कारण होना चाहिए। प्रक्रिया भी खुली और पारदर्शी हो" बशीर ने कहा।
हालांकि केंद्र सरकार के इस फैसले से देश के 80 लाख कपास किसानों का फायदा होगा, क्योंकि उन्हें बीज अब सस्ते दामों पर मिलेगा।
भारत में मोनसेंटो महेको बायोटेक लि. (महेको सीड्स और मॉन्सेंटो का संयुक्त उद्यम) लगभग 50 बीज उत्पादक देशी कंपनियों को अपनी पेटेंट 'बोलगार्ड-द्वितीय' कपास की किस्म बनाने की तकनीक रॉयल्टी लेकर देती है।
देशी कंपनियां इससे बेहद पीड़ित हैं क्योंकि उन्होंने सबसे पहले जीएम टेकनोलॉजी को लेने के लिए उन्हें मोनसेंटो को 50 लाख रुपये की एक मुश्त राशि देनी पड़ती है और फिर हर पैकट पर अलग से रॉयल्टी का भी भुगतान करना पड़ता है।
देशी बीज उद्योगों का संगठन, राष्ट्रीय बीज संघ (एनएसएआई) इस मामले में केंद्र सरकार से लगातार कड़ा रुख अपनाने की अपील कर रहा था। इस पर कार्रवाई करते हुए केंद्र सरकार ने पिछले साल ही स्पष्ट कर दिया कि केंद्र कीमतों को तय करेगा।
केंद्र सरकार ने कीमत और रॉयल्टी को तय करने के लिए एक जांच समिति बनाई। समिति ने सिफारिश दी थी कि मोनसेंटो को प्रति बीज के पैकेट पर 49 रुपये रॉयल्टी मिलनी चाहिए। अब एनएसएआई ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है।
मोनसेंटों को इस सरकारी फैसले से कितना नुकसान होगा इसका तो कंपनी ने कोई आंकड़ा नहीं जारी किया है, लेकिन एनएसएआई के मुताबिक मोनसेंटो ने भारत में केवल रॉयल्टी के ज़रिए वर्ष 2005-06 से 2014-15 के बीच 4,479 करोड़ रुपए कमाए हैं।
भारत ने वर्ष 2002 में देश में बीटी कपास के उत्पादन को मान्यता दी थी। इस बीज की सफलता की बात करें तो पिछले 15 सालों में भारत विश्व के सबसे बड़े कपास उत्पादकों में शुमार हो चुका है। वर्ष 2001 में 20 लाख टन कपास उगाने वाला भारत आज लगभग 65 लाख टन सालाना कपास उगाता है।
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