मछली के कारोबार में करनी है तगड़ी कमाई तो इनसे सीखिए सफलता के गुर

मेहनत और सही योजना के दम पर देश के कई राज्यों में छोटे मछुआरे या किसान अब अपने बड़े सपने साकार कर रहे हैं, जो मिसाल है। अंडमान निकोबार, आंध्र प्रदेश, असम और अरुणाचल प्रदेश में न सिर्फ ये अपना परिवार चला रहे हैं बल्कि दूसरे छोटे मछली पालकों या किसानों को रोज़गार भी दे रहे हैं।

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मछली के कारोबार में करनी है तगड़ी कमाई तो इनसे सीखिए सफलता के गुर

दक्षिणी अंडमान की दिलेश्वरी को अब भी कई बार यकीन नहीं होता कि वे अब सिर्फ मछुआरी या किसान नहीं हैं, एक सफल कारोबारी भी हैं।

50 साल की दिलेश्वरी दक्षिण अंडमान में मछली पकड़ने वाली नाव की मालकिन हैं। उनकी नावें मत्स्य पालन विभाग (डीओएफ) अंडमान और निकोबार प्रशासन के साथ रजिस्टर्ड हैं।

दिलेश्वरी ने गाँव कनेक्शन से कहा, "शुरू में मुझे ज़्यादा जानकारी नहीं थी, जब काम शुरू किया तो बाज़ार में खड़ा होना भी आसान नहीं था; तब मैंने सोचा जब तक अपने इन काम को समय के हिसाब से नहीं करुँगी अच्छा मुनाफा नहीं होगा और फिर सरकार से मदद के बाद बल मिला, अब अच्छा काम चल रहा है।"


बाज़ार में तेज़ी और कम संसाधनों के कारण, वह कई बार अपनी पूरी फसल नही बेच पाती थीं। इस समस्या को हल करने के लिए, उन्होंने भंडारण और बिक्री के लिए एक मछली कियोस्क सुविधा स्थापित करने और स्वरोजगार शुरू करने का फैसला किया। डीओएफए एंड एन प्रशासन ने इसके लिए एक्वेरियम और सजावटी मछली के कियोस्क के लिए पीएम एमएसवाई योजना के तहत आर्थिक सहायता देने में उनकी मदद की।

उन्होंने बधु बस्ती, पोर्ट ब्लेयर में 35 लाख की की मदद से कियोस्क लगाया। इसके लिए 6 लाख प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएवाई) के तहत अनुदान के रूप में उन्होंने लिया और 29 लाख खुद के पास से लगाया।

नया फिश स्टॉल खोलने से पहले दिलेश्वरी की औसत मासिक आय सिर्फ 15,000 थी, अपने कारोबार को नया रूप देने के बाद अब उनकी आय 600 फीसदी बढ़कर करीब 1 लाख हो गई। इस सुविधा केंद्र को शुरू से करने से खुद उनके अलावा 5 स्थानीय युवाओं को भी रोज़गार के अवसर मिले हैं।

वे कहती हैं, "काम अगर ठीक चलता रहा तो कुछ और लोगों को हमें साथ रखना पड़ेगा।"

नयी तकनीक और बड़ी मदद

राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड की मदद से देश के कई राज्यों में छोटे किसान अब बड़ा सपना साकार कर पा रहे हैं, जो मत्स्य पालन विभाग के जरिए तमाम योजनाओं का लाभ ले रहे हैं।

दक्षिण अंडमान के ही पोटैया अपने मछली कारोबार को नया रूप देकर दूसरों के लिए मिसाल बन गए हैं।

प्रेम नगर में मछुआरा परिवार से ताल्लुक रखने वाले पोटैया कभी 30 हज़ार से ज़्यादा नहीं कमा पाते थे, लेकिन कुछ नया करने की धुन में उन्हें नई राह मिल गई।

"एक दिन दोस्तों को देख कर सोचा जब वे इतना कुछ कर रहे हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकता हूँ; फिर खारे पानी की जलकृषि तकनीक को अपनाया और इससे जुड़ी जानकारी के लिए मत्स्यपालन विभाग अंडमान और निकोबार प्रशासन से संपर्क किया, जल्दी ही हमारे इस प्रोजेक्ट के लिए मदद की मंज़ूरी मिल गई।" पोटैया ने कहा।


"खारे पानी की जलकृषि के लिए नए तालाब बनाये जाते हैं, इसकी कृषि के लिए 1 हेक्टेयर के क्षेत्र में एक शेड और एक तालाब मैंने बनवाया जिसमें कुल करीब 30 लाख खर्च हुए; इसमें अनुदान के रूप में 1.63 लाख मिले बाकी रकम खुद ही ख़र्च किया।" पोटैया ने आगे कहा।

इस प्रोजेक्ट में कृषि तालाबों में अच्छे पानी के इंतजाम के अलावा बेहतर गुणवत्ता वाले बीज और समय पर खिलाने जैसी व्यवस्था की जाती है।

वर्तमान में उनके पास एक तालाब है जो 7 टन की सालाना उत्पादन क्षमता के साथ चल रहा है। डीओएफ अंडमान प्रशासन से सहयोग के बाद पोटैया की मासिक आय दोगुनी होकर अब करीब 65,000 हो गई है, वे अब लगभग 8 लाख का औसत वार्षिक शुद्ध लाभ कमाते हैं। ख़ास बात ये है उनके इस प्रोजेक्ट में तीन लोगों को रोज़गार भी मिला है।

छोटे किसान कैसे नई नई योजनाओं से अपने कारोबार की दशा दिशा बदल रहे हैं इसका एक उदाहरण आंध्र प्रदेश के जी. भूपेश रेड्डी भी हैं।


नेल्लोर जिले के निदिमुसली गाँव में भावी एक्वा एंड फिश फार्मर प्रोड्सर कंपनी चालने वाले रेड्डी आज 900 से ज़्यादा सदस्यों के साथ झींगा मछली के कारोबार से जुड़े हैं। जो छोटे बड़े मछुआरों से मछली लेकर उनका निर्यात भी करते हैं।

"अच्छी उपज और मार्जिन चाहिए तो आपको अपने कारोबार में समय समय पर बदलाव और मेहनत भी करनी होती है मैंने वही किया है, जिससे कई छोटे मछुआरों को भी काम मिला है। " जी.भूपेश रेड्डी ने कहा।

रेड्डी ने नाबार्ड से शुरू में 4.42 लाख की मदद ली बाद में समय समय पर छोटे बैंकों से सहयोग लेकर कारोबार को नया रूप दिया।

उनके इस काम में आंध्र प्रदेश के मत्स्य पालन विभाग ने भी अंतर्देशीय मछली पालन और मछलियों के लिए ऑक्सीजन की नई तकनीक का इंतजाम करने के लिए आर्थिक मदद की।

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में राज्य मंत्री डॉ एल मुरुगन के मुताबिक मत्स्यपालन के क्षेत्र में ख़ासकर भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण के क्षेत्र में उद्यमों की वृद्धि हुई है। अवंतीपुरा से नेल्लोर तक, शिलांग से उड्डपी तक देश के युवा पुरुष और महिला मत्स्य उद्यमियों में जोश और उत्साह देखा जा रहा है; लगातार बढ़ रहा मत्स्य उत्पादन और निर्यात इस क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ा रहा है।

भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है, जिसका विश्व मछली उत्पादन में 7. 93 फीसदी योगदान है। यही नहीं जल कृषि उत्पादक देशों में दूसरा सबसे बड़ा देश है। पिछले दस सालों के दौरान मत्स्य पालन क्षेत्र में तेज़ी से विकास हुआ है। साल 2024 -25 तक 22 मिलियन टन मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।

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