हर मुश्किल झेलने के किए मशहूर गाय-बैलों की ये नस्ल ख़त्म क्यों हो रही है?

बेहद कठिन और शुष्क वातावरण में जीवित रहने की क्षमता वाले केनकठा नस्ल के बैल अब अपने ही इलाके में ख़त्म हो रहे हैं। ख़ेती के साथ बोझा ढोने में उपयोगी यह ताकतवर नस्ल केन नदी के किनारे वाले इलाकों में पाई जाती है। लेकिन ख़ेती का मशीनीकरण होने से यह नस्ल ख़त्म होने की कगार पर है।

Arun SinghArun Singh   5 July 2023 11:41 AM GMT

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हर मुश्किल झेलने के किए मशहूर गाय-बैलों की ये नस्ल ख़त्म क्यों हो रही है?

अजयगढ़ के बाजार से केनकठा नस्ल के बैल खरीदकर ले जाते किसान। (सभी फोटो: रिजवान खान)

पन्ना (मध्यप्रदेश)। लगभग दो-ढ़ाई दशक पहले यहाँ केनकठा नस्ल के बैल ख़ेती-किसानी के रीढ़ माने जाते थे, लेकिन हैरत की बात है बुंदेलखंड के कई ज़िलों से बैलों की ये नस्ल गायब होती जा रही है।

केनकठा एक ऐसी नस्ल है, जो मुश्किल परिस्थितियों और ख़राब वातावरण में भी जीवित रहने की क्षमता के लिए जानी जाती है। पीढ़ी दर पीढ़ी किसान इनसे न केवल ख़ेती करते रहे हैं, इसका उपयोग बैलगाड़ी में बोझा ढोने के लिए भी करते थे। लेकिन अब कृषि का मशीनीकरण होने के साथ ही केनकठा नस्ल की गायों और बैलों पर संकट आ गया है।

पन्ना ज़िले के अजयगढ़ में आरामगंज गाँव के 46 साल के किसान और गो पालक हनुमंत प्रताप सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "लगभग तीन दशक पहले अजयगढ़ क्षेत्र की पंचायतों में केनकठा नस्ल के साँड़ छोड़े गए थे। इन साँड़ों की देखरेख के लिए शासन द्वारा साँड़ सेवकों की नियुक्ति भी की गई थी, लेकिन अब उनमें से कोई भी सांड़ जीवित नहीं बचा।"

केनकठा गोवंश संरक्षण के लिए अजयगढ़ में केनकठा नियंत्रण केंद्र की स्थापना की गई थी, लेकिन धीरे-धीरे ये बंद हो गया। फोटो: विकीपीडिया

केन नदी के किनारे बसे मध्य प्रदेश के पन्ना, छतरपुर व टीकमगढ़ और उत्तर प्रदेश के ललितपुर, हमीरपुर व बाँदा जैसे ज़िलों में खेती में इसी नस्ल के बैलों का इस्तेमाल होता था।

हनुमंत प्रताप आगे कहते हैं, "फुर्ती और ताकत में बेमिसाल ख़ेती के लिए बेहद उपयोगी केनकठा नस्ल के संरक्षण के लिए पहले जो प्रयास हुए वह कारगर साबित नहीं हुए। पंचायतों में छोड़े गए इस नस्ल के सांड़ों में से बचा अंतिम सांड़ 10 साल पहले कल्याणपुर गाँव में था, जिसकी मौत हो चुकी है। इस समय अजयगढ़ के गो पालक मनीराम साहू के पास केनकठा नस्ल का सांड बचा है।"

नस्ल सर्वेक्षण के आधार पर नस्लवार पशुधन गणना-2013 के अनुसार केनकठा गोवंश की संख्या 393291 थी, जबकि साल 2019 में की गई 20वीं पशुधन‍ संगणना के अनुसार केनकठा की संख्या घटकर 166267 हो गई है।

अजयगढ़ के साप्ताहिक बाज़ार में केनकठा बैल बिकते हैं। आषाढ़ के महीने में ख़ेती किसानी का सीजन शुरू होने पर अजयगढ़ के साप्ताहिक बाज़ार में गुरुवार को केनकठा बैलों का मेला लगता है। इस इलाके के किसान बाज़ार में बिक्री के लिए बैल लेकर आते हैं।

पूरे इलाके से बिक्री के लिए साप्ताहिक बाजार में लाए गए केनकठा बैल

अजयगढ़ के स्थानीय पत्रकार रिज़वान खान ने गाँव कनेक्शन को बताया कि जून के महीने से लेकर अगस्त तक यहाँ केनकठा नस्ल के बैलों का मेला लगता है। केन नदी के किनारे स्थित बरियारपुर, देवरा भापतपुर, सानगुरैया, पड़रहा, फरस्वाहा, सिमरा, गुमानगंज, बीरा, मोहाना और लौलास आदि गाँवों के किसान बैलों की जोड़ी लेकर बिक्री के लिए हर गुरुवार को अजयगढ़ बाज़ार में आते हैं।" वो आगे कहते हैं, "केनकठा नस्ल के बैलों को खरीदने के लिए पन्ना ज़िले के अलावा पड़ोसी जिले सतना, छतरपुर, दमोह के साथ ही उत्तर प्रदेश के बाँदा और महोबा ज़िले के किसान बैल खरीदने के लिए यहां आते हैं।"

अजयगढ़ में लगने वाला केनकठा नस्ल के बैलों का बाज़ार बहुत पुराना है। अजयगढ़ रियासत के तत्कालीन महाराज भोपाल सिंह के समय से यह बाज़ार लग रहा है। सौ साल से भी अधिक पुराने बैलों के इस बाज़ार में अषाढ़ और सावन के महीने में हर गुरुवार को लगभग डेढ़-दो सौ बैल बिक्री के लिए आते हैं। यहाँ केनकठा नस्ल के बैलों की सबसे ज़्यादा मांग रहती है। इस नस्ल के अच्छे बैलों की जोड़ी 25 से 30 हज़ार रुपये में मिल जाती है।

बस इनके पास बचा है केनकठा नस्ल का साँड़

पशुपालन विभाग की तरफ से अजयगढ़ क्षेत्र की पंचायतों में छोड़े गए केनकठा नस्ल के सभी साँड़ जहाँ खत्म हो चुके हैं, वहीं अजयगढ़ के गो पालक मनीराम साहू के यहाँ इस नस्ल का साँड़ मौजूद है। इलाके में इकलौता बचा यह साँड़ केनकठा नस्ल को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

मनीराम साहू केनकठा नस्ल के अपने सांड़ के साथ

65 साल के मनीराम गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "25 साल पहले इस क्षेत्र की हर पँचायत में एक साँड़ था, लेकिन 10 साल पहले ही सभी साँड़ खत्म हो गए। पशुपालन विभाग में भी केनकठा साँड़ नहीं हैं। जो साँड़ सेवक थे उनमें अधिकांश रिटायर हो गए, जो बचे हैं उन्हें पशु अस्पतालों में अटैच कर दिया गया है।

मनीराम के पास केनकठा सहित साहीवाल, गिर व बोडन नस्ल की 35 गायें हैं। इन गायों से प्रतिदिन 80 से 100 लीटर दूध निकलता है। अजयगढ़ में ही 50 रुपये लीटर की दर से पूरा दूध बिक जाता है। मनीराम के अनुसार केनकठा नस्ल की गाय दूध भले ही कम देती है, लेकिन उसका दूध बहुत स्वादिष्ट होता है। इतना ही नहीं इस नस्ल की गाय बहुत कम बीमार पड़ती है और इनके बछड़े ख़ेती के लिए सर्वश्रेष्ठ होते हैं।

बंद हो गया अजयगढ़ स्थित केनकठा नियंत्रण केंद्र

केनकठा गोवंश संरक्षण के लिए अजयगढ़ में केनकठा नियंत्रण केंद्र की स्थापना की गई थी, लेकिन धीरे-धीरे ये बंद हो गया।

पशुपालन विभाग अजयगढ़ के प्रभारी डॉ. एम.एल. प्रजापति गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "केनकठा नस्ल के संरक्षण के लिए अजयगढ़ में केनकठा नियंत्रण केंद्र की स्थापना की गई थी। इस केंद्र के अलावा तीन उप केंद्र देवरा भापतपुर, सानगुरैया व बरियारपुर में खोले गए थे। ये सभी केंद्र साल 1997 के आसपास बंद हो गए थे।"

वो आगे कहते हैं, "क्योंकि खेती में अब मशीनों का इस्तेमाल होने लगा है, इसलिए केनकठा नस्ल के बैल भी कम होते जा रहे हैं। केनकठा नस्ल की गाय डेढ़ से तीन लीटर तक दूध देती हैं। इसलिए ज़्यादातर किसान इस नस्ल की गायों का कृत्रिम गर्भाधान साहीवाल और गिर नस्ल से करा रहे हैं। इन परिस्थितियों में केनकठा नस्ल संकट में है।

ज़िला मुख्यालय पन्ना स्थित उपसंचालक पशुपालन और डेयरी विभाग के कार्यालय से भी केनकठा नस्ल के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिल पाई।

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