जानिए कैसे काम करते हैं कृषि विज्ञान केंद्र और किसानों को क्या-क्या होता है इससे फायदा

जिस तरह लोगों को सेहतमंद रखने और जरूरी स्वास्थ्य सलाह देने के लिए अस्पतालों में डॉक्टर रहते हैं, उसी तरह किसानों की समस्याओं के समाधान और फसलों में लगने वाली बीमारियों के इलाज के लिए कृषि विज्ञान केंद्र भी काम करते हैं।

Divendra SinghDivendra Singh   21 March 2024 8:04 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
जानिए कैसे काम करते हैं कृषि विज्ञान केंद्र और किसानों को क्या-क्या होता है इससे फायदा

विनोद कुमार मौर्या भी पहले दूसरे किसानों की तरह ही परंपरागत खेती किया करते थे; लेकिन आजकल तो उनसे खेती का गुर सीखने के लिए पूरे जिले के किसान पहुँचते हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 90 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के अलीपुर गाँव के 32 वर्षीय विनोद बताते हैं, "बचपन से ही था कि मुझे खेती में कुछ करना है, लेकिन पहले इतनी जानकारी नहीं थी तो दूसरे किसानों की तरह ही सब्जी की खेती किया करते थे; लेकिन जब कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आए तो बहुत सारी नई जानकारियाँ मिलने लगीं।"

विनोद आज ओजोन फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी के निदेशक हैं, जिनसे जिले के हजारों की संख्या में किसान जुड़े हुए हैं। सीतापुर जिले के कटिया में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र-2 की मदद से उनके जैसे लगभग 32 किसान उत्पादक संगठन बन गए हैं


कृषि विज्ञान केंद्र कटिया के प्रभारी और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं, "कृषि विज्ञान केंद्र प्रयोगशाला से खेत को जोड़ने का काम करते हैं; पिछले 12 साल में 350000 से अधिक किसान हमसे जुड़े हुए हैं, कृषि विज्ञान केंद्र की प्राथमिकताओं में बीज, नस्ल संरक्षण, कृषि विविधिकरण, एकीकृत फसल प्रणाली, कृषि उत्पादक संगठनों को सशक्त बनाने जैसे कई काम किए जाते हैं।"

21 मार्च, 1974 के तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर ने पांडिचेरी में पहले कृषि विज्ञान की शुरुआत की थी। आज देश में कुल 731 कृषि विज्ञान केन्द्र हैं, जिनमें 545 जिलों में एक तो 93 जिलों में दो कृषि विज्ञान केंद्र संचालित हो रहे हैं। जहाँ पर किसानों की हर एक समस्या के समाधान के लिए डॉक्टर यानी वैज्ञानिक मौजूद रहते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि कृषि विज्ञान केंद्र की शुरुआत कैसे हुई और ये कैसे काम करते हैं?

यह सभी केवीके पूरे भारत में संचालित 11 कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थानों के तकनीकी मार्गदर्शन में काम करते हैं। अटारी के नाम से लोकप्रिय यह संस्थान लुधियाना, जोधपुर, कानपुर, पटना, कोलकाता, गुवाहाटी, बारापानी, पुणे, जबलपुर, हैदराबाद और बेंगलुरु में स्थापित हैं, जो कि केवीके के साथ समन्वय और निगरानी की भूमिका निभा रहे हैं।


पिछले 29 साल से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई कृषि विज्ञान केंद्रों पर काम करने वाले डॉ सत्येंद्र पाल सिंह इन दिनों मध्य प्रदेश के कृषि विज्ञान केंद्र भिंड के प्रभारी हैं। डॉ सत्येंद्र पाल सिंह बताते हैं, "शुरूआती दौर में एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में काम करने वाले केवीके आज तकनीकी के परीक्षण, प्रदर्शन, प्रशिक्षण, प्रसार के अलावा कई दूसरों अनेकों कार्यक्रमों को संचालित करने का सफल काम कर रहे हैं।"

केवीके राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली का एक अभिन्न अंग हैं। जो कृषि प्रौद्योगिकी के ज्ञान और संसाधन केंद्र के रूप में कार्य कर रहे हैं। जिसका मकसद प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, शोध और प्रदर्शनों के माध्यम से कृषि और संबद्ध विषयों में स्थान विशिष्ट प्रौद्योगिकी मॉड्यूल का मूल्यांकन करना है।

डॉ सत्येंद्र पाल सिंह आगे कहते हैं, "कृषि अनुसंधान संस्थान जो भी नया बीज विकसित करते हैं कृषि विज्ञान केंद्र के ज़रिए ही उनका ट्रायल किया जाता है; कि वो किसानों के लिए कितने उपयोगी हैं।

पूरी दुनिया में नवीनतम कृषि तकनीकी को किसानों तक प्रभावी ढ़ग से पहुंचाने की यह एकमात्र और अनूठी परियोजना है। केवीके आज पूरे देश में अपनी अलग ही पहचान कायम कर चुके हैं। देश के हर जिले में केवीके आज फ्रंटलाइन एक्सटेंशन के अग्रणी पुरोधा बनके उभरे हैं। इन केंद्रों द्वारा अनिवार्य लक्ष्य के इतर दर्जनों प्रमुख कार्यक्रमों के साथ कई सारी परियोजनाओं का संचालन किसान, ग्रामीण युवक-युवतियों, पशुपालकों, कृषि उद्यमियों आदि के लिए किया जा रहा है।


केवीके की तरफ से दी जा रही तकनीकी के प्रसार का ही प्रभाव है कि उन्नत तकनीकी आज गाँव-किसानों तक पहुँच सकी है। किसान परंपरागत खेती-बाड़ी से निकलकर वैज्ञानिकता की ओर बढ़ हो रहे हैं। बेराजगार किसान युवक-युवतियां आदि उद्यानिकी, डेयरी व्यवसाय, बकरी पालन, मुर्गी पालन, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन से लेकर मछली पालन की ओर उन्मुख हुए हैं। किसानों में जैविक खेती की ओर भी रुझान देखा जा रहा है।

छत्तीसगढ़ के कृषि विज्ञान केंद्र, बस्तर के वैज्ञानिक डॉ धर्मपाल केरकेट्टा गाँव कनेक्शन से कहते हैं, "यहाँ पूरा आदिवासी क्षेत्र है, एक समय था जब किसान पूरी तरह से परंपरागत खेती ही करते थे, जिससे न के बराबर मुनाफा होता था, लेकिन आज यहाँ के किसान फूलों की भी खेती कर रहे हैं तो मशरूम भी उगा रहे हैं।"

कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की हैंड होल्डिंग कर उनकी मदद कर रहे हैं। देश के लगभग 500 कृषि विज्ञान केंद्रों को अपने-अपने जिले में कम से कम पाँच -पाँच एफपीओ को बढ़ावा देने के साथ उन्हें तकनीकी और उनके व्यवसाय में उत्पाद तैयार करने से लेकर बज़ार में बेचने तक मैं हैंड होल्डिंग की तैयारी की जा रही है।

#krishi vigyan kendra #icar 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.