बकरी और मछली पालकर शिक्षक से किसान बने एक सरपंच ने अपने गाँव को बदल दिया

प्रेमलाल नाइक ओडिशा के नुआपाड़ा में अपने गाँव में एक सफल बकरी और मछली ब्रीडिंग का व्यवसाय करते हैं। इससे न केवल गाँव के लोगों को रोज़गार मिला है, बल्कि पलायन रोकने में मदद मिली है।

Darshan SharmaDarshan Sharma   6 Dec 2023 7:35 AM GMT

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बकरी और मछली पालकर शिक्षक से किसान बने एक सरपंच ने अपने गाँव को बदल दिया

बलौदा (नुआपाड़ा), ओडिशा। ओडिशा के नुआपाड़ा जिले की पहचान यही है कि यहाँ के लोग बड़े पैमाने पर काम की तलाश में गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जाते हैं। वे आमतौर पर कारखानों, ईंट भट्टों या निर्माण स्थलों पर दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम करते हैं; वहाँ अपने परिवारों और गाँवों के आराम से दूर मुश्किल भरी ज़िंदगी जीते हैं।

इन्हीं प्रवासी मज़दूरों में से एक हैं संतोष साहू, जो नुआपाड़ा के अपने गाँव बलौदा को छोड़कर कहीं और काम करने के लिए जाने को मज़बूर हुए। बलौदा में लगभग हर घर का एक सदस्य ऐसा है जो काम की तलाश में कहीं और चला गया है।

“मैं उत्तर प्रदेश में एक ईंट भट्टे में काम करता था, लेकिन अब और नहीं; अब मैं अपने परिवार के साथ रहता हूँ और अपने गाँव में जो काम करता हूँ, उससे उनकी देखभाल करने में पूरी तरह सक्षम हूँ, ''संतोष ने गाँव कनेक्शन को बताया।

“मैं मुश्किल से अपने परिवार के लिए 4,000 रुपये घर भेज पाता था; अब मैं अपने घरवालों के साथ भी रहता हूँ। ” संतोष साहू ने गाँव कनेक्शन को बताया।


लेकिन पिछले कुछ सालों में इतना क्या बदल गया? यह एक प्रगतिशील किसान, प्रेमलाल नाइक के काम करने का तरीका था, जिसने न केवल साहू के जीवन पर बल्कि महिलाओं सहित गाँव के 25 अन्य लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला।

यह सब तब शुरू हुआ जब नाइक ने कोमना ब्लॉक के बुधिकोमना गाँव में अपनी नौकरी छोड़ दी। "मैंने 1996 में 12वीं कक्षा पास करने बाद और अगले ही साल 1997 में मुझे एक शिक्षक के रूप में नौकरी मिल गई; लेकिन वेतन पर्याप्त नहीं था और 10 साल तक इसमें लगे रहने के बाद, मैंने 2007 में नौकरी छोड़ दी और खेती करने का फैसला किया।" 48 साल के नाइक ने गाँव कनेक्शन को बताया।

नाइक ने अपनी 24 एकड़ ज़मीन पर खेती करना शुरू किया, लेकिन जब उनकी पारंपरिक खेती के तरीकों से उन्हें ज़्यादा मुनाफा नहीं हुआ तो वह निराश हो गए।

“मेरे पास 24 एकड़ ज़मीन है लेकिन यह बहुत उपजाऊ नहीं है , इसलिए मुझे पता था कि मैं अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर नहीं रह सकता। '' 48 वर्षीय किसान ने गाँव कनेक्शन को बताया।

“2016 में, मैंने अपनी खेती के तरीके को बदलने का फैसला किया और इंटरनेट पर खोजबीन शुरू की; तभी बकरी पालन एक मुनाफे का सौदा लगा। ” नाइक ने कहा। इसलिए, उन्होंने 17 देशी बकरियाँ खरीदी और आज उनके फार्म में 437 बकरियाँ हैं, जिनके बारे में उनका कहना है कि यह उनके लिए सबसे बड़ी कमाई है।

उन्होंने कहा, "मैं और अधिक सीखना चाहता था, इसलिए 2017 में मैंने मथुरा स्थित केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी) में बकरी पालन पर आठ दिवसीय ट्रेनिंग कार्यक्रम में भाग लिया।" वहाँ उन्होंने आवास प्रबंधन, बीमारी की रोकथाम, बिक्री के बारे में सीखा।

अगले साल उन्होंने 2018 में राजस्थान से उच्च गुणवत्ता वाली सिरोही बकरियाँ, पंजाब से बीटल बकरियाँ और भोपाल से ब्लैक बंगाल बकरियाँ खरीदीं और उनके हेल्थ कार्ड बनाए ताकि वह उनका समय पर टीकाकरण सुनिश्चित कर सकें, जो जानवरों को स्वस्थ रखने का एक महत्वपूर्ण तरीका था।


“हम बकरियों को समय पर कृमि मुक्ति और टीकाकरण करवाते हैं और इससे वो ठीक रहते हैं। बकरियों में बीमारी से होने वाली मौत का प्रतिशत पाँच प्रतिशत से भी कम है। यही हमारी सफलता का कारण है। और हर एक स्वस्थ बकरी से मुझे पाँच से छह हजार रुपये की कमाई होती है, ”उन्होंने समझाया।

नाइक ने यह भी सुनिश्चित किया है कि उनकी बकरियों को स्वच्छ और पौष्टिक चारा मिले। वह जानवरों के लिए संकर नेपियर घास की खेती करते हैं और बकरी के गोबर से वर्मीकम्पोस्ट तैयार करते हैं। 2018 में, उन्होंने अपनी सात एकड़ ज़मीन पर एक तालाब बनाया जहाँ उन्होंने रोहू, मृगल और कतला जैसी मछलियों का पालन शुरू किया।

उनके मुताबिक मछली के तालाब से प्रति एकड़ करीब 2.5 लाख से 3 लाख रुपये तक का मुनाफा होता है। मछली के अलावा, वह 13 एकड़ में धान उगाते हैं और एक एकड़ में अरहर और चना की खेती करते हैं। वह 26 किसानों को रोज़गार देते हैं और काम के हिसाब से उन्हें प्रति माह 6,000 रुपये से 12,000 रुपये के बीच भुगतान करते हैं। नाइक अपनी बकरियों, मछली और अनाज से प्रति माह 350,000 रुपये कमाते हैं।

“पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने बहुत मदद और मार्गदर्शन किया; मुझे 68,00,000 रुपये का लोन दिया गया, जिससे मुझे अपना व्यवसाय बढ़ाने में मदद मिली। " नाइक ने आगे कहा। उन्हें कृषि-उद्यमियों के लिए सब्सिडी वाले ऋण प्रदान करने के लिए 2018 में ओडिशा में शुरू की गई मुख्यमंत्री कृषि उद्योग योजना से लोन मिला।

आधुनिक कृषि पद्धतियाँ

नाइक अपने उद्यम को व्यवस्थित तरीके से चलाने में लगे हैं। वह बकरियों के जन्म, टीकाकरण की स्थिति, गर्भावस्था, कृमि मुक्ति कार्यक्रम और संक्रमण के बारे में एक डेटाबेस रखते हैं।

“ज़्यादातर फार्म मालिकों को नुकसान उठाना पड़ता है, क्योंकि वे अपने जानवरों के बारे में चिकित्सा विवरण नहीं जानते हैं; मैं अपनी प्रत्येक बकरी के लिए एक स्वास्थ्य कार्ड रखता हूँ। कार्ड में उनकी सेहत का आकलन करने के लिए ज़रूरी जानकारी है।” नाइक ने कहा।

“मैं इस बात पर भी नज़र रखता हूँ कि हर बकरी दवा के प्रति कैसी प्रतिक्रिया करती है; इससे मुझे यह जानने में मदद मिलती है कि कौन सी बकरी के लिए ठीक नहीं होती है। अपने पशुओं की सेहत का ख्याल रखने के लिए ये ज़रूरी है। " उन्होंने समझाया।

“तीन महीने तक के छोटे बच्चे एक साथ झुंड में रहते हैं; साथ ही, गर्भवती बकरियों को बाकी झुँड से अलग रखा जाता है। इससे ये होता है कि बड़ी बकरियाँ छोटी बकरियों को परेशान न करें और गर्भवती बकरियाँ झगड़ों में घायल न हों। यह यह भी सुनिश्चित करता है कि कमज़ोर बकरियों को भी खाने के लिए चारा मिले और मज़बूत बकरियों द्वारा उनका हिस्सा न छीना जाए।" उन्होंने कहा।


“इस खेत में, हर किसी के लिए काम है; अगर यह खेत न होता, तो मुझे नहीं पता कि पैसे कमाने के लिए मुझे अपने परिवार से कितनी दूर रहना पड़ता। इस फार्म में कम से कम 13 लोग हैं जो दूसरे राज्यों से घर वापस आए हैं।” नाइक ने गाँव कनेक्शन को बताया।

विश्वामित्र यादव, एक किसान, नाइक के खेत में काम करते हैं। जब बकरियाँ चरने के लिए बाहर जाती हैं तो वह उनकी देखभाल करते हैं।

यादव, जिन्होंने यहाँ दो साल से काम किया है, ने कहा कि वह खेत पर काम के लिए हर महीने 7,000 रुपये कमाते हैं।

यादव ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं सम्मान के साथ पैसा कमाने में सक्षम हूँ और मुझे काम की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन नहीं करना पड़ता है। जब से मैंने यहाँ काम करना शुरू किया है तब से जीवन बेहतर हो गया है।"

नाइक न केवल आधुनिक कृषि तकनीक अपनाते हैं बल्कि अन्य किसानों को भी अपनी खेती करना सिखाते हैं। उनकी सफलता की कहानी से प्रेरित होकर कई युवा किसान उनके पास सीखने के लिए आते हैं।

“बरहामपुर और बलांगीर जिलों के किसान मेरे खेत में आते हैं और आधुनिक खेती की तकनीक सीखने के लिए तीन-चार दिनों तक यहाँ रुकते हैं; जिला प्रशासन स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को भी यहाँ आकर बकरी पालन सीखने के लिए भेजता है। '' नाइक ने गर्व से कहा। नाइक के सफल बिजनेस मॉडल के बारे में जानने के बाद उनमें से कई ने अपना खुद का उद्यम शुरू किया है।

बकरी पालन और मछली पालन के प्रति अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए, नाइक ने मत्स्य पालन और पशुधन विकास विभाग से 2023 में उत्कृष्ट कृषक सम्मान नामक उत्कृष्टता पुरस्कार जीता। 2021 में नुआपाड़ा के कृषि विज्ञान केंद्र ने भी उन्हें सम्मानित किया

नाइक ने अपने लिए कम से कम 1000 बकरियाँ रखने और कम से कम 50 और लोगों के लिए रोजगार पैदा करने का लक्ष्य रखा है। “जब मैंने 17 बकरियों से शुरुआत की तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे पास लगभग 500 बकरियाँ होंगी; आज, मुझे यह जानने से ज़्यादा खुशी किसी बात से नहीं हो रही है कि मेरे खेत में काम करने के कारण मेरे गाँव के कई लोग पलायन करने से बच गए हैं, वे अपने परिवारों के साथ घर पर हैं और उन्हें हर रोज़ दो वक़्त का खाना खिलाने में सक्षम हैं।'' उन्होंने कहा।

अपने प्रगतिशील विचारों को बड़े पैमाने पर लागू करने और प्रवासन का खामियाजा भुगतने वाले अधिक परिवारों तक लाभ पहुँचाने के लिए, नाइक ने भैंस ताल पंचायत के सरपंच बनने के लिए चुनाव लड़ा और जीता। उनका अपना गाँव बलौदा इसी पँचायत के तहत आता है और उन्होंने 2007, 2012 और 2023 में ग्राम पँचायत चुनाव जीता है।

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