उत्तराखंड में जैविक ख़ेती की एक पाठशाला कैसे बदल रही है महिलाओं की किस्मत

उत्तराखंड में औरतें भी अब जैविक ख़ेती से जुड़ कर खुद पूरे परिवार का ख़र्च उठा रही हैं। ये बदलाव आया है एक ऐसे किसान की बदौलत जो अबतक 2 हज़ार से अधिक किसानों को इसकी ट्रेनिंग दे चुके हैं।

Ambika TripathiAmbika Tripathi   12 July 2023 12:20 PM GMT

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उत्तराखंड में जैविक ख़ेती की एक पाठशाला कैसे बदल रही है महिलाओं की किस्मत

दीपा लोशाली ने शुभ आजीविका स्वयं सहायता समूह के ज़रिए कई दूसरी महिलाओं को भी रोज़गार दिया है।

कई सालों तक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने वाली दीपा लोशाली अब जैविक उत्पाद बनाकर बेचती हैं, वहीं रितु अब खुद का डेयरी फार्म चलाती हैं। इससे पहले दोनों महिलाओं की इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि ख़ुद के लिए भी कुछ कर पाएँ, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले के फत्ताबंगर गाँव की रहने वाली 42 साल की दीपा लोशाली के लिए ये सब इतना आसान नहीं था। इसमें उनकी मदद की किसान अनिल पांडेय ने।

हल्द्वानी ज़िले में हिम्मतपुर मोटाहल्दू गाँव के अनिल पांडेय के मुताबिक़ अब तक करीब 2 हज़ार किसानों को उन्होंने जैविक ख़ेती का प्रशिक्षण दिया है।


जैविक ख़ेती करने वाले किसान देसी गाय के गोबर और गोमूत्र से कई तरह के उर्वरक, कीटनाशक बनाते हैं, इससे ख़ेती की लागत तो कम होती ही है उत्पादन भी बढ़ जाता है।

जैविक विधि से उगाए गए मोटे अनाज़ों से कई तरह के उत्पाद बनाने वाली दीपा लोशाली गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "साल 2018 के पहले तक मैं एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी, लेकिन बहुत ज़्यादा सैलरी नहीं थी। तब मुझे जैविक ख़ेती के बारे में पता चला कि कैसे अनिल पांडेय इसकी ट्रेनिंग देते हैं। बस उनसे जैविक ख़ेती के बारे जानने और सीखने का मौका मिला, इसके बाद अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया है," लोशाली ने आगे कहा।

दीपा लोशाली ने शुभ आजीविका स्वयं सहायता समूह के ज़रिए कई दूसरी महिलाओं को भी रोज़गार दिया है।

अनिल पांडेय गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "पिताजी पशुपालन विभाग में काम करते थे तो मैंने पशुओं के इलाज़ के बारे में उनसे बहुत कुछ सीखा और अपनी डेयरी शुरू करने के बारे में सोचा।" अनिल पांडेय ने पशुपालन में डिप्लोमा भी किया है।


अनिल आगे बताते हैं, "दो साल तक डेयरी चलाई, लेकिन सिर्फ़ लागत ही निकल पाती थी, कमाई न के बराबर थी। उसी दौरान मुझे जैविक ख़ेती की जानकारी हुई और उसके बारे में अच्छे से समझने के बाद साल 2005 में जैविक ख़ेती करने लगा।"

शुरुआत में अनिल ने अपने आधे हेक्टेयर में बनें फार्म में हर प्रकार की फ़सलों को उगा कर उनका परीक्षण किया, एक-दो साल तो उत्पादन नहीं मिला लेकिन फिर बढ़िया उत्पादन मिलने लगा। धीरे-धीरे आसपास के लोग उनके यहाँ जानने आने लगे कि आख़िर दूसरी ख़ेती से ये अलग कैसे है। अनिल ने सोचा अगर जैविक ख़ेती को बढ़ाना है तो दूसरे किसानों को भी इसकी जानकारी होनी चाहिए, बस वहीं से उन्होंने प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।

अनिल बताते हैं, "पहाड़ की बात करें तो यहाँ पर महिला किसान ज़्यादा सक्रिय रहती हैं, वो नई-नई चीज़ें सीखना चाहती हैं और मेहनत भी ज़्यादा करती हैं। हम किसानों को फलों, सब्ज़ियों, मोटे अनाजों को जैविक तरीके से उगाने की ट‍्रेनिंग देते हैं।"

कैसे होती है जैविक ख़ेती?

भारत में जैविक ख़ेती नया नहीं है। कई सालों से किसान इसे करते आये हैं। इस पद्धति में रासायनिक खाद, दवा का इस्तेमाल नहीं होता है। उसकी जगह जैविक खाद और देसी बीज़ों से फसल उगाते हैं। इससे पर्यावरण की शुद्धता बनी रहने के साथ ज़मीन का प्राकृतिक स्वरूप भी बरक़रार रहता है। जैविक ख़ेती को ऑर्गेनिक ख़ेती या देशी ख़ेती भी कहते हैं।

रासायनिक ख़ेती की तुलना में जैविक ख़ेती में पानी की ज़रुरत कम होती है । यही नहीं, इससे ख़ेती में सहायक जीव सुरक्षित रहनें के साथ ही उनकी संख्या बढ़ोतरी भी होती है |

इसके लिए मिट्टी की जाँच, गोबर तथा फसलों के अवशेष की खाद ,वर्मीकम्पोस्ट केंचुआ की खाद और हरी खाद की ज़रुरत होती है।


अनिल ने साल 2005 में जब इसकी शुरुआत की तो लोग उन पर हँसते थे, लेकिन अब दूर दूर से लोग उनसे जानकारी लेने आते हैं।

किसानों को सिखाने के साथ ही अनिल ख़ुद भी सीखते रहते हैं। वो बताते हैं, "बीच-बीच में अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण के लिए जैविक कृषि प्रशिक्षण केन्द्र मजखाली (रानीखेत) में प्रशिक्षण प्राप्त करता रहा। इसी दौरान मैंने 2013 में उत्तराखण्ड ओपन युनिवर्सिटी से जैविक कृषि पर डिप्लोमा भी किया है।" जैविक ख़ेती को बढ़ावा दे रहे अनिल पांडेय को उत्तराखण्ड़ के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत सहित कई अन्य लोगों द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।

अनिल पांडे लोगों को अपने घरों में जैविक गार्डन बनाने की सलाह भी दे रहे हैं। वे बताते हैं कि "रासायनिक दुष्परिणामों के कारण आज हमारा खाना ज़हरीला हो गया है, इसके चलते मैं लोगों को किचन गार्डन की सलाह देता हूँ, जिससे वो जैविक ख़ेती से खुद की सब्ज़ियाँ उगा सकें।"

उन्होंने अपने गाँव हिम्मतपुर मोटाहल्दू में जैविक कृषि प्रशिक्षण केन्द्र (जैविक पाठशाला) की शुरुआत की है, जहाँ लोग सीखने आते हैं। इसी महीने वो 40 महिलाओं को ट‍्रेनिंग देने वाले हैं।

#OrganicFarming # Uttarakhand 

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