किसानों के घर-घर जाकर गेहूं खरीदेगी सरकार

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लखनऊ। प्रदेश में गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा होता नज़र नहीं आ रहा है। पैंतालीस लाख मीट्रिक टन खरीद का लक्ष्य रखा गया था लेकिन 10 मई तक सिर्फ 28,988 मीट्रिक टन की ही खरीद हो सकी है। खरीद केंद्रों पर फैले सन्नाटे ने सरकारी एजेंसियों के होश उड़ा दिए हैं, जिसके बाद सरकार ने अब गाँव-गाँव जाकर गेहूं खरीद की योजना बनाई है। 

सरकारी गेहूं खरीद को सवा महीने से अधिक हो गया है लेकिन खरीद ने तेजी नहीं पकड़ी है। बाराबंकी में एक लाख मीट्रिक टन के एवज में 6,500 मीट्रिक टन, लखनऊ में 25,000 मीट्रिक टन के सापेक्ष सिर्फ 1,250 मीट्रिक टन खरीद हुई है। मेरठ में 37,000 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा जाना है लेकिन खरीद सिर्फ 6,892 मीट्रिक टन की हुई है।

मेरठ के क्रय अधिकारी प्रबल कुमार बताते हैं, “वबाजार में गेहूं का रेट ज्यादा है और पैसा नगद मिल रहा है, इसलिए किसान सरकारी खरीद केंद्र नहीं आ रहा।”अतिरिक्त सहयोग:  लखनऊ-जसवंत सोनकर, बाराबंकी-सतीष कश्यप, कन्नौज( अजय मिश्रा, मेरठ) पश्चिमी यूपी के बाजार अपवाद हैं क्योंकि यहां आटा उत्पादन बनाने वाली कंपनियां अच्छे गेहूं की तलाश में आती हैं। अन्यथा इस समय खुदरा बाजारों में भी किसानों को 1000-1200 रुपए प्रति कुंतल ही रेट मिल पा रहा है।

किसानों की बेरुखी को देखते हुए सरकार ने अब घर-घर जाकर उपज खरीद की योजना तैयार की है, शासन से आदेश जारी होते ही एजेंसियां गाँव में जाकर खरीद की तैयारियों में जुट गई हैं। 

अपर आयुक्त खाद्य एवं रसद वितरण, यूपी अनिल कुमार सिंह बताते हैं, “लक्ष्य पूरा करने के लिए लेखपालों को भी लगाया गया है। इसके साथ ही मोबाइल खरीदारी की जा रही है। घर-घर जाकर एजेंसियां गेहूं खरीदेंगी।” उन्नाव में गेहूं खरीद के लिए 55,000 मीट्रिक टन का लक्ष्य दिया गया था। इसके सापेक्ष विभाग अब तक मात्र सात सौ मीट्रिक टन के आसपास की ही गेहूं खरीद कर सका है।

उन्नाव के जिला खाद्य विपणन अधिकारी (आरएमओ) घनश्याम कुमार बताते हैं, “जिस गाँव में करीब एक ट्रक गेहूं खरीद की जानकारी मिलेगी उस गाँव में एजेंसियों को भेजकर खरीद कराई जाएगी। मौके पर ही किसानों से खाता संख्या लेकर आरटीजीएस के माध्यम से एकाउंट में खरीद का पैसा पहुंचा दिया जाएगा। लेकिन इस दौरान सिर्फ उनका गेहूं खरीदा जाएगा जिनका खाता होगा।” बाकी किसान खाता खुलवाने के बाद गाँव में गेहूं बेच सकेंगे। बाराबंकी के टांडपुर गाँव में रहने वाले नरेंद्र शुक्ला (28 वर्ष) की पहले ही सूखे में फसल मर गई है, अब गेहूं काटकर मेंथा लगाई है। “लेवी (सरकारी केंद्र) जाते तो पैसे पता नहीं कम मिले तो बाहर 50-100 रुपये कम मिले लेकिन मौके पर मिले तो ज्यादा अच्छा है”।

रिपोर्टर - दीपकृष्ण शुक्ला/सुनील तनेजा

 

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