लॉकडाउन के कारण घट सकता है खाद्य तेलों का आयात, लेकिन मार्च-अप्रैल तक चुकानी होगी ज्यादा कीमत

एक रिपोर्ट के अनुसार अगले साल मार्च-अप्रैल से पहले खाद्य तेलों की कीमत कम होने की उम्मीद नहीं है। हां, उत्पादन ज्यादा होने और खपत घटने के कारण भारत का खाद्य तेलों का आयात कम हो सकता है।

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लॉकडाउन के कारण घट सकता है खाद्य तेलों का आयात, लेकिन मार्च-अप्रैल तक चुकानी होगी ज्यादा कीमतपिछले साल की अपेक्षा इस साल खाद्य तेलों की कीमत 30 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। (फोटो- Economic times से साभार)

कोरोना महामारी की वजहों से होटलों में खाद्य तेलों की खपत तो कम हुई ही है, देश में तिलहन उत्पादन बढ़ने की संभावनाएं भी हैं। ऐसे में भारत का खाद्य तेलों का आयात कम हो सकता है। साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) ने इसकी जानकारी दी है।

एसईए की रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 में भारत का खाद्य तेल आयात 1.25-1.35 करोड़ टन रहने का अनुमान है। देश का खाद्य तेल का आयात वर्ष 2019-20 (नवंबर-अक्टूबर) में 13 प्रतिशत घटकर एक करोड़ 35.2 लाख टन रहा था।

मुंबई स्थित सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने गांव कनेक्शन को बताया, "वर्ष 2020-21 में खाद्य तेल आयात 1.25 से 1.35 करोड़ टन के बीच सीमित रहने का अनुमान है। घरेलू तिलहन उत्पादन बढ़ने तथा खाद्य तेल उत्पादन 10-15 लाख टन अधिक रहने की संभावना को देखते हुए खाद्य तेल का आयात कम हो सकता है।"

उन्होंने यह भी बताया कि तिलहन में खासकर किसान सरसों ज्यादा लगा रहे हैं। सरसों का रकबा बढ़ा है। ऐसे में तेल उत्पादन में अच्छी वृद्धि हो सकती है। एसईए भारतीय खाद्य तेलों के कारोबारियों का सबसे बड़ा संगठन है।

तिलहनी फसलों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर चालू सीजन में 4,625 रुपए प्रति कुंतल कर दिया है जो पिछले चालू वर्ष के दौरान 4425 रुपए प्रति कुंतल था।

तेल की कीमतों ने बिगाड़ा बजट

इस समय आलू की खुदरा कीमत 40 से 70 रुपए के बीच है। प्याज भी 50 से 60 और टमाटर की कीमत भी लगभग कुछ ऐसी ही है, लेकिन पिछले एक साल में मूंगफली, सरसों, वनस्पति तेल, सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम तेल के औसत दामों में 20 फीसदी से 30 फीसदी वृद्धि हुई है। मतलब ऐसा नहीं है कि बस प्याज, टमाटर और आलू ने ही महंगाई दर बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आयात के कारण प्याज की कीमतें तो कम हो गईं, लेकिन खाद्य तेलों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर मूल्य निगरानी के आंकड़ों को देखेंगे तो पिछले साल 23 नवंबर (2019) को सरसों तेल की औसतन कीमत 107 से 109 रुपए प्रति लीटर थी जो 23 नवंबर 2020 को 130 से 150 रुपए प्रति लीटर से ज्यादा है। इसी तरह वनस्पति तेल की कीमत पिछले साल इसी समय 75-80 रुपए प्रति किलो थी जो अब 102-105 प्रति किलोग्राम हो गई है। इसी तरह सोयाबीन तेल का औसत मूल्य 110 प्रति लीटर है, जबकि 2019 में 18 अक्टूबर को औसत मूल्य 90-95 रुपए प्रति लीटर था। सूरजमुखी और पाम तेल का भी यही हाल है।

बीवी मेहता के मुताबिक अगले 15 दिन में खाद्य तेल में गिरावट शुरू होना चाहिए। वे कहते हैं, "खाद्य तेलों की कीमत 20 से 40 फीसदी तक बढ़ी है। मार्च्-अप्रैल के बाद कीमतों में निश्चित ही गिरावट आयेगी।"

'आयात शुल्क में कटौती का फैसला गलत'

बीवी मेहता ने फोन पर बताया, "दो दिन पहले केंद्र सरकार के साथ हमारी बैठक थी। सरकार ने कहा है कि वे तेल की कीमत कम करने के लिए आयात शुल्क में कटौती करेंगे, लेकिन मेरे ख्याल से यह गलत है। इससे किसानों को नुकसान होगा। खाद्य तेलों की घरेलू खपत का लगभग 65 फीसद से अधिक आयात से पूरा होता है जो कि आत्मनिर्भर भारत की बात के खिलाफ है। भारत को दूसरे विकल्पों पर विचार करने चाहिये।"

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