यूपी से बिहार और पंजाब जा रहा आलू, फिर भी किसानों को नहीं मिल रहा सही दाम

Ajay MishraAjay Mishra   11 Jan 2019 1:16 PM GMT

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कन्नौज (यूपी)। उत्तर प्रदेश में आलू का बंपर उत्पादन होता है। दूसरे राज्यों में निर्यात होने के बाद भी किसानों को फसल का वाजिब रेट नहीं मिल पा रहा है। इन दिनों अगैती (कच्ची) फसल का आलू बाजार में खूब आ रहा है।

सौरिख ब्लॉक क्षेत्र के नगला विशुना निवासी रवीन्द्र सिंह यादव बताते हैं, ''200-250 रुपए पैकेट नए आलू का रेट चल रहा है। हम लोग खुदाई न के बराबर कर रहे हैं। कारण रेट डाउन है। जब रेट सुधरेगा तब खुदाई करेंगे।''

आगे बताते हैं, ''एक बीघा में करीब चार हजार रूपए खर्च हो जाता है। जबकि एक बीघा की कच्ची फसल में 20-25 पैकेट आलू निकलता है। महंगाई के इस दौर में सबके खर्चे भी बढ़ गए हैं।''

बिहार प्रांत के रूकसौर से यूपी के कन्नौज जिले के कस्बा तिर्वा में आलू खरीदने आए फिरोज उर्फ पप्पू आलम बताते हैं, ''वर्ष 2001 से यहां आलू खरीदने आते हैं। लाल आलू खरीदकर ले जा रहे हैं। साढ़े तीन सौ रुपए कट्टा-पौने चार सौ रूपए कट्टा (कट्टा में 55-60 किलो)। कभी नुकसान भी होता है तो कभी फायदा भी होता है। मगर कारोबार है तो करना ही होता है।''


आगे बताते हैं, ''सफेद वाला आलू ढ़ाई सौ से तीन सौ रूपए में चल रहा है। भाड़ा लगाकर हमको चार सौ से पांच सौ रूपए में पड़ता है। पिछली साल रेट सही था, इस बार थोड़ा गड़बड़ हो गया है। पैदावार अधिक हो गई है। बेनीफिट नहीं मिल पा रहा है।''

व्यापारी गौरव कटियार बताते हैं, ''20 सालों से आलू का व्यापार कर रहे हैं। बिहार अगर आलू न जाए तो उसको सुअर भी न पूछे। यूपी में इतना आलू ही होता है, उसकी खपत यहां हो ही नहीं सकती है। खपत बिहार में ही होती है। बलिया, गाजीपुर, फर्रूखाबाद का मोहम्मदाबाद, बाराबंकी सबमें आलू ही होता है। आलू इतना हो ही गया है कि रेट कम है। इस बार बंपर पैदावार है।''

''पिछले साल आलू का रकवा 46,200 हेक्टेयर था। इस बार करीब पांच फीसदी रकबा बढ़ा है।''
मनोज कुमार चतुर्वेदी, जिला उद्यान अधिकारी, कन्नौज

तारिक अनवर कहते हैं, ''हम बिहार के रहने वाले हैं। 15 साल से आलू की खरीद-फरोख्त करते हैं। कन्नौज ही आते हैं पुरानी जगह हैं। मंडी अच्छी है। आलू की बिक्री करते हैं। दो-तीन गाड़ी रोज उठाते हैं। कच्चा सौदा है, जो भी रेट बिकता है बेंच देते हैं। दुकानदारी है, पहले सफेद चलता है बाद में लाल निकलने लगता है। दोनों ही तरह का आलू ले जाते हैं।''


किसानों के पास रेट की सिर्फ उम्मीद

ब्लॉक उमर्दा क्षेत्र के झबरा निवासी 66 वर्षीय किसान रामशरन बताते हैं, ''कल आलू का रेट 400 के करीब था। उम्मीद की जा रही है कि लाल आलू 411 तकबिकना चाहिए। सफेद आलू तो केवल 200-250 रूपए पैकेट तक बिक रहा है। इसमें 55 किलो से कम नहीं होगा।''

आगे बताया, ''रेट कैसे निकले, खाद कितनी महंगी है। पानी भी फ्री नहीं है। 100-125 रूपए घंटा सिंचाई का लगता है। लेवर भी लगती है। हम लोग खुद करें तो कुछ पल्ले पडे़। काश्तकार को बहुत कम बचता है। संजा को भड़भड़ कटती है। मंडी में आलू बिक्री तो करना ही है।''

''कच्ची फसल का उत्पादन अच्छा है। पहले कम था। 60 दिन में जो आलू खुद गया वह कम निकला। 70-75 दिन वाला आलू सही निकल रहा है। किसान को कीमत ज्यादा अच्छी नहीं मिल रही है। आलू का एरिया ज्यादा है। 200 से 300 रूपए में किसान को क्या मिलेगा।''
डॉ. अमर सिंह, उद्यान वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र अनौगी, कन्नौज

किसान आदित्य कुमार बताते हैं, ''आलू की फसल बिक्री कर चुके हैं। 14 दिसम्बर 2018 को लाल आलू 425 रूपए पैकेट बेचा था। सफेद की अपेक्षा लाल महंगा बिकता है। अब 350-400 में लाल और सफेद 200 और 250 में चल रहा है।''

आगे बताया कि ''टैªक्टर से आलू मंडी ले जाते हैं। डीजल खर्च होता है। छह रूपए प्रति पैकेट उतरवाई का लिया जाता है। वहां आढ़ती लोग खरीदने के लिए आलू का रेट खोलते हैं। व्यापारी की तरफ से आढ़ती कमीशन भी लेते हैं। कन्नौज की तिर्वा मंडी में बिहार और पंजाब तक के लोग आलू खरीदने आते हैं। रात में माल लोड होता है। पैसा करीब आठ दिन बाद हम लोगों को मिलता है।''

68 वर्षीय कैलाशनाथ बताते हैं, ''जब हम कानपुर मंडी गए तो वहां आपस में ऐसी बात करते हैं कि जैसे दलाल करते हैं। 10-15 रूपए पैकेट के हिसाब से कम बेंचते हैं। व्यापारी और आढ़ती मिलकर आधा-आधा कर लेते हैं। पैकेट में हम लोगों को काफी नुकसान हो जाता है। व्यापारी और आढ़तियों का फायदा होता है।''

इतना आता है खर्च, सुनिए किसान की जुबानी

जनपद कन्नौज के 40 वर्षीय किसान आदित्य कुमार बताते हैं, ''एक बीघा खेती में हेरो से खुदाई का 130 रूपए देना होता है। कल्टीवेटर दो बार का 260 रूपए और खाद की बोरी 1,400 से अधिक की लग जाती है। पानी भी 100 रूपए प्रति घंटा के हिसाब से देना पड़ता है। पांच पानी लगते हैं, मिट्टी हल्की है। 150 रूपए के हिसाब से चार-पांच लेवर लगते हैं, जिनको भोजन भी देना पड़ता है। एक बीघा जमीन में पांच से छह पैकेट आलू बीज भी लग जाता है जो करीब 700 रूपए के हिसाब से आता है। भाड़ा और पल्लेदारी भी लगती है। करीब 20 पैकेट खेत में लाल आलू निकले हैं।''


फसल किसान की, दाम तय करते आढ़ती और व्यापारी

किसान कैलाशनाथ बताते हैं, ''हम लोग अपने आलू का रेट तय नहीं कर पाते हैं। रेट व्यापारी और आढ़ती ही तय करते हैं, जबकि फसल किसानों की होती है। इस बार खेतों में आलू तो सही निकल रहा है लेकिन दाम सही नहीं मिल रहा है।''

आगे बताया कि ''कच्ची फसल है का करो जाए। तीन-चार दिन में फसल खराब हुई जात है। इसलिए लौटाकर नहीं लाते हैं। वहीं बेंच देते हैं जो भी रेट मिल जाए। कई किसान सुनार से जेवर भी नहीं छुड़ा पाते हैं। हमारे यहां के ज्यादातार किसान पैसे न होने की वजह से जेवर ब्याज पर रख देते हैं, तब आलू की फसल करते हैं।''

दस रुपए का डेढ़ किलो तक बिक रहा आलू

तहसील तिर्वा क्षेत्र के तिघरा तिवासी फुटकर सब्जी विक्रेता बंटी राठौर बताते हैं कि ''अभी 10 रूपए का सवा किलो आलू बिक रहा है। छोटा आलू डेढ़ किलो तक बिक रहा है। कुछ दिनों से यही रेट चल रहा है। आगे रेट कम होने के आसार हैं।''

   

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