प्रदेश के किसानों के पास नहीं है सीधे उत्पाद बेचने की सुविधा

अमित सिंहअमित सिंह   22 Jun 2016 5:30 AM GMT

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लखनऊ। प्रदेश में किसानों के आगे सबसे बड़ी समस्या बाज़ार न होने की है। उनके पास कोई ऐसा बाज़ार नहीं जहां वो अपना सामान सीधे बेचकर मुनाफ़ा कमा सकें। ज्यादातर ज़िलों में बड़ी सब्जी और अनाज मंडियां हैं जहां एजेंट अनाज या सब्ज़ियां बेचने का काम करते हैं। अगर कोई किसान इन मंडियों में जाकर सीधे अनाज बेचना चाहे तो मंडियों में काम कर रहे एजेंट उन्हें ऐसा करने नहीं देते हैं। 

किसानों को मजबूरन अपने अनाज और सब्जि़यां मंडी एजेंटों को देनी पड़ती है जहां ये सामान बेचने के लिए किसानों से मोटा कमीशन वसूलते हैं।

फैज़ाबाद के किसान विवेक सिंह (30 वर्ष) बताते हैं, “सरकार बड़ी-बड़ी बातें करती है लेकिन किसानों के पास ऐसी कोई अदद जगह नहीं जहां वो अपनी सब्जियां और अनाज बेच सकें। जहां मंडियां हैं वहां मंडी एजेंटों और आढ़तियों का कब्जा है जो किसानों को सामान बेचने नहीं देते। किसान सब्जियां पैदा करने के बाद आखिरकार जाए तो जाए तो कहां।” 

वो आगे बताते हैं, “हरी सब्जियां 24 घंटे में खराब हो जाती हैं ऐसे में किसानों को मजबूरी में मंडी एजेंटों को कमीशन खिलाना पड़ता है और सस्ती कीमतों पर अपना सामान बेचना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि मंडी का कॉन्सेप्ट खत्म कर दे या किसानों के लिए भी ऐसी व्यवस्था करे ताकि वो अपना सामान मंडी आढ़तियों की तरह ही बेचकर मुनाफ़ा कमा सकें।’’

खेती किसानी से जुड़े लोगों का मानना है कि अगर किसानों को अपना सामान बेचने के लिए बाज़ार या मंडियां उपलब्ध करा दी जाएं तो इससे किसानों को कई मुश्किलें हल हो जाएंगी। यूपी के बांदा ज़िले के किसान प्रेम सिंह (52 वर्ष)बताते हैं, “किसानों का शोषण अगर हो रहा है तो उसके पीछे सरकार ही ज़िम्मेदार है। सरकार को मंडियों में लाइसेंसिंग सिस्टम खत्म कर देना चाहिए। ताकि किसान भी बाकी कारोबारियों की तरह ही बाज़ार में अपनी उपज को बेच सकें।”

सरकार अगर चाहे तो अलग अलग ज़िलों में किसानों के लिए मंडिया बना सकती हैं जहां ग्राहक खुद किसानों के पास जाकर उनसे सामान खरीद सकें। किसानों के लिए सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि उन्हें अपना सामान बेचने के लिए जगह ही नहीं मिलती है। सामान बेचने के लिए किसानों के पास बाज़ार भी उपलब्ध नहीं हैं। इस मजबूरी के चलते किसानों को आस-पास ही सस्ती कीमतों पर सामान बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 

लखनऊ यूनिवर्सिटी के सीनियर अर्थशास्त्री सोमेश शुक्ला कहते हैं, “सरकार किसानों की मदद नहीं कर रही है। उनके उत्पाद बेहतर बाज़ार नहीं होने की वजह से बिक नहीं पाते हैं और खराब हो जाते हैं। सरकार देश के नागरिकों का पेट भरने के लिए आयात करती है। अगर किसानों को बेहतर बाज़ार मिल जाए तो ना तो कालाबाज़ारी होगी और ना ही अनाज और सब्जियां खराब होने का खतरा पैदा होगा और जब किसानों की पैदावार खराब नहीं होगी तो बाज़ार में ना तो अनाज की कमी होगी और ना ही आलू और प्याज़ की।’’दिक्कत सिर्फ इतनी ही नहीं है किसानों से फुटकर बाज़ार तक पहुंचने में सब्जियों की कीमतें 400 फीसदी तक महंगी हो जाती हैं। 

मंडी जाने पर वहां मौजूद एजेंट भी औने-पौने दामों पर ही किसान से सब्जियां या अनाज खरीदते हैं। उदाहरण के लिए एक खुदरा कारोबारी किसान से भिंडी पांच रुपए किलो खरीदता है और उसे करीब 20 से 25 रुपए प्रति किलो के भाव पर बेचता है।

 बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सीनियर एग्री इकोनॉमिस्ट डॉक्टर चंद्रसेन बताते हैं, “सरकार अगर चाहे तो इन दिक्कतों को आसानी से ख़त्म कर सकती है। बस करना ये होगा कि किसानों को एक ऐसी जगह मुहैया कराई जाए जहां वो अपने उत्पादों को बेच सकें। सरकार चाहे तो ग्राम समाज की ज़मीनों का इस्तेमाल किसानों की भलाई के लिए कर सकती है। सरकार ज़मीन खरीदकर भी किसानों को दे सकती है। रेग्यूलेटेड मंडियों में ये सुविधा नहीं है लेकिन कुछ एक मंडियों में सरकार किसानों को ये सहूलियत दे सकती है।’’

सरकार ने अनाज की एमएसपी तो तय कर दी है लेकिन सब्िजयों की एमएसपी अभी तक तय नहीं की गई है। ऐसे में सब्जियां उगाने वाला किसान चाह कर भी मुनाफ़ा नहीं कमा सकता है। क्योंकि मंडियों में मौजूद एजेंटों के बीच पहले से ही सांठ-गांठ होती है। वो कमेटी में तय कीमत पर ही सब्जियां खरीदते हैं फिर चाहे किसान बेचना चाहे या नहीं बेचना चाहे। पूरी मंडी में किसान को एक कीमत मिलेगी जिसकी वजह से मजबूरी में किसानों को कम कीमत पर सब्जि़यां बेचनी पड़ती है।

 

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