लोक सेवा आयोग क्यों करे डॉक्टरों का चयन

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लोक सेवा आयोग क्यों करे डॉक्टरों का चयनगाँव कनेक्शन

रामप्रताप चौरसिया (35) जब डॉक्टर को दिखाने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (सीएचसी) पर पहुंचते हैं तो कभी उन्हें डॉक्टर नहीं मिलता और कभी लम्बी कतार मिलती है। स्वास्थ्य केन्द्र गाँव से लगभग 12 किमी दूर है और तीन से चार बार आने में किराया भी खर्च होता है। 

लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी दूर मोहनलालगंज के अमेठी गाँव के रहने वाले रामप्रताप बताते हैं, ''मुझे लगातार कई दिनों से बुखार आ रहा था दिखाने के लिए जब सीएचसी पहुंचा तो एक दिन कोई डॉक्टर नहीं मिले, दूसरे दिन लम्बी लाइन लगी थी, बारी आने पर डॉक्टर ने मुश्किल से 2 मिनट भी समस्या नहीं सुनी होगी और दवा पर चार दवाओं के नाम लिखकर बढ़ा दिया। केन्द्र पर केवल दो दवा मिल पाई बाकी बाहर से लेनी पड़ी।"

यही हालात प्रदेश के लगभग सभी अस्पतालों के हैं। अस्पतालों में सुविधाएं सभी को आसानी से मिले इसके लिए गाँव कनेक्शन कुछ सुझाव दे रहा है।

गृह जि़ले में हो डॉक्टरों की तैनाती

इस बारे में बलरामपुर जिला अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर लोकेश कुमार बताते हैं, ''डॉक्टरों की तैनाती उनके ही ज़िले में होनी चाहिए। कॉलेजों से एमबीबीएस कर रहे डॉक्टरों को एक साल या छह महीने तक तो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रैक्टिस करने का कहा जाए। इससे गाँव में कोई न कोई डॉक्टर हमेशा रहेगा। चूंकि ये इनकी डिग्री से संबंधित होगा तो वो लापरवाही भी नहीं करेंगे। दूसरा डॉक्टरों की तैनाती उनके ही जिले में की जाए, जिससे वो अस्पतालों में रहें अभी पोस्टिंग बहुत दूर-दूर क्षेत्रों में की जाती है इसलिए डॉक्टर 15 दिन जाते हैं बाकी नहीं।" प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर स्वास्थ्य, जिसमें तरह-तरह की योजनाएं, टीकाकरण आदि के लिए लोगों को जागरूक करना होता है, मरीजों के इलाज और उपचार पर कम ध्यान होता है इसके लिए एमबीबीएस डॉक्टरों का रूझान ज्यादा नहीं होता तो यहां दो श्रेणी में डॉक्टर रखने चाहिए, एक जो केवल योजनाओं की जागरूकता के लिए हो ये आईएएस डॉक्टर हो सकते हैं। दूसरा जो केवल मरीजों के इलाज पर ध्यान दें ये एमबीबीएस डॉक्टर हो सकते हैं।

डॉक्टरों की चयन प्रक्रिया को आसान बनाएं

डाक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए कैम्पस इन्टरव्यू का माध्यम अपनाया जा सकता है। अभी डॉक्टरों की भर्ती लोक सेवा आयोग करता है, जिसकी चयन प्रक्रिया में काफी समय लगता है। एक खाली पद की भर्ती के लिए पहले विज्ञापन निकाला जाता है फिर उस पर कई सारे आवेदन आते हैं उसके बाद चरणों में चयन प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें जितना समय लगता है, उतने में और भी डॉक्टर सेवानिवृत्त हो जाते हैं।

नान प्रैक्टिसिंग एलाउंस बंद हो

सरकारी डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस न करने के लिए सरकार 25 फीसदी वेतन ज्यादा देती है लेकिन ज्यादातर डॉक्टर फिर भी चुपचाप प्रैक्टिस करते हैं। अगर सरकार इस बजट को खत्म करके उसे दवा के बजट में शामिल कर दे, जिस पर स्वास्थ्य बजट का सबसे कम अंश है तो दवाओं की कमी नहीं होगी और डॉक्टरों को ये सुविधा दे दी जाए कि अगर वो ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज करते हैं तो अपने कार्य समय के बाद उसी केन्द्र पर सरकार से निर्धारित शुल्क मरीजों से लेकर इलाज कर सकते हैं। इससे अस्पतालों में देर तक मरीजों को डॉक्टर मिलेंगे, जिसे पैसे न देकर इलाज कराना हो वो 10 से 2 बजे आए और जो सक्षम हैं वो पैसे देकर भी इलाज करा सकते हैं। इससे भीड़ भी कम होगी और डॉक्टर पर मरीजों का बोझ कम होगा। गोसाईंगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के मुख्य अधीक्षक अजय अग्रवाल बताते हैं, ''ये बात सही है कि अगर ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों को कुछ अतिरिक्त सुविधाएं दी जाएं तो वो जरूर गाँवों में रूकेंगे। अभी उनको वो सुविधाएं नहीं मिलती तो शहर का आराम छोड़कर कोई गाँव क्यों आना पसंद करेगा। लेकिन हर साल हजारों युवा मेडिकल छात्र पास होकर निकलते हैं जिनके पास नौकरी नहीं है अगर उन्हें मौका दिया जाए तो वो जरूर करेंगे।"

सरकार करे डॉक्टरों की मेरिट के आधार पर भर्ती

डॉक्टरों के चयन प्रक्रिया में अभी काफी समय लग जाता है क्योंकि इनका चयन कई चरणों में होता है। इसलिए अगर डॉक्टरों का चयन कैम्पस इंटरव्यू के माध्यम से किया  जाए।

हर ग्राम पंचायत में हो टेलीमेडिसिन सुविधा

ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों पर डॉक्टर समय पर नहीं मिलते। अगर टेलीमेडिसिन विधा को बढ़ावा मिले तो हर पंचायत तक बेहतर और विशेषज्ञ डॉक्टरों से इलाज संभव हो सकता है। 

हर जि़ले में सैनेटरी नैपकिन यूनिट हो

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं माहवारी के समय आज भी कपड़े का इस्तेमाल करती हैं अगर हर जिले में सैनेटरी नैपकिन यूनिट लगा दी जाए और आशा बहुओं को इसके वितरण की जिम्मेदारी सौंप दी जाए तो सभी महिलाओं को सस्ते दरों पर सैनेटरी नैपकिन्स मिल जाएगी।

दवा के बजट को बढ़ाया जाए

डॉक्टरों के नॉन प्रैक्टिस एलाउंस (एनपीए) को बंद कर उस बजट को दवा में जोड़ा जाए। इससे दवाओं की कमी नहीं होगी। गाँवों में डॉक्टरों को ड्यूटी के बाद प्रैक्टिस करने की आज्ञा दे दी जाए। इससे स्वास्थ्य केन्द्रों पर ज्यादा समय तक डॉक्टर रहेंगे। 

 

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