खरबूजा किसानों का दर्द: कहां 2 से 2.5 लाख का मुनाफा होता, कहां 5-10 हज़ार के भी लाले पड़ गए
सतना जिले में पड़ने वाले एक बांध बकिया बराज के कछार में करीब 300 किसान 1500 एकड़ में खरबूजे की खेती करते हैं। पहले लॉकडाउन के चलते इनका मॉल बाहर नहीं जा पाया और बाद में तौकाते तूफान के चलते हुए बारिश से कछार में पानी भर गया, किसानों की माने तो करीब 70 फीसदी फसल बर्बाद हो गई।
Sachin Tulsa tripathi 7 Jun 2021 1:08 PM GMT
बकिया बैलो (सतना, मध्यप्रदेश)। "1 लाख 25 हज़ार रुपये खर्च किये थे। उम्मीद लगाई थी कि इस साल दो-ढाई लाख का मुनाफ़ा होगा लेकिन किस्मत मारी गयी। पांच-दस हज़ार भी नहीं आये। ऊपर से कर्ज वाले भी परेशान कर रहे हैं।"
यह कहते-कहते अन्नू देवी साकेत (58 वर्ष) की आंखें डबडबा आयीं। अन्नू देवी मध्य प्रदेश के सतना जिले के गांव बकिया बैलो की किसान हैं। वह चक्रवात (ताऊते और यास) आने के बाद खरबूजे की खेती खराब हो जाने के बारे में बता रहीं थीं।
"इस साल की खेती से खर्चे नहीं निकल पा रहे। हम पति-पत्नी दो बेटे, कई बार उनकी बहुओं को भी काम में लगाया। इसके बाद भी जरुरत पड़ने पर गांव के 6-7 लोगों को मज़दूरी में लगाया था, लेकिन आंधी-पानी में फसल बर्बाद हो गयी। वो मजदूरी मांग रहे, लेकिन कहां से दें।" अन्नू आगे जोड़ती हैं।
मध्य प्रदेश के सतना जिले में रामपुर ब्लॉक में बकिया बराज बांध है। इस बांध के कछार (किनारे की सूखी जमीन) में दर्जनों गांवों बकिया तिवरियान, कंदवा, देउरी, गोलहटा, थथौरा आदि गाँव के दो-तीन सौ परिवार गर्मियों में मौसमी फल और सब्जियों की खेती करते हैं। यहां का खरबूजा बेहद स्वादिष्ट होता है। इसलिए ज्यादातर किसान खरबूजे की खेती करते हैं। लेकिन मई महीने में चक्रवाती तूफान ताउते के चलते हुए मूसलाधार बारिश से कछार में पानी भर गया और हजारों एकड़ तैयार फसल बर्बाद हो गई।
ये मान लीजिए कि करीब 65-70 फीसदी फसल खेत में ही सड़ गई। पानी निकल नहीं तो उसी में खरबूजा सड़ गया। जो खरबूजा थोक में 20 किलो जाता था उसे 5 रुपए किलो तक बेचना पड़ा।- अमित तिवारी, खरबूजा किसान
सतना जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर बकिया गांव के किसान वीरेंद्र तिवारी (52 वर्ष) ने 'गांव कनेक्शन' से कहा, "बांध के करीब 3000 एकड़ के कछार का पानी दिसंबर-जनवरी माह के बीच नीचे उतर जाता है। जिसमें खरबूजे और तरबूजे की खेती की जाती है। बाकी बचे 1500 एकड़ में कुछ किसान सब्जियां उगाते हैं। यह करीब पांच सालों से चला आ रहा। मार्च के अंतिम दिनों से खरबूज की फसल निकलने लगती है, जो जून तक निकलती है।"
1500 एकड़ के रेत और मिट्टी से भरे बकिया बांध के कछार में इस साल खरबूजे का बम्पर उत्पादन हुआ। लेकिन पहले लॉकडाउन के चलते मंडियां बंद रही, माल बाहर नहीं भेजा जा सकता और बाद में तूफान (Cyclone Tauktae) की बारिश ने भारी नुकसान पहुंचाया।
DISTRICTWISE RAINFALL FORECAST 11.05.2021 TO 15.05.2021 CONTD. pic.twitter.com/iN2lQbfHbN
— Mausam Bhopal (@BhopalMausam) May 11, 2021
बकिया बैलो गांव के एक किसान अमित तिवारी (30 वर्ष) बताते हैं, "ये मान लीजिए कि करीब 65-70 फीसदी फसल खेत में ही सड़ गई। पानी निकल नहीं तो उसी में खरबूजा सड़ गया। जो खरबूजा थोक में 20 किलो जाता था उसे 5 रुपए किलो तक बेचना पड़ा।"
किसान मोनू साकेत (35) 'गाँव कनेक्शन' से कहती हैं, "5-5 साल के बच्चे हैं। इसके बाद भी खेत में जाकर खरबूजे की फसल के लिए मेहनत है लेकिन मेहनत के हिसाब से रेट नहीं मिल रहा। बारिश के कारण फसल खराब हो गई। इसके बाद में 25 रुपए में 5 किलो तक का ही रेट मिल पाया। शुरू में जब फसल आई थी तो 20 रुपये किलो तक बिका है। लॉक डाउन के कारण कई दिनों तक खरबूज खेत में ही पड़ा रहा।"
स्थानीय प्रशासन से मिले रिकॉर्ड अनुसार सतना जिले में बड़ी क्षमता वाले 20 बांध हैं। बकिया बराज बांध इकलौता है जो हाईडल प्रोजेक्ट के लिए बनाया गया है। यह बांध वर्ष 1991 में बन कर तैयार हुआ था। बाकी के 19 बांधों को स्थानीय नदियों पर बनाया गया है जिनका निर्माण सिंचाई के लिए हुआ है। बकिया बांध टोन्स नदी पर बना हुआ है। टोंन्स, यमुना नदी की सहायक नदी है। इसका उद्गम उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल से हुआ है। इसका कुल कैचमेंट एरिया 16,905 स्क्वायर किलोमीटर का है। यह मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य से होकर गुजरती है। इसका प्रवाह सतना जिले में भी है।
किसान इस बात से चिंतित कैसे चुकाएंगे कर्ज
कछार में खरबूजे की खेती के लिए कई किसानों ने बैंक तो कई किसानों ने गांवों के साहूकारों से कर्ज़ लिया था।
बकिया के किसान अमित तिवारी 2 साल के खरबूजे की खेती कर रहे हैं। पिछले साल खरबूजा लगाया लेकिन लॉकडाउन लग गया। सरकार ने 21 दिन कहा था फिर 4-5 महीने हो गए। उस साल हम कर्ज में डूब गए। हमको बैंक भी कर्ज नहीं देता है। साहूकार से 2 रुपए सैकड़ा पर पैसा लिया। जब बेचने का नंबर आया तो कोरोना आ गया। इस साल फिर वहीं हाल है। हम लोग कहां जाए। बच्चे पालने हैं।"
बकिया बैलो के किसान कुलपति सिंह (35 वर्ष) ने पिछले साल 8 लाख का ट्रैक्टर लिया था, जिसकी छमाही किस्त 70 हजार रुपए है। खरबूजे हो जाते तो कुपलति के लिए ये रकम बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन अब उनके हाथ खाली हैं।
कुलपति कहते हैं, "4-5 एकड़ में खरबूजे की खेती करते हैं जिसमें 2-3 लाख की आमदनी हो जाती है। खरबूजा बेच किस्त देनी थी। अब क्या देंगे।"
इसी गांव के एक और किसान वीरेंद्र तिवारी खरबूजा बेचकर ट्रैक्टर लाने की योजना बनाए थे। तिवारी कहते हैं, " ट्रैक्टर तो आ नहीं पाएगा जो कर्ज है थोड़ा बहुत वो भी नहीं चुका पाएंगे।"
भारत सिर्फ बकिया बराज ही नहीं लगभग हर नदी के कछार और डैम के आसपास किसान गर्मियों के मौसम में सब पानी खत्म हो जाता है तो परवल, तरबूज, खरबूजा, लौकी, तरोई, कुंदरू, करेला, नेनुआ जैसी फसलें उगाते हैं। मॉनसून आने से पहले ये फसलें खत्म हो जाती हैं। पानी की यहां जरुरत कम होती है और जमीन भी उपजाऊ होती है लेकिन ये खेती पूरी तरह किसानों के जोखिम पर होती है। मौसम रहा रहा तो अच्छी कमाई, बारिश तूफान या कोई आपदा आई तो फसल तबाह। यहां तक की कई इलाकों में ऐसी खेती सरकारी आंकड़ों में भी नहीं होती है।
सरकारी आंकड़ों में खरबूजे का जिक्र तक नहीं
सतना जिले बकिया गांव समेत कछार में एक दर्जन से ज्यादा गांवों के करीब 300 परिवार कछार की खेती पर निर्भर हैं। लेकिन इसका रिकॉर्ड उद्यानिकी विभाग सतना के पास नहीं है। यहां तक कि फल सब्जी के उत्पादन रिकॉर्ड में भी खरबूजे का ज़िक्र तक नहीं है।
सतना के उप संचालक अनिल सिंह ने बताया, "बकिया और आसपास के किसान कृषक भूमि पर खरबूज और तरबूज नहीं उगाते हैं। इसलिए यह रिकॉर्ड में नहीं आता। बकिया और आसपास के किसान बांध के कछार में यह खेती कर रहे हैं।"
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