इस तरकीब से जल प्रबंधन का मॉडल बना आदिवासी गाँव पल्थरा, एक एक बूंद का हो रहा है इस्तेमाल

मध्य प्रदेश के घने जंगल के बीच स्थित छोटा सा आदिवासी गाँव पल्थरा स्वच्छता और जल प्रबंधन का मॉडल विलेज बन चुका है। इस गाँव के हर घर में किचन गार्डन है, जहाँ नहाने धोने वाले पानी का उपयोग होता है।

Arun SinghArun Singh   29 Aug 2023 11:40 AM GMT

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पल्थरा, पन्ना (मध्य प्रदेश)। इस गाँव में अब न गंदगी दिखती है और न ही पानी की एक बूँद बर्बाद होती है, तभी तो ये गाँव आज मॉडल विलेज बन गया है।

पल्थरा गाँव की 60 वर्षीय सहज रानी गोंड बड़े उत्साह के साथ अपनी बगिया को दिखाते हुए गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "हमारे घर में नहानी (बाथरूम) बन गई है, अब हम वहीं नहाते और कपड़ा धोते हैं। यह पानी बहकर बर्बाद नहीं होता, पाइप से होकर बगिया में चला जाता है। घर की बगिया में भटा, मिर्च और टमाटर लगे हैं, जिससे सब्ज़ी खरीदनी नहीं पड़ती।"

जिला मुख्यालय पन्ना से 27 किलोमीटर दूर लगभग डेढ़ सौ की आबादी वाला पल्थरा गाँव रहुनिया पंचायत में आता है। इस पंचायत में पल्थरा के अलावा पाठा, गुड़हा, पाली व गुजार गाँव भी आते हैं। सभी गाँव जंगल से लगे हुए हैं और यहाँ रहने वाले ज़्यादातर लोग आदिवासी समुदाय के हैं। डेढ़ दो दशक पहले तक इन गाँवों तक पहुँचने के लिए ना तो सड़क मार्ग था और ना ही आवागमन के साधन, जंगली रास्ते से होकर लोगों को पैदल या दो पहिया वाहन से जाना पड़ता था।


लेकिन अब पक्की सड़क बन गई है तथा आदिवासियों के बच्चों में शिक्षा के प्रति भी रुझान बढ़ा है। पल्थरा गाँव में 32 आदिवासी परिवार रहते हैं, इन परिवारों के शत प्रतिशत बच्चे स्कूल जाते हैं। गाँव में प्राथमिक शाला के अलावा आंगनबाड़ी केंद्र भी है।

पल्थरा गाँव के 67 वर्षीय जनक सिंह गोंड कहते हैं, "जल जीवन मिशन के तहत घरों में नल लगने के बाद गांव में स्वच्छता और पानी के प्रबंधन पर समाजसेवी संस्था समर्थन के सहयोग से चार माह पहले काम शुरू हुआ। इस काम में गाँव के लोगों ने भी रुचि ली और सहयोग भी किया। इसका कारण अब नल से आने वाले पानी की बिल्कुल भी बर्बादी नहीं होती।"

यहाँ गंदे पानी को साफ करने की व्यवस्था है, ताकि इस पानी का उपयोग सब्ज़ी भाजी की सिंचाई में हो सके। जनक सिंह आगे कहते हैं, "पहले जब नल नहीं था तो हैंडपंप से पानी लेते थे। उस समय जल प्रबंधन की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी, जिससे गंदा पानी जहाँ तहां बहकर गंदगी और कीचड़ करता था। इससे जहाँ बीमारियाँ फैलती थीं वहीं वातावरण भी दूषित रहता था। लेकिन अब हमारा गाँव बदल गया है, कहीं भी गंदगी और कीचड़ नहीं दिखेगा।"

गंदे पानी का किया जाता है प्रबंधन

गाँव में घरों से निकलने वाले पानी का ट्रीटमेंट करके दूसरे कामों में लिया जाता है। स्वच्छता और जल प्रबंधन के विशेषज्ञ और पल्थरा गाँव में समर्थन संस्था के सलाहकार रहे राजकुमार मिश्रा गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "शौचालय को छोड़कर घरों में नहाने, कपड़ा धोने और दूसरे उपयोग से जो पानी निकलता है उसे ही ग्रे वाटर या गंदला पानी कहते हैं। पल्थरा गाँव में इसी पानी को साफ कर उसे दोबारा उपयोग में लाया जा रहा है।"

इस छोटे से गाँव पल्थरा में ग्रे वॉटर प्रबंधन का काम समुदाय के सहयोग से बीते तीन-चार माह में पूरा किया गया है। इसके पहले गाँव में 80 फ़ीसदी पानी बर्बाद होता था, जिससे कीचड़ और गंदगी होती थी। राजकुमार मिश्रा आगे कहते हैं, "गाँव के लोग जहाँ पर नहाते और कपड़े धोते थे, वहाँ और हैंडपंप के आसपास पानी फैलने से कीचड़ मचा रहता था। यही कीचड़ युक्त गंदा पानी मवेशी पीते थे, पूरा वातावरण दूषित और नारकीय था। इस बर्बाद होने वाले पानी का प्रबंध होने से अब एक-एक बूंद पानी का उपयोग सुनिश्चित हुआ है।"


समाजसेवी संस्था समर्थन के सहयोग से अब इस गाँव के हर घर में नहानी (स्नान घर) बनी है। यहाँ नहाने और कपड़े धोने से निकलने वाला गंदा पानी सिल्ट चेंबर में जाकर साफ होता है और गृह वाटिका में पहुँचता है। बाकी पानी पाइप लाइन के माध्यम से हौदी (टैंक) में पहुँच जाता है। सभी घरों की नहानी तथा गाँव के दो हैंडपंपों को हौदी से जोड़ा गया है, जहाँ अतिरिक्त पानी इकट्ठा होता रहता है। अब गाँव के मवेशी इसी हौदी में भरे पानी को पीते हैं।

इस हौदी के भरने पर वहीं पास में एक और टैंक बना है, जिसमें पानी पहुँच जाता है। इस टैंक में ग्राम वासियों ने कमल के फूल लगा दिए हैं, जिससे कीचड़ व गंदगी के बजाय यहाँ की रौनक व सुंदरता और बढ़ गई है।

गाँव वालों के सहयोग से शुरू हुई पहल

मध्य प्रदेश के कई जिलों में स्वच्छता और जल प्रबंधन का काम करने वाले राजकुमार मिश्र ने गाँव कनेक्शन को बताया कि पूरे प्रदेश में ऐसा कोई भी गाँव नहीं है, जहाँ ग्रे वाटर प्रबंधन के लिए निर्धारित पूरे ट्रीटमेंट हुए हों।

ग्रे वाटर प्रबंधन के तीन सिद्धांत हैं, जिसे थ्री आर कहते हैं। इसमें रिड्यूस यानी पानी का कम से कम उपयोग, रियूज यानी कि गंदे पानी को साफ करके उसका दोबारा उपयोग और तीसरा सिद्धांत बचा पानी जिसका उपयोग ना हो सके उसे रिचार्ज कर दिया जाए।


पल्थरा गाँव में रिचार्ज की नौबत नहीं आ रही, पूरा का पूरा पानी उपयोग हो रहा है। पल्थरा गाँव के 60 वर्षीय गुलाब सिंह गोंड 60 वर्ष ने गाँव कनेक्शन को बताया कि नहाने और कपड़े धोने में बर्बाद होने वाले पानी के प्रबंधन का यह काम चार माह में पूरा हुआ है। गर्मियों में पूरे चार माह तक राजकुमार मिश्रा ने हमारे गाँव में ही रहकर काम कराया है।"

गुलाब सिंह ने अपने घर का एक कमरा जिसमें भूसा भरा रहता था, उसे खाली करके साफ किया, इसी कमरे में चार महीने तक राजकुमार मिश्रा रहे। इस दौरान गांव के लोगों ने इनका पूरा ध्यान रखा और काम में भी भरपूर सहयोग किया।

समर्थन के रीजनल कोऑर्डिनेटर ज्ञानेंद्र तिवारी बताते हैं, "पल्थरा गाँव के लोगों को संस्था द्वारा ग्रे वॉटर प्रबंधन का प्रशिक्षण भी दिया गया है, ताकि जल प्रबंधन का काम बिना किसी रूकावट के संचालित होता रहे।"

पूरी प्रक्रिया में पल्थरा गाँव के सभी पुरुषों, महिलाओं व बच्चों की भी भागीदारी रही है। पन्ना जिले का यह छोटा सा आदिवासी गाँव अब ग्रे वॉटर प्रबंधन के मामले में मॉडल विलेज बन गया है।


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