मुसहरों की जिंदगी : बच्चा रोटी मांगता है बेबस मां रात तक इंतजार करने को कहती है...

मुसहरना हथिया फाटक, मिर्ज़ापुर से, देखिए गांव कनेक्शन की रिपोर्टर जिज्ञासा मिश्रा की दिल को झकझोर देने वाली #PhotoStory जिसमे बस्ती के हाल को दर्शाया गया है।

Jigyasa MishraJigyasa Mishra   31 July 2018 7:11 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
मुसहरों की जिंदगी : बच्चा रोटी मांगता है बेबस मां रात तक इंतजार करने को कहती है...Photo by Jigyasa Mishra

मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश)। दिल्ली में पिछले दिनों जो घटना हुई, जिसमें तीन बच्चियां भूख से मर गईं। कुछ लोगों को शायद भरोसा न हुआ हो कि ऐसा भी होता है, तो कुछ लोगों ने इसे महज एक घटना मान लिया होगा। लेकिन ये 2-3 बच्चियां नहीं.. देश में ऐसे कई इलाके हैं जहां की पूरी की पूरी बस्तियों के लोगों को हर दिन भर पेट खाना नहीं मिलता।

यकीन करना भले मुश्किल हो, लेकिन मैं उन लोगों से मिलकर आईं हूं,जहां दोपहर दो बजे के आसपास मां से खाने को रोटी मांगता है और मां कहती है रात तक इंतजार करें, क्योंकि घर में इस वक्त के लिए खाने को कुछ था नहीं, और कुछ बना भी दिया तो शाम को क्या खाएंगे। उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ और बनारस के बीच एक जिला पड़ता है नाम है मिर्जापुर... खनन, दरी, नक्सल, चीनी मिट्टी के साथ ये जिला एक और चीज के लिए कई बार ख़बरें में रहता है, क्योंकि यहां मुसहरों की बड़ी आबादी रहती है। मुसहर जिनके बारे में कहा जाता है कि वो चूहे खाते हैं।

मुसहर, यूपी के अलावा झारखंड और बिहार में भी रहते हैं। आम आबादी से कटे वनों-जंगलों के करीब रहने वाले ये सभी लोग चूहे तो नहीं खाते, लेकिन कई जगहों पर चूहे अब भी खाए जाते हैं। पहले मुझे भी लगता था ऐसा कैसे हो सकता है.. कई बार ऐसी ख़बरों पर मैंने भरोसा तक नहीं किया लेकिन मिर्जापुर में हथिया फाटक के पास मुसहरना गांव में जाकर मेरी कई भ्रांतियां टूट गईं।

खैर मुसहरों पर आते हैं। मुसहर जंगलों से पत्ते तोड़कर बीनकर लाते हैं, पूरा परिवार मिलकर उनके पत्तल बनाता है। ये इस काम में पारंगत है, मशीन की तरह हाथ चलते हैं, दिनभर में काफी पत्तल तैयार भी कर लेते हैं, लेकिन जब वो बाजार पहुंचते हैं वो इतनेे पैसे नहीं मिलते की घर की जरुरतें पूरी हो जाएं। आज इक्कीसवी सदी में भी मुसहरों को अछूत माना जाता है।

पहली तस्वीर में मुसहर वनवासियों के एक गाँव में, भूख से व्याकुल बच्चा अपनी माँ से खाना मांगता है।घर में, माँ के पास कुछ खाने के लिए नहीं है तो वह बच्चे को बोलती है की रात में रोटी देगी। अपने बच्चे को खाना देने में असमर्थ, असहाय होकर, माँ उसे दिलासा देती है तो भूखा, मायूस बच्चा माँ से लिपट जाता है। पांचवीं तस्वीर में बच्चे की प्रतिक्रिया साफ़ दिखती है। नौवीं तस्वीर में कलावती की दुविधा देखिये... तस्वीरों में देखिये आगे क्या होता है।

मुसहरना हथिया फाटक, मिर्ज़ापुर से, देखिए गांव कनेक्शन की रिपोर्टर जिज्ञासा मिश्रा की फोटो स्टोरी #PhotoStory जिसमे बस्ती के हाल को दर्शाया गया है।

(1/15) अम्मा ... रोटी!




भूख से व्याकुल बच्चा अपनी माँ से खाना मांगते हुए....






(2/15) अभी नहीं है रोटीरात में दूँगी...




माँ द्वारा खाना न होने की जानकारी मिलने पर ...








(3/15) अभी चाहिए ... अम्मा




अपनी भूख बयां करता बालक ...







(4/15) चलो अभी चलकर खेलो




जब एक माँ के पास अपने बच्चे के लिए खाने का एक निवाला भी नहीं होता ...







(5/15) नोट- यहाँ हमें उपयुक्त कैप्शन के लिए शब्द नहीं मिले




भूखे पेट खेलने कैसे जाऊं ...







(6/15)




बस्ती के ज़्यादातर बच्चों में कुपोषण के लक्षण दिखते हैं।







(7/15) इस से ज़्यादा नहीं मुस्कुराते हम, जल्दी खींचो फ़ोटो




जब बच्चों को दो वक़्त की रोटी न दे पाने के दुख में चेहरों से ख़ुशी खो जाती है ...







(8/15)




तो सिर्फ बच्चों की ख़ुशी ही माँ-बाप को खुश करती है ...







(9/15) लॉलीपॉप




किसी कीमती तोहफ़े के नहीं होते ये, एक लॉलीपॉप में पैक होती है बच्चों की ख़ुशी







(10/15) ये बच्चियां भी स्कूल जाना चाहती हैं, पर दुसरे बच्चे इन्हें परेशान करते हैं




'छुआछूत' का पाठ पढ़ चुके दुसरे बच्चे, इन्हें अपने साथ स्कूल में नहीं पढ़ने देते







(11/15)




डरे, सहमे से ये बच्चे, ज़्यादा तो नहीं बताते लेकिन इनकी आंखें सब बोल जाया करती हैं ...







(12/15) चावल का एक ढेला और कलावती मुसहर के दो बच्चे




पड़ोस के ही झोपड़े में रहने वाले ये बच्चे चावल के एक ढेले को ही आधा-आधा बाँट कर खा चुके हैं ... देख पाना मुश्किल था की कैसे बच्चे ने फिर मिटटी पर गिरे चावल के दानों को भी उठा कर खाया







(13/15)











(14/15) बस्ती का एक परिवार




जातिवाद के कारण मजदूरी न मिलने पर पत्तों को बेचकर गुज़ारा करना ही इनके लिए आय का ज़रिया है







(15/15) एक फोटो हमारी मुर्गी के साथ भी




कभी कभार दो वक़्त की या कभी एक वक़्त की रोटी, एक-आद जोड़ी कपड़े और कुछ मुर्गियां .... बस यही है इनकी ज़िन्दगी।

                

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.