संस्मरण: ‘तभी लौटूंगी जब मुख्यमंत्री बनूंगी’

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संस्मरण: ‘तभी लौटूंगी जब मुख्यमंत्री बनूंगी’जयललिता, एक करिश्माई व्यक्तित्व थीं। क्या पुरुष, क्या महिला सबने उनको ‘अम्मा’ का दर्जा दिया और वो महिला नहीं महामहिला बन गईं। साभार : गूगल

1989 का वह दिन भूले नहीं भूलता। 25 मार्च को तमिलनाडु विधानसभा में मुख्यमंत्री करुणानिधि बजट भाषण दे रहे थे। इसी बीच कांग्रेस के एक विधायक ने सदन में विपक्ष की नेता जयललिता के साथ पुलिस के गलत बर्ताव का सवाल उठा दिया।

कुछ देर बाद जयललिता भी अपने स्थान पर खड़ी हो गईं और उन्होंने कहा कि सभापति जी हां मेरे साथ पुलिस ने जानबूझकर ऐसा किया। मुख्यमंत्री के कहने पर मेरे खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई की। मेरा फोन टैप किया गया। सभापति जी ने कहा कि बजट भाषण के कारण आपकी इस शिकायत पर बहस कराने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस पर एआईएडीएमके के सदस्य वेल में आकर हंगामा करने लगे। एक विधायक ने मुख्यमंत्री को धक्का दे दिया। इससे उनका संतुलन बिगड़ा और उनका चश्मा नीचे गिरकर टूट गया। विपक्ष के एक विधायक ने बजट के पन्ने फाड़ दिए। बवाल होते देख सभापति जी ने कार्यवाही स्थगित कर दी।

इस पर जैसे ही जयललिता सदन से बाहर निलकने लगीं, सत्तारूढ़ दल डीएमके के एक विधायक ने उनको रोकने का प्रयास किया। उसने उनकी साड़ी पकड़कर खींची। उनकी साड़ी फट गई। पल्लू गिर गया और जयललिता भी गिर गईं। एआईडीएमके के एक सदस्य ने किसी तरह उस डीएमके विधायक के चंगुल से जयललिता को छुड़ाया। उसी समय जयललिता ने यह कसम खाई की कि सदन में तभी लौटूंगी जब मुख्यमंत्री बनूंगी।

जयललिता (24 फरवरी 1948 से 6 दिसंबर 2016)

अधूरी रह गई वकालत करने की तमन्ना

जयललिता के पिता की वह जब दो साल की थीं तभी मौत हो गई। वह पढ़ाई में बहुत तेज थीं लेकिन पिता की मौत से उनका पिता के साथ वकालत करने का सपना अधूरा रह गया। पिता ने उनका नाम कोमलवल्ली रखा था। बाद में इसे बदलकर जयललिता किया गया। वह भी उन दो मकानों के कारण, जिसमें पहले का नाम 'जय विलास' और दूसरे का नाम 'ललिता विलास' था। इसी को जोड़कर उनका नाम जयललिता पड़ा। पति की मौत के बाद जयललिता की मां बच्चों के साथ अपने पिता के यहां आ गईं। वहां उन्होंने परिवार का खर्च चलाने के लिए शार्टहैंड और टाइपराइटर चलाना सीखा। इस बीच जयललिता की मौसी अम्बुजावल्ली मद्रास चली गईं और वहां पर फिल्मों में काम शुरू कर दिया। उन्होंने जयललिता की मां वेदवल्ली को भी मद्रास बुला लिया और फिल्मों में एक्टिंग का काम दिला दिया। जयलिलता की परवरिश उनकी दूसरी मौसी पद्मवल्ली और नाना-नानी ने की। जयललिता अपनी मां से सिर्फ गर्मी की छुट्टियों में मिल पाती थीं। यहीं से जयललिता के फिल्मों में जाने की नींव पड़ी जो उन्हें कतई पसंद नहीं था।

पढ़ाई में अच्छी थीं जयललिता

वह पढ़ाई में इतनी अच्छी थीं कि दसवीं में पूरे तमिलनाडु में वरीयता सूची में दूसरा स्थान पाई थीं। एक बार गर्मियों की छुट्टियों में वह अपनी मां के साथ निर्माता वीआर पुथूलू के यहां एक समारोह में गईं। वहीं उन्हें फिल्मों में एक्टिंग का पहला आफर मिला। उनकी मां ने प्रस्ताव सुनकर 'हां' कर दी। दूसरी ही फिल्म में जयललिता को उस समय के चोटी के अभिनेता एमजी रामचंद्रन के साथ काम करने का आफर आया। एमजीआर जयललिता से उनके अंग्रेजी ज्ञान की वजह से काफी प्रभावित रहते थे। यही नहीं उस समय जयललिता के बराबर शायद ही कोई सुंदर हीरोईन थी।

जब एमजीआर ने उठा लिया था गोद में

एक बार की बात है, रेगिस्तान में शूटिंग के दौरान धूप तेज होने के कारण रेत काफी गर्म थी। यह देख एमजीआर ने जयललिता को गोद में उठा लिया ताकि उनके पैर न जलें। यह वाकया बताता है कि एमजीआर जयललिता को काफी पसंद करते थे। इसका जिक्र जयललिता ने एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में किया था।

जयललिता ने सिनेमा में नाम बहुत कमाया लेकिन उन्हें फिल्म में काम करना पसंद नहीं था। साभार : गूगल

एमजीआर के जाने के बाद चमकी राजनीति

जयललिता और एमजीआर के संबंधों को ज्यादातर लोग पसंद नहीं करते थे। खासकर एमजीआर के घरवाले। जब एमजीआर का निधन हुआ तो जयललिता को उनके घर में घुसने तक नहीं दिया गया।

जयललिता एमजीआर के घर पहुंचीं और गेट पर खटखटाया। लेकिन गेट नहीं खोला गया। इस बीच किसी ने उनसे कहा कि एमजीआर का शव जनता के दर्शन के लिए राजाजी हाल में रखा गया है तो वह तुरंत अपनी कार से वहां पहुंचीं। वहां भी उनको एमजीआर के पार्थिव शरीर के पास पहुंचने से रोका गया लेकिन वह काफी मशक्कत के बाद वहां पहुंचने में कामयाब हो गईं। इतने सब के बाद भी उनकी आंखों में एक भी आंसू नहीं था। लेकिन वह दो दिन तक एमजीआर के सिरहाने खड़ी रहीं।

पहले दिन 13 घंटे और दूसरे दिन 8 घंटे। इस बीच एमजीआर की पत्नी जानकी की कुछ महिला सहयोगियों ने जयललिता पर हमला कर दिया। उन्हें कुचलने की कोशिश की। कुछ न उन्हें चिकोटी काटी ताकि वह वहां से चली जाएं। लेकिन जयललिता भी कम हठी नहीं थीं। वह टस से मस तक नहीं हुईं। जब एमजीआर का पार्थिव शरीर गन कैरेज में रखा गया तो उन्होंने साथ जाने की कोशिश की। इस पर जानकी के भतीजे दीपन ने उन पर हमला कर दिया। उन्हें गन कैरेज से नीचे गिरा दिया। इसके बाद जयललिता अपने घर लौट गईं। फिर 1992 में चुनाव हुआ और उन्होंने पहली जीत दर्ज की। मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

(साभार- अम्मा: जयललिताज जर्नी फ्राम मूवी स्टार टू पालिटिकल क्वीन)

   

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