बिहार के कोविड 19 डेडिकेटेड अस्पताल से लाइव: चिंता, निराशा और हताशा की अंतहीन कहानी

बिहार में चार कोविड डेडिकेटेड अस्पताल हैं। यह आंखों-देखा हाल उन्हीं में से एक अनुग्रह नारायण मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल (एएनएमसीएच), गया का है।

Rohin KumarRohin Kumar   18 July 2020 1:23 PM GMT

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बिहार के कोविड 19 डेडिकेटेड अस्पताल से लाइव: चिंता, निराशा और हताशा की अंतहीन कहानी

'कोरोना माई की कृपा समझिए कि बिहार अभी भी बचा हुआ है', ऐसा कहना है नगीना प्रसाद का।

'कोरोना माई की कृपा' से उनका मतलब है कि बिहार की स्थिति और भयावह हो सकती थी। नगीना, अनुग्रह नारायण मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल (एएनएमसीएच) में प्राइवेट गार्ड है। उनका मुख्य काम है अस्पताल में आने और जाने वाली गाड़ियों का नंबर रजिस्टर में दर्ज करना।

उनके साथी बनवारी लाल कहते हैं कि यह बड़ा उबाऊ काम है। हाथ से गाड़ी का नंबर लिखवाने से बेहतर होता कि अस्पताल प्रशासन मुख्य द्वार पर सीसीटीवी कैमरे लगा देता। उसमें गाड़ी के नंबर के साथ-साथ लोगों के चेहरे भी रिकॉर्ड हो सकते थे।

उनकी शिकायतें और भी हैं। अस्पताल प्रशासन की तरफ से उन्हें सिर्फ एक बार मास्क मिला था, वह भी दो-ढ़ाई महीने पहले। उसके बाद कुछ भी नहीं मिला। न दास्ताने तब मिले थे, न अब मिले हैं।

नगीना अपनी स्थिति पर तंज कसते हैं। वह कहते हैं, "गार्ड का परिवार नहीं होता। उसके जान की कीमत बस आठ हज़ार रूपये हैं।" मैं नगीना और बनवारी की बातों से सहमति दर्ज करते हुए आगे कोविड वार्ड की तरफ बढ़ता हूं। लेकिन थोड़ा आगे जाकर लौटता हूं। मन में ख्याल आया कि पहले कोविड वार्ड में जाने से बेहतर है जनरल वार्ड जाना। यह मेरी फौरी समझ बनती है संक्रमण को लेकर। कहीं मैं पहले कोविड वार्ड की तरफ गया और वायरस का कैरियर बन गया तो शायद जनरल वार्ड के मरीज को वायरस न लग जाए!

जनरल वार्ड में मुझे एक बुजुर्ग भोली पासवान मिले। गुरूवार की रात उनके नौ वर्षीय पोते रवि को छरबिंदा ने काट लिया। शुक्रवार की सुबह उन्होंने बच्चे के लिंग को तना हुआ पाया। छरबिंदा एक किस्म का पिल्लू (कीड़ा) होता है, जिसके काटने के बाद लिंग में तनाव इसका प्रमुख लक्षण है। भोली अपने पोते को लेकर एएनएमसीएच आ गए। गांव के लोगों ने उन्हें भगत (स्थानीय ओझा) के पास जाने की सलाह दी, पर वे नहीं माने। रवि अब बेहतर हैं। अस्पताल के ईलाज से दादा संतुष्ट हैं। सिस्टर (नर्स) ने बताया है कि आज उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाएगा।

इसके बाद मैं कोविड वार्ड की तरफ बढ़ा। चूंकि बिहार में चार डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल बनाए गए हैं और एएनएमचीएस भी उनमें से एक है। समूचे अस्पताल को रेड ज़ोन में रखा गया है। संक्रमण के भय के मद्देनज़र क्या जनरल वार्ड के मरीज़ों का भी कोविड टेस्ट करवाया जाएगा? मैंने प्रशासकीय विभाग की एक नर्स से पूछा। उन्होंने कहा, "ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। अगर जनरल वार्ड के किसी मरीज़ में कोरोना के लक्षण पाए गए तभी उनकी जांच करवाई जाएगी।"

उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा, "आप मीडिया वाले इतनी आदर्श व्यवस्था की उम्मीद कैसे करते हैं? और जब इतने आदर्श होने की बात करते ही हैं तो हमारी स्थिति के बारे में भी लिखिए। कहने को हम लोग कोरोना वरियर हैं। लेकिन कोरोना होने पर हमारे लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं है। हमें भी उसी वार्ड में भेज दिया जाएगा।"

अनुग्रह नारायण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल का मुख्य परिसर, फोटो- रोहिण कुमार

मैंने पूछा, "क्या अस्पताल का कोविड वार्ड बेहतर नहीं है?" उन्होंने कहा, "आप रिपोर्टर हैं। खुद ही एक बार घूम आइए।" नर्स की बात मुझे घर कर गई। जब एक सरकारी अस्पताल और व्यवस्था अपनी नर्स का ही भरोसा नहीं जीत सका है तो वो परेशान मरीज़ों में कैसे भरोसा पैदा कर सकेगा? नर्स का नाम उनकी सरकारी प्रतिबद्धताओं के कारण उजागर नहीं किया जा रहा है।

प्रशासकीय विभाग से निकलते हुए मेरी नज़र अधीक्षक डॉ हरिश चंद्र हरि के दफ्तर की ओर गई। दरवाज़ा बंद था। नौ बज रहे थे। अभी उनके आने में आधे घंटे की देर थी। मैंने बाहर निकलकर हाथ सैनेटाइज़ किया। बांस-बल्ली से कोविड वार्ड की ओर जाने का रास्ता चिन्हित किया हुआ था। उस वार्ड के भी दो लेवल हैं- लेवल 1 और लेवल 2। लेवल 1 सस्पेक्टेड मरीज़ों के लिए है। जिनकी कोरोना की जांच हुई है पर उनकी रिपोर्ट नहीं आई है। लेवल 2 कोरोना पॉजिटिव मरीज़ों का वार्ड है। मैं बाईं तरफ का रास्ता लेकर लेवल 1 की तरफ बढ़ा।

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यह अस्पताल का कोविड-19 प्रारंभिक जांच स्थल है। दास्ताने, सुरक्षा किट (पीपीई नहीं), हेड शिल्ड, मास्क, हेड कवर लगाकर एक सफाईकर्मी झाडू लगा रहा है। झाड़ू से लग रहे कचरे में मेडिकल वेस्ट (मेडिकल कचरा) और सामान्य कचरा मिक्स है। शायद सामान्य कचरा मेडिकल कचरे से मजाक करता होगा। "क्या भई! हमारे ही साथ? बड़े नियम सुने थे तेरे बारे में!"

बाहर की तरफ बीस से पच्चीस लोग इंतज़ार कर रहे हैं। कुछ बैठे हैं, कुछ बेचैनी में इधर से उधर घूम रहे हैं। कुछ ने कोविड जांच के लिए रेजिस्ट्रेशन भी करवा लिया है। सबको टेस्ट शुरू होने का इंतज़ार है। इनमें से एक हैं अंकित कुमार। उम्र 19 साल।

अंकित को एक सप्ताह से उल्टी, बदन दर्द, पेट के हिस्से में सूजन और बुखार की शिकायत है। बुखार 101-102 डिग्री रह रही थी। चिंतित परिवार अंकित को उन्हें कोरोना की जांच के लिए एएनएमचीएच लेकर आया। उनकी जांच नहीं की गई।

अंकित के भाई देवेन्द्र के अनुसार, "12 जुलाई को एएनएमसीएच लेकर आए थे। डॉक्टरों ने समझाकर वापस लौटा दिया। उन्होंने कहा कि अंकित को कोरोना के लक्षण नहीं है। कोरोना जांच की जरूरत नहीं है।" इस बीच उल्टी जारी ही रही। हालांकि दो दिन के बाद फीवर आना बंद हो गया था।

16 जुलाई को परिवार अंकित को बेहतर ईलाज के लिए पटना के रूबन मेमोरियल हॉस्पिटल लेकर गया। वहां उन्हें दवा देकर भेज दिया गया। रूबन अस्पताल ने कहा कि अंकित को भर्ती तब ही किया जा सकता है जब उनकी कोविड की जांच करवाई जाए। मजबूरन उन्हें वापस गया लाना पड़ा। आज 17 तारीख है और परिवार अंकित की कोविड जांच के लिए नंबर में लगा है।

एएनएमसीएच का कोविड-19 प्रारंभिक जांच स्थल, फोटो- रोहिण कुमार

दूसरी कहानी। 10 जुलाई को सरोज (बदला हुआ नाम, उम्र 35 वर्ष) को एएनएमसीएच में भर्ती करवाया गया। उन्हें सांस लेने में तकलीफ थी। 10 जुलाई को ही उनका कोविड टेस्ट करवाया गया। 12 जुलाई की सुबह 5:45 में उनकी मृत्यु हो गई। अस्पताल ने मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया। यही बात उनके मेडिकल पर्चे पर भी अस्पताल प्रशासन ने लिख दिया। हालांकि मृत शरीर को अस्पताल प्रशासन ने परिवार को नहीं सौंपा। उसी दिन दोपहर 12:30 बजे सरोज की कोरोना जांच की रिपोर्ट आई। उन्हें कोविड पॉजेटिव बताया गया।

अब उनके डिस्चार्ज सर्टिफिकेट में हार्ट अटैक को काटकर कोविड पॉजेटिव लिख दिया गया। मतलब अस्पताल के अनुसार सरोज की मृत्यु का कारण कुछ घंटों में बदल गया। परिवार में गुस्सा भी है और हताशा भी। लेकिन उन्हें लगता है कि जब उनका अपना ही दुनिया छोड़कर चला गया तो वे लड़कर भी क्या करेंगे! मसलन, सरोज के भांजे ने गांव कनेक्शन को बताया, "उन्हें (सरोज को) न तो नर्स अटेंड करने आती थी, न उनको टाइम पर खाना मिल पा रहा था। अस्पताल ने मेरे मामा को मार दिया।"

उन्होंने एक और विचलित करने वाली बात कही। सरोज के मृत शरीर को अस्पताल ने एक पॉलिथिन जैसे प्लास्टिक बैग में लपेटकर परिवार को ही सौंप दिया था। डॉक्टर ने सिर्फ़ इतना बताया कि मृत शरीर को प्लास्टिक से न निकालें। प्लास्टिक सहित ही दाह संस्कार करें। परिवार का दावा है कि उन्होंने दाह संस्कार की प्रक्रिया डॉक्टर के कहे मुताबिक ही की। गया के विष्णुपद मंदिर परिसर के पीछे के हिस्से में उनका दाह संस्कार किया गया।

मार्च में ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 से मृत व्यक्तियों के शव के प्रबंधन के संबंध में विस्तृत गाइडलाइन जारी किया था। उसके मुताबिक शमशान घाट के जिस क्षेत्र में कोविड मृतकों का दाह संस्कार किए जाने के पहले और बाद उस क्षेत्र को सैनेटाइज किया जाएगा। शमशान घाट के कर्मी ही शव को हैंडल करेंगे। उन्हें कोविड के सारे प्रोटोकॉल का पालन करना है। परिजनों को मृत व्यक्ति के शरीर को छूने, चूमने या किसी तरह से भी संपर्क में आने की सख्त मनाही है। ये सारे नियम हैं। फिलहाल गया में कोविड डेडिकेटेड शमशान घाट नहीं है।

सरोज के कोरोना पॉजेटिव आने के बाद परिवार ने अपना कोरोना टेस्ट करवाया। 13 जुलाई को उनका टेस्ट हुआ था। 17 जुलाई की शाम तक उनके रिजल्ट नहीं आए हैं।

तीसरी कहानी। सासाराम के संजय कुमार की। 3 जुलाई को उनकी 65 वर्षीय मां को बनारस महमूदगंज के केपी अग्रवाल हड्डी हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया। संजय की मां का पैर फ्रैक्चर था। 4 जुलाई को हॉस्पिटल ने उनकी मां की कोरोना जांच करवाई। जांच में 2400 रूपये लगे। संजय के मुताबिक उनकी मां को कोरोना सस्पेक्ट पाए जाने पर केपी अग्रवाल हॉस्पिटल ने बाहर निकाल दिया। वो अपनी मां को उसी हालत में जमुहार लेकर आए। जमुहार में वह नारायणा हॉस्पिटल लेकर आए। वहां उनकी मां को भर्ती किया गया।

संजय बताते हैं, "हमने हॉस्पिटल को ईमानदारी से बताया कि बनारस में मां को कोरोना जांच हुई है, वह सस्पेक्ट हैं। यह जानकर नारायणा हॉस्पिटल ने उनकी मां को बाहर निकाल दिया। वह अपनी मां को स्ट्रेचर पर लेकर 8 घंटे पड़े रहे। न किसी चाय वाले ने चाय दी, न पानी वाले ने पानी। उसी रोज़ 5 जुलाई को मां की रिपोर्ट कोरोना पॉजेटिव आई।

संजय के बहुत मिन्नतें करने के बाद उन्हें एंबुलेंस मुहैया करवाया गया। तब वह अपनी मां को लेकर गया के एएनएमचीएच लेकर आए। एएनएमसीएच में उनका और उनकी मां दोनों का कोरोना जांच हुआ। संजय की रिपोर्ट निगेटिव आई, वहीं उनकी मां की रिपोर्ट पॉजेटिव रहा। 10 जुलाई को वापस जब उनकी मां की जांच हुई तो वह निगेटिव पाईं गईं। लेकिन 17 जुलाई सुबह ग्यारह बजे तक उनकी मां को डिस्चार्ज नहीं किया गया था। न ही उनकी मां के पैर का ईलाज शुरू हो सका था।

अस्पताल प्रशासन कह रहा है कि वह अपनी मां को ले जा सकते हैं। पर संजय का कहना है कि वह अपनी मां को बिना निगेटिव सर्टिफिकेट के कैसे ले जा सकते हैं। अगर अस्पताल की ओर से कोरोना निगेटिव का सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा तो बाहर कोई प्राइवेट हॉस्पिटल उनकी मां को भर्ती नहीं करेगा। वह अस्पताल के सभी अधिकारियों से इस बाबत गुहार लगा चुके हैं।

वह मेरे सामने अपनी मां को फोन लगाते हैं। उनकी मां बेटे की आवाज़ सुनकर जोर-जोर से कराहने लगाती हैं। उनकी असहनीय पीड़ा को यहां दर्ज करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं।

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अनुग्रह नारायण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के अधीक्षक डॉ. हरिश चंद्र हरि ने गांव कनेक्शन को बताया कि उनका अस्पताल कोरोना वायरस से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है। किसी तरह की समस्या नहीं है। उनके अनुसार जनता सहयोग नहीं कर रही है।

मैंने उन्हें संजय की मां के केस के बारे में बताया। उन्होंने कहा, "वह जबरदस्ती रह रही है। हम लोग कह रहे हैं कि वह जा सकती हैं।" कोविड निगेटिव सर्टिफिकेट के बारे में उन्होंने कहा, "सरकार ने एक ही मरीज की दो बार कोरोना जांच करने से मना किया है। हम कहां से उनको कोविड निगेटिव सर्टिफिकेट दे देंगे। हां, हमलोग इतना कर सकते हैं कि उनके डिस्चार्ज के पर्चे पर कोविड निगेटिव लिख देंगे।"

डॉ. हरिश चंद्र हरि से जब मैंने कोरोना जांच और अस्पताल में कुप्रबंधन से जुड़े सवाल पूछा तो उन्होंने एकटक कहा, "आप (मैं रिपोर्टर) सरकारी काम में बाधा पहुंचा रहे हैं।" मैंने उनसे कहा कि वह गलत समझ रहे हैं। मैं उनके काम करने तक इंतज़ार करने को तैयार हूं। पर वे जवाब देने के मूड में नहीं दिखे। उन्होंने जांच के बारे में सिर्फ़ इतना कहा कि अस्पताल ने रैपिड टेस्ट भी शुरू कर दिया है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बिहार चैप्टर के डॉ. शालीग्राम विश्वकर्मा कहते हैं कि बिहार की स्थिति भयावह है। बहुत संभव है कि सूबे में कॉम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो चुका हो। डॉ. विश्वकर्मा के अनुसार, "इस वक्त सबसे पहली जरूरत है कि सरकार इपिडैमिक एक्ट को निष्क्रिय करे। प्राइवेट अस्पतालों को कोरोना मरीज़ मिलने पर सील करने की व्यवस्था को बंद करने की जरूरत है।"

वह जोर देकर कहते हैं, "हमारे पास आंकड़ें नहीं हैं वरना कोरोना से ज्यादा लोग दूसरी बीमारियों के इलाज नहीं मिलने से मर रहे हैं। यह संख्या भयावह हो सकती है।"

एएनएमसीएच के अधीक्षक हरिश चंद्र हरि, फोटो- रोहिण कुमार

डॉक्टरों, मेडिकल स्टाफ और पारा मेडिकल स्टाफ की स्थिति पर उन्होंने गंभीर चिंता जाहिर की है। उनके अनुसार डॉक्टरों को छुट्टी तो नहीं ही मिल रही है, उन्हें डरा-धमकाकर काम लिया जा रहा है। बिहार के कई अस्पतालों में डॉक्टरों को उनकी तनख्वाह नहीं मिली है।

एएनएमसीएच के लैब टेक्निशियनों को भी पिछले पांच महीने से तनख्वाह नहीं मिली है। उनकी इस वक्त मुख्य जिम्मेदारी है स्वैब क्लेक्ट करना। संतोष (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "हम लोग घुट-घुटकर काम कर रहे हैं। एक पैसे की इज्ज़त नहीं है। पांच महीने से तनख्वाह नहीं मिली है। हमसे और कितनी सेवा चाहते हैं?" संतोष के घर की माली हालत बहुत खराब है। संतोष के साथियों की भी कमोबेश वही हालत है। ये सारे लोग ठेका कर्मचारी हैं।

कोविड सैंपल लेने के लिए तैयार स्वास्थ्य कर्मी, फोटो- रोहिण कुमार

संतोष के सहयोगी अरविंद (बदला हुआ नाम) स्वैब टेस्ट लेने के लिए तैयार हो रहे हैं। सुरक्षा किट पहनते हुए कहते हैं, "हम रोज़ सैंपल इकट्ठा करते हैं लेकिन आज मेरी इतनी भी औकात नहीं है कि अगर हमको या किसी साथी को कोरोना का संदेह होने पर अपना जांच करवा सकें।" इसका कारण है गया जिलाधिकारी का ऑर्डर।

25 जून के ऑर्डर के मुताबिक, "किसी भी परिस्थिति में असिम्पटोमैटिक मरीज़ों का स्वैब टेस्ट नहीं किया जाना है। विशेषकर सरकारी कर्मियों के लिए ऐसे मामलों में स्वैब टेस्ट नहीं किया जाए तथा जांच की आवश्यकता होने पर अधोहस्ताक्षरी को संज्ञान मे देकर अनुमति प्राप्त कर ही जांच किया जाए।"

डीएम का ऑर्डर, फोटो- रोहिण कुमार

इस तरह के ऑर्डर को डॉ. शालीग्राम अंग्रेज़ों जैसा कानून मानते हैं। जैसे प्लेग के समय अंग्रेज़ों ने जिला क्लेक्टरों को अकूत शक्ति मिली थी, वैसे ही इस वक्त क्लेक्टरों के हाथ में शक्ति है। "इतना बस इसीलिए किया जा रहा है कि अगर स्वास्थ्य कर्मी कोरोना पॉजेटिव हो गया तो काम कौन करेगा। किसी को इतनी चिंता नहीं है कि स्वास्थ्यकर्मियों का भी परिवार है," डॉ. शालीग्राम ने कहा।

डॉ. शालीग्राम पूछते हैं, "बिहार सरकार को तैयारी करने का पर्याप्त समय मिला था। लेकिन सरकार ने हालात बिगड़ने का इंतज़ार किया।"

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कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या को देखते हुए बिहार सरकार ने 31 जुलाई तक पूरे राज्य में लॉकडाउन लागू कर दिया है। अखिल भारतीय लॉकडाउन खुलने के बाद बिहारियों को हालात सामान्य होने की आस जगी थी। वह फिर से खत्म होती दिखने लगी है। लॉकडाउन बहाल होने से लोग परेशान हैं।

गया के रमना रोड पर तिलकुट और अनरसे की छोटी दुकान करने वाले चंदन कुमार बताते हैं, "पिछली बार भी लॉकडाउन की घोषणा अचानक ही हुई थी। इस बार भी एक दिन की पूर्व सूचना पर लॉकडाउन की घोषणा हुई है। हमारा माल खराब हो रहा है, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? दुकानें नहीं खुलेंगी, बिजनेस नहीं होगा तो हम लोग कारीगरों को पैसा कहां से दे पाएंगें?"

वह बताते हैं कि अनलॉक-1 और अनलॉक-2 के बाद व्यापार थोड़ा रास्ते पर आता दिख रहा था। सप्लाई चेन बहाल हो रहा था।

सूबे में ऐसे अनेक चंदन हैं जो अनलॉक से उबरने की जद्दोजहद कर रहे हैं। वह समझ रहे हैं कि बिहार में संक्रमण बढ़ रहा है। पर वे यह भी समझ रहे हैं कि लॉकडाउन संक्रमण का विकल्प नहीं है। कम से कम बिहार में तो नहीं ही।

सात जुलाई को नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा था कि बिहार 19 कोविड संक्रमित राज्यों में सबसे कम जांच कर रहा है। बिहार में प्रति दस लाख की आबादी पर महज़ 2197 टेस्ट हो रहे हैं।

कोविड जांच कराने के लिए इंतज़ार करते लोग, फोटो- रोहिण कुमार

राज्य में कोरोना मरीजों की संख्या 23 हज़ार पार कर गई है।192 लोगों की जान जा चुकी है। शुक्रवार को 1742 नए केस सामने आए हैं। यह अबतक का एक दिन में बढ़ने वाला सबसे बड़ा आंकड़ा है। पटना, सिवान, भागलपुर, नालंदा, लखीसराय और गया में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लेंसेट ने अपनी शोध में बिहार के आठ जिलों को सबसे प्रभावित होने का अनुमान जाहिर किया है। लेंसेट के मुताबिक दरभंगा सबसे प्रभावित हो सकता है। समस्तीपुर, सारण, शिवहर, वैशाली, सहरसा, मुंगेर और खगड़िया भी उस लिस्ट में शामिल हैं।

शुक्रवार को अखबारों में मुख्यमंत्री का बयान छपा है। उन्होंने टेस्ट की संख्या प्रतिदिन 20,000 करने का निर्देश दिया है। उनका पूर्व एक दावा था कि जुलाई की शुरूआत से बिहार प्रतिदिन 15,000 कोरोना जांच करेगा। जबकि 14 जुलाई को पहली बार सूबे में दस हज़ार टेस्ट किए गए थे।

केंद्र सरकार ने बिहार के स्वास्थ्य तैयारियों का जायजा लेने के लिए तीन सदस्यीय हाई लेवल टीम का गठन किया है। यह टीम रविवार को बिहार का दौरा करेगी।

दूसरी तरफ उत्तर बिहार में बाढ़ की चपेट में है। बागमती, कोसी और महानंदा खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। दरभंगा, भागलपुर, सहरसा, सीतामढ़ी, मधुबनी और पश्चिमी चंपारण (बेतिया) कुछ ऐसे जिले हैं जो बाढ़ और कोरोना दोनों से प्रभावित हैं।

कई स्थानीय नेता और मंत्री कोरोना से संक्रमित हैं। राज्य के श्रम संसाधन मंत्री विजय सिन्हा और पाटलिपुत्र सांसद रामकृपाल यादव भी कोरोना संक्रमित हैं। बीते दिनों भाजपा दफ्तर में तो एक साथ 75 लोग कोरोना पॉजेटिव पाए गए थे। कई प्रशासकीय अधिकारी भी कोरोना की चपेट में हैं।

बावजूद इसके राज्य चुनावी मोड में है। वर्चुअल तैयारियां चल रही हैं। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने मांग की है कि कोरोना संकट को देखते हुए फिलहाल विधानसभा चुनाव टाल दिया जाए। खुद एनडीए के घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने भी मौजूदा स्थिति को देखते हुए आगामी विधानसभा चुनाव टालने की वकालत की है। लेकिन चुनाव आयोग ने स्पष्ट कहा है कि चुनाव तय समय पर करवाए जाएंगें।

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनीत अरोड़ा ने कहा है कि चुनाव का कैलेंडर जरूरी लॉजिस्टिक, मौसम, स्कूल कैलेंडर, सुरक्षा और कोरोना को ध्यान में रखते हुए बनाया जाएगा। इसकी घोषणा बाद में विस्तार से की जाएगी। उन्होंने ये भी कहा कि कोरोना के मद्देनजर इस बार वोटिंग, मतदान केंद्रों पर वोटरों की संख्या और चुनावी रैली में भी कई बदलाव किए जाएंगे।

बिहार के हालात किसी आधार पर 'बिहार में बहार' होने की तस्दीक नहीं देते। हां, पर बिहार में नीतीश कुमार जरूर हैं।

(रोहिण कुमार बिहार से स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

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