कॉमर्शियल माइनिंग के विरोध में कोल इंडिया के चार लाख मजदूरों का देशव्यापी हड़ताल

मजदूरों ने कहा कि कॉमर्शियल माइनिंग से मिलेगा प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा। वहीं मजदूर संगठनों का मेनस्ट्रीम मीडिया के खिलाफ क्षोभ, कहा- नहीं मिला हड़ताल को पर्याप्त कवरेज।

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- अवंतिका तिवारी

मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित कमर्शियल माइनिंग के खिलाफ कोल इंडिया के लगभग चार लाख कर्मचारियों और मजदूरों ने तीन दिन की देशव्यापी हड़ताल की। कोयला उद्योग में इस हड़ताल का प्रभाव साफ दिखा। सभी मजदूर संगठनों में कमर्शियल माइनिंग सहित 5 सूत्री मांगों को लेकर सर्वसम्मति बरकार है। इन 5 सूत्रीय मांगों में कामर्शियल माइनिंग के निर्णय को वापिस लेना, कोल इंडिया के प्राइवेटाइजेशन को रोकना और ठेका श्रमिकों को उचित दर से भुगतान करने जैसी मांग शामिल है।

यह पहला मौका है जब भारत में कोयला खदानों को कॉमर्शियल माइनिंग (वाणिज्यिक खनन) के लिए खोला जा रहा है। नीलामी प्रक्रिया को लॉन्च करने के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि कोयला खनन आदिवासी बहुल क्षेत्रों में विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा। केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री प्रहलाद जोशी ने भी कहा कि कॉमर्शिल माइनिंग देश के आत्मनिर्भर भारत अभियान का एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे भारतीय उद्योग जगत को उत्पादन क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

हालांकि जिन क्षेत्रों में कोयला ब्लॉक के नीलामी की प्रक्रिया शुरू की गई है, वहां के स्थानीय लोग और कोल इंडिया के कर्मचारी, मजदूर और श्रमिक संगठन केंद्रीय मंत्री की बातों से इत्तेफ़ाक नहीं रखते। कोयला संबंधी विषयों पर काम करने वाले कई विशेषज्ञों का भी मानना है कि यह केवल कोयले का निर्यात नहीं बल्कि प्राकृतिक आपदाओं, विस्थापन और प्रदूषण का आयात है।

कोरबा के दीपका खदान के कर्मचारी सृष्टिधर तिवारी कहते हैं, "लॉकडाउन में लगभग सभी उद्योग जब बन्द पड़े थे, तब भी कोल इंडिया ने अपने कर्मचारियों से काम लेना बन्द नहीं किया था। लगातार कोयला खदानों में काम चलता रहा ताकि गांव शहर रोशन रहे। ताकि पर्याप्त बिजली लोगों तक पहुंचे और कोरोना से लड़ने में कम से कम बिजली आपूर्ति की समस्या ना आये। अब आम लोगों को भी हमारे साथ खड़ा होना होगा क्योंकि यह हमारे भविष्य का सवाल है।"

इसके बाद भी मेनस्ट्रीम मीडिया ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे को दिखाना जरूरी नहीं समझा। आंदोलनकारियों को इस बात का क्षोभ भी है। सृष्टिधर तिवारी आगे कहते हैं, "मेनस्ट्रीम मीडिया ने इस हड़ताल की कवरेज ना करके अपना पक्ष ही दिखाया है। अगर वो इस हड़ताल और हमारी मांगों को अन्य लोगों तक पहुँचाने में हम कोल वर्कर्स की मदद नहीं करते हैं तो हम तो यही मानेंगे कि वो सरकार के साथ खड़े हैं।"

5 सूत्रीय मांगों को लेकर कोयला श्रमिकों की जो 3 दिवसीय हड़ताल चल रही है, उससे कोयला उत्पादन में खासा फर्क पड़ा है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 3 दिन के उत्पादन रुकने से 7 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसका सीधा प्रभाव ज्यादतर ग्रामीण क्षेत्रों में पड़ेगा। बावजूद इसके जब मेनस्ट्रीम मीडिया में हड़ताल का ज़िक्र तक नहीं है।

मीडिया के इस रवैये पर हिन्द मजदूर सभा के दीपका क्षेत्र के महामंत्री तरुण राहा कहते हैं, "निजीकरण के द्वारा सरकार पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाना चाहती है और कहीं ना कहीं इन्हीं पूंजीपतियों का पैसा तमाम मीडिया कंपनियों में लगा है। इसलिए शायद मीडिया हमें कवरेज नहीं दे रही है।"

कोयला उत्खनन के निजीकरण जैसे मुद्दे को मेनस्ट्रीम मीडिया में ना दिखाये जाने से एक बहुत बड़ा दर्शक समूह कोयला कर्मचरियों के संघर्ष से अनभिज्ञ है। स्थानीय पत्र पत्रिकाएं, डिजिटल मीडिया और कुछ एक टीवी चैनल के अलावा कहीं भी कोयला मजदूरों के इस हड़ताल और संघर्ष की बात नहीं हो रही।

सीटू श्रमिक संगठन के गेवरा खदान के सदस्य जी. उदयन ने बातचीत में बताया कि कोयला मजदूरों के संघर्ष की कहानी बड़े स्तर पर नहीं उठाया जाना और देश के दूसरे भागों तक नहीं पहुंच पाना कहीं ना कहीं हमारा मनोबल तोड़ता है। हम चाहते हैं कि जैसे हमारे पास लेह, कश्मीर और ना जाने कहाँ कहाँ से तमाम खबरें आती हैं, वैसे ही देश के सभी हिस्सों में हमारी भी बात हो। हम सिर्फ अपने लिए नहीं लड़ रहे। यह बात समझना बहुत जरूरी है कि कोयला मजदूरों की लड़ाई सिर्फ कोयले के खदानों तक सीमित नहीं है। इससे पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर, नौजवानों के रोज़गार पर, पर्यावरण पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा।

कोयला मजदूरों के तीन दिवसीय हड़ताल का आज तीसरा और आखिरी दिन है। सरकार ने वार्ता के जरिये श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों को मनाने की कोशिश भी की है। लेकिन सभी संगठन अपनी मांगों पर अडिग खड़े हैं। 51 नये कोल ब्लॉक की वर्चुअल नीलामी करके सरकार ने कोयला मजदूरों के प्रति अपना रवैया पहले ही साफ कर दिया था।

आईआईएम कोलकाता के शोधार्थी और कोल संबंधी मामलों के विशेषज्ञ प्रियांशु गुप्ता गांव कनेक्शन से बातचीत में कहते हैं, "कोल इंडिया ने अपनी कोल विज़न रिपोर्ट 2030 में अनुमान लगाया है कि वर्तमान ग्रोथ रेट के लिहाज़ से जितने कोयला खदान उनके पास हैं, वह भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। उसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि जितने खदान फिलहाल कोल इंडिया के पास हैं, वह अगले दस वर्षों तक भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है। ऐसे में कामर्शियल माइनिंग के लिए खदानों को खोलना पर्यावरण के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है।"

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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