दिल्ली: झुग्गियों के उजड़ने से कीर्ति नगर का फर्नीचर बाजार भी हो सकता है तबाह

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में रेलवे के जमीन पर बसे झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया है। इससे लाखों लोग प्रभावित होंगे, जो गरीब और मजदूर तबके से आते हैं। हालांकि कोर्ट ने अपने नए आदेश में इस फैसले पर चार हफ्ते का स्टे लगा दिया है। लेकिन इन झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों में काफी अनिश्चितिता है कि चार हफ्ते बाद क्या होगा? इससे सिर्फ एक तबका नहीं एक पूरी अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है।

Akash PandeyAkash Pandey   16 Sep 2020 8:37 AM GMT

दिल्ली: झुग्गियों के उजड़ने से कीर्ति नगर का फर्नीचर बाजार भी हो सकता है तबाह

31 अगस्त, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण के एक मामले की सुनवाई के दौरान एक ऐसा फैसला दिया जिससे लाखों लोगों के सिर से छत छिने जाने की नौबत आ गई है। दरअसल 31 अगस्त को दिए गए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में 140 किलोमीटर रेलवे पटरियों के किनारे बसी 48000 झुग्गियों को हटाया जाए। इससे दिल्ली में प्रदूषण फैलता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन 48000 झुग्गियों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए कोई पुनर्वास की बात नहीं कही।

इस आदेश का दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाले लोगों पर भयानक प्रभाव पड़ा है। लेकिन हम अभी सिर्फ इस फैसले से प्रभावित होने वाली एशिया के सबसे बड़े फर्नीचर बाजार की बात करेंगे।

कीर्ति नगर में एशिया का सबसे बड़ा फर्नीचर बाजार है। यहां से देश-विदेश में फर्नीचरों की सप्लाई होती है। इस बाजार में 1000 दुकानें हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह बाजार बुरी तरह प्रभावित होगा। बीते मई में ही यहां भीषण आग लगने के कारण लोगों का सामान जल गया था। तब भारी नुकसान हुआ था। लोग अभी लॉक डाउन और आग की मार से उभरने का सोच ही रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट के हथौड़े की यह भयानक मार उन पर फिर से पड़ी है।


हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस फैसले से संबंधित एक याचिका की सुनवाई करते हुए अगले चार हफ्ते के लिए इस इस फैसले पर स्टे लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील पर कि वह दिल्ली सरकार, रेलवे और पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर चार हफ्ते में कुछ समाधान खोजने का प्रयास करेगी, यह स्टे लगाया है।

दरअसल मामला यह है कि यह बाजार बसा ही रेलवे पटरियों के ठीक बगल में है। यहां काम करने वाले मजदूरों और कारीगरों के कारखाने और घर भी रेलवे पटरियों से सटे झुग्गियों में हैं। ऐसे में अगर इन झुग्गियों को हटाया जाता है तो यहां झुग्गियों में रहने वाले लगभग बीस हजार से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे। इनमें से अधिकांश लोग इसी फर्नीचर उद्योग से जुड़े हैं।

कीर्ति नगर की पटरियों के किनारे झुग्गियों में रहने वाली और बुरादा का काम करने वाली विमला देवी कहती हैं, "तीन- चार महीने से लॉक डाउन था तो कोई काम धंधा नहीं था। जैसे-तैसे करके हम लोगों ने अपना गुजारा किया। अब जब थोड़ा बहुत काम शुरू हुआ है तो अब हमारी झुग्गी उजाड़ने का नोटिस आ गया है। हमारा राशन कार्ड, वोटर कार्ड सब खराब हो जाएगा। हमारे पास गांव में ना कोई जमीन है, ना कोई घर। हम कहां जाएंगे, क्या करेंगे, कुछ समझ नहीं आ रहा है।" विमला देवी की बातों में सब कुछ खोये जाने का डर साफ पता चल रहा था।


फर्नीचर की दुकान में मजदूरी करने वाले रमेश बताते हैं कि वह यहां पिछले 17 साल से रह रहे हैं। "झुग्गियों को हटाने का फैसला गलत है। हम सड़क पर आ जाएंगे। हम मेहनत- मजदूरी करके अपना परिवार चला लेते थे। अब कहां जाएंगे? अभी लॉक डाउन में राशन कार्ड से मिलने वाले राशन से ही परिवार चल रहा था, अब वो भी छीन जाएगा।"

भारत की अर्थव्यवस्था वैसे ही इस वक्त पूरी तरह डांवाडोल है। बेरोजगारी अपने चरम पर है। ऐसे में झुग्गियों में रहने वाले लाखों लोगों को हटाना, उनका रोजगार छीनना आग में घी डालने जैसा है।

जहां एक तरफ कीर्ति नगर की झुग्गियां हटाए जाने पर एशिया का सबसे बड़ा फर्नीचर बाजार पूरी तरह तबाह हो सकता है, दूसरी तरफ हजारों लोग एक झटके में बेरोजगार हो जाएंगे। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमईआई) के अनुसार, वर्तमान में सिर्फ लॉक डाउन में लगभग दो करोड़ तनख्वाह वाली नौकरियां जा चुकी हैं। लॉक डाउन में असंगठित क्षेत्र के हश्र के बारे में अभी कोई आंकड़ा ही नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि इस लॉक डाउन ने असंगठित क्षेत्र को पूरी तरह तबाह जरूर कर दिया है।


पिछले साल आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में बेरोजगारी पिछले 45 सालों में अपने चरम पर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के आंकड़ों के मुताबिक लॉकडाउन के बाद भारत में बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी ही हुई है।

इस बस्ती के हटाए जाने से बहुत सारे छात्रों का भविष्य भी अधर में लटकता हुआ दिख रहा है। इसी बस्ती की रहने वाली, अपनी बस्ती की पहली पोस्ट ग्रेजुएट विजेता राजभर डीयू की छात्रा हैं। विजेता बताती हैं, "उनका जन्म भी इन्हीं झुग्गियों में हुआ था। अगर ये झुग्गियां नहीं होती तो शायद मैं पढ़ नहीं पाती। मेरी अभी नेट-जेआरएफ की परीक्षा है लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट का इन झुग्गियों को हटाने का आदेश आ गया है, ऐसे में हम सब के लिए अब पढ़ाई करना, तैयारी करना बहुत ही मुश्किल हो गया है। मन ही नहीं लग रहा है पढ़ने में, समझ नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए? इससे हमारे जैसे बहुत सारे बच्चों की पढ़ाई बर्बाद हो जाएगी। चुनाव से पहले तो वादा किया गया था कि 'जहां झुग्गी, वहीं मकान' लेकिन अब हमारी झुग्गियों को ही हटाया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने अभी अपने फैसले पर फिलहाल के लिए तो रोक लगा दी है लेकिन आने वाले दिनों में क्या सुप्रीम कोर्ट इन लोगों के पुनर्वास के बारे में कुछ कहता है या ये लोग यूं ही बिना किसी पुनर्वास या बिना किसी योजना के हटा दिए जाएंगे? क्या एशिया का सबसे बड़ा फर्नीचर बाजार तबाह हो जाएगा या फिर सरकार इसे बचाने के लिए कुछ करेगी?

(आकाश पांडेय स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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