कोरोना वायरस को नष्ट कर सकते हैं नई तकनीक से बने मास्क

इस मास्क की एक खासियत यह भी है कि इसे धोकर दोबारा उपयोग किया जा सकता है। दूसरे महंगे मास्कों की तुलना में यह काफी सस्ता है और इसकी लागत 50 रुपये से भी कम आती है।

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
कोरोना वायरस को नष्ट कर सकते हैं नई तकनीक से बने मास्कप्रतीकात्मक तस्वीर

उमाशंकर मिश्र

नई दिल्ली। कोविड-19 के खतरे को देखते हुए भारतीय वैज्ञानिक दिन-रात ऐसे उपाय खोजने में जुटे हैं, जिससे इस चुनौती से निपटने में मदद मिल सके। इसी कड़ी में कार्य करते हुए गुजरात के भावनगर में स्थित केंद्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसएमसीआरआई) के वैज्ञानिकों ने एक अनूठा फेस-मास्क विकसित किया है, जिसके संपर्क में आने पर वायरस नष्ट हो सकते हैं।

सीएसएमसीआरआई के वैज्ञानिकों ने बताया कि इस मास्क की बाहरी छिद्रयुक्त झिल्ली को संशोधित पॉलीसल्फोन मैटेरियल से बनाया गया है, जिसकी मोटाई 150 माइक्रोमीटर है। यह मैटेरियल 60 नैनोमीटर या उससे अधिक किसी भी वायरस को नष्ट कर सकता है। कोरोना वायरस का व्यास 80-120 नैनोमीटर के बीच है।

इस मास्क को चिकित्सीय मान्यता मिल जाती है, तो कोविड-19 के प्रकोप से जूझ रहे आम लोगों के साथ-साथ चिकित्सा सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों एवं डॉक्टरों को बीमारी के खतरे से बचाने में मदद मिल सकती है। इस मास्क की एक खासियत यह भी है कि इसे धोकर दोबारा उपयोग किया जा सकता है। दूसरे महंगे मास्कों की तुलना में यह काफी सस्ता है और इसकी लागत 50 रुपये से भी कम आती है।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) से संबद्ध सीएसएमसीआरआई के मेम्ब्रेन साइंस ऐंड सेप्रेशन टेक्नोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ वी.के. शाही ने बताया कि "इस तरह का मास्क विकसित करने का विचार अपने आप में काफी नया है। इसकी बाहरी परत वायरस, फंगल एवं बैक्टीरिया प्रतिरोधी है। इसका अर्थ है कि इसकी बाहरी परत के संपर्क में आने पर कोई भी रोगजनक सूक्ष्मजीव नष्ट हो सकता है। इस तरह देखें तो यह एन-95 मास्क से भी बेहतर साबित हो सकता है।"

डॉ शाही ने बताया कि इस मास्क को बनाने में 25 से 45 रुपये तक लागत आती है, जो दूसरे मास्कों की तुलना में काफी कम है। संस्थान ने इस मास्क के पाँच संस्करण विकसित किए हैं, जिसमें अलग-अलग तरह की झिल्लियों का उपयोग किया गया है। इस मास्क को विकसित करने में करीब एक सप्ताह का समय लगा है और आगामी कुछ दिनों में इसके उपयोग को वैधानिक मंजूरी मिल सकती है। (इंडिया साइंस वायर)


     

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.