मूर्तिकारों के लिए मुसीबत बने खनन माफिया

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मूर्तिकारों के लिए मुसीबत बने खनन माफियामूर्तिकारों के लिए मुसीबत बने खनन माफिया

कम्युनिटी जर्नलिस्ट- मोबीन अहमद

रायबरेली। नवरात्र आते ही मूर्ति कलाकारों के अच्छे दिन आ जाते हैं। शहर से लेकर गाँव हर जगह माता का पंडाल सजाया जा रहा है और देवी की मूर्ति स्थापित की जा रही हैं। मगर खनन माफिया के चलते मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी नहीं मिल रही है।

वैसे तो ज़्यादातर मूर्ति बनाने वाले कारीगर बंगाल के होते हैं पर रायबरेली जिले में मूर्ति बनाकर रोजी रोटी चलाने वाले बजरंग प्रजापति (30 वर्ष) ने खुद इस कला को बंगाल जाकर सीखा और अब जिले में इसका विस्तार कर रहे हैं।

बजरंग बताते हैं, ''हम लोग बंगाल के रहने वाले नहीं हैं पर मूर्ति बनाना हमने बंगाली कारीगरों से ही सीखा है। हम लगभग 15 सालों से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं। गणेश चतुर्थी, नवरात्री व दीवाली आने से चार महीने पहले से ही हम इस काम में लग जाते हैं।''

बजरंग मूर्ति बनाकर अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं। इस बार उन्हें 28 मूर्ति बनाने का आर्डर है। मूर्ति बनाने के लिए कच्चा सामान वो बंगाल से ही लाते हैं। मूर्ति बनाने में इन कारीगरों से 8 से 10 दिन लगता है।मिटटी और भूसा के प्रयोग से बनी इन मूर्तियों को बनाकर पहले सुखाया जाता है फिर इन्हें रंगा जाता है।

बजरंग बताते हैं कि हम तीन फीट से लेकर सात फीट तक की मूर्तियां बनाते हैं। तीन फीट की मूर्ति का मूल्य दो से तीन हज़ार रुपए है और सात फीट की मूर्तियां नौ से दस हज़ार रुपए तक बिकती हैं।

मूर्ति बनाने के काम पहले से मंदी आई है। मूर्तिकार बजरंग के साथ काम कर रहे रामदीन बताते हैं कि मूर्ति व्यापार में अब पहले से कम मुनाफा होता हैं क्योकि पहले हमें मिट्टी लेने की मनाही नहीं थी मगर अब क्षेत्र में अब हर जगह खनन मफियाओं का डेरा रहता है इसलिए मिट्टी मिलने में परेशानी होती है इसलिए अब हम ज़्यादा मूर्तियां नहीं बनाते हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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