और फिर लौट आई रूठी गौरैया

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
और फिर लौट आई रूठी गौरैयाप्रतीकात्मक फोटो (साभार:गूगल)।

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: अरुण मिश्रा

विशुनपुर (बाराबंकी)। पर्यावरण संरक्षण की चाहत अगर दिल में हो तो मनुष्य के साथ ही पशु-पक्षियों का भी संतुलन बराबर बना रह सकता है। यह साबित कर दिखाया है मोहम्मदपुर निवासी जगदीश मौर्य ने, जिनके प्रयासों से घर के अहाते में अब गौरैया की चीं-चीं फिर गूंजनें लगी है।

चलाया जा चुका है अभियान

मोहम्मदपुर में जगदीश मौर्य ने गौरैया को बचाने के लिए की पहल।

कभी घरों के आँगन में फुदकने वाली नन्ही गौरैया अपनी कम होती संख्या के चलते संकटग्रस्त पक्षियों की श्रेणी में पहुंच गयी है। इसके संरक्षण के लिए प्रदेश सरकार के तमाम प्रयासों के साथ ही 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस भी घोषित किया है। वन विभाग की तरफ इनके संरक्षण के लिए काफी संख्या में लकड़ी के बर्ड नेस्ट भी बांटे गए थे। वहीँ अभियान समाप्त होते ही इनके संरक्षण की सरकारी मुहिम भी मन्द हो गयी, लेकिन मोहम्मदपुर में जगदीश मौर्य द्वारा घर की छत में टाँगे गए खाली डिब्बों में इनकी मौजूदगी एक सुखद अनुभूति देती है।

तब गौरैया के लिए बनाया घोंसला

जगदीश बताते हैं, "पहले कच्चे घर में काफी गौरैया थीं। मकान पक्का होने पर वे गायब हो गयीं। अचानक एक दिन घर के बरामदे में बने एक पंखे के होल में गौरैया को घोंसला बनाते देखा। तभी इनके लिए सुरक्षित घर बनाने का विचार आया। फिर बरामदे के सभी होलों में एक खाली डब्बा या पिपिया लटका दिया और जल्द ही सुखद परिणाम सामने आये। इनमे से ज्यादातर में गौरैया ने अपना डेरा बना लिया और धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी है। घर वाले इनके लिए अनाज के दाने भी डाल देते हैं।"

थाली से उठा ले जाती थीं चावल

सिसवारा के रहने वाले बुजुर्ग संकटा प्रसाद बताते हैं, "हमारे बचपन में बहुत गौरैया हुआ करती थीं। घर के आँगन में गौरैया को देखा जा सकता था। जब हम लोग दोपहर में खाना खाने बैठते थे तो गौरैया का झुण्ड हमारे सामने आ जाता था। हम इन्हें अपनी थाली से चावल उनके सामने डाल देते थे। गौरैया उन चावलों को आँगन में ही चुगती थीं। कभी-कभी थाली से भी चावल उठा लेती थी। यह देखकर बहुत अच्छा लगता था, लेकिन पता नहीं क्या हुआ, अब गौरैया देखने को नहीं मिलती। कभी-कभी गौरैया दिखाई पड़ती है।"

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.