प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पृथ्वीपुर को खुद इलाज की ज़रुरत

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प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पृथ्वीपुर  को खुद इलाज की ज़रुरतशाहजहांपुर में मिर्जापुर ब्लॉक के पृथ्वीपुर ढाई गाँव में तीन साल पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाया गया था, लेकिन स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो सकी है।

ऋषभ मिश्रा- कम्युनिटी जर्नलिस्ट

शाहजहांपुर(मिर्जापुर)। जब पृथ्वीपुर ढाई गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनकर तैयार हुआ था तो लोगों को लगा था कि अब उनको इलाज के लिए कई किलोमीटर दूर में जाना नहीं पड़ेगा लेकिन जमीनी हकीकत यह कि अभी तक डॉक्टरों की भी नियुक्ति ही नहीं हुई है।

शाहजहांपुर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर मिर्जापुर ब्लॉक के पृथ्वीपुर ढाई गाँव में तीन साल पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाया गया था लेकिन स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो सकी है। पृथ्वीपुर गाँव के राम किश्न सिंह (40 वर्ष) बताते हैं, जरीनपुर में जो सीएचसी बना है वहीं के डॉक्टर यहां पर कभी-कभी बैठते है वो भी महीने में एक दो बार। इलाज के लिए जैसे पहले दूर जाना पड़ता है वैसे अभी भी गाँव के लोग जाते है।

सीएमओ के प्रस्ताव पर वर्ष 2007-08 में गाँव पृथ्वीपुर ढाई और शेरपुर कुर्रिया में पीएचसी को शासन से मंजूरी मिली थी। इनमें पीएचसी पृथ्वीपुर ढाई का भवन वर्ष 2010 और पीएचसी शेरपुर कुर्रिया का भवन वर्ष 2013 में बनकर विभाग को हैंडओवर किया जा चुका है, लेकिन इन दोनों स्वास्थ्य केंद्रों में अब तक डॉक्टरों और स्टाफ की नियुक्ति नहीं की गई है।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) की वेबसाइट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 5,000 डॉक्टरों की कमी है। गाँवों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए करीब 16,000 डॉक्टरों की आवश्यकता है, जबकि विभाग के पास सिर्फ 11,000 ही हैं।

पृथ्वीपुर ढाई गाँव में रहने वाली रेखा कुमारी (27वर्ष) ने अपने बेटे को एक प्राइवेट अस्पताल में टीके लगवाए। रेखा बताती हैं, पहले बोला था कि बच्चों को यहीं से टीके लगेंगे लेकिन जब टीका लगवाने गए तो कोई डॉक्टर नहीं था मजबूरी में प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ा।

अभी प्रदेश मौजूदा स्वास्थ्य केंद्रों में ही डॉक्टरों की कमी नहीं पूरी कर पा रहा है। जबकि प्रदेश में 1500 से ज्यादा स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के अनुसार उत्तर प्रदेश में 5,172 पीएचसी की ज़रूरत है, जबकि सिर्फ 3692 ही मौजूद हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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