#स्वयंफ़ेस्टिवल:: सोनभद्र के आदिवासी अब भूखे नहीं सोएंगे, बकरी बदलेगी उनका जीवन
Sanjay Srivastava 29 Dec 2016 6:54 PM GMT

स्वयं डेस्क/कम्युनिटी जर्नलिस्ट : भीम कुमार
सोनभद्र। सोनभद्र के आदिवासी कल तक दूसरों के मवेशी चराते थे और उससे कुछ चरवाई पाते जाते थे, जो उनके रोजाना के खाने पीने में कुछ मदद करता था। पर आज जब इलाके के सात आदिवासियों को उनकी आजीविका के लिए एक-एक बकरी दी गई तो उन्हें लगा कि कोई उनके बारे में भी सोचता है।
यह दृश्य सोनभद्र के नगवां ब्लाक के माछी गाँव का है, जहां पर स्वयं फ़ेस्टिवल के दूसरे दिन (3 दिसम्बर) सात आदिवासियों को बकरी वितरण कार्यक्रम के तहत बकरी दी गई।
देश के पहले ग्रामीण अखबार गाँव कनेक्शन की चौथी वर्षगांठ पर 2-8 दिसंबर तक उत्तर प्रदेश के 25 ज़िलों में स्वयं फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है। शहर सोनभद्र भी इन 25 जिलों में शामिल है।
संगीता (30 वर्ष) बताती है, हम लोगों के पास जमीन नहीं है मजदूरी कर के अपना और अपने बच्चों का पेट पलते हैं, कभी कभी काम भी नहीं मिलता है तो बच्चों के साथ भूखे ही सोना पड़ता है। आज एक बकरी मिली है इससे घर की स्थिति ठीक होगी और बच्चों का मन भी लगा रहेगा। चार महीने बाद बकरी के बच्चे होंगे जिनको बेच कर बच्चों के लिए नए कपड़े लूंगी।
यह बकरियां जन कल्याण सेवा संस्थान ने वितरित की है। पर इसमें एक शर्त यह है कि बकरी से होने वाले एक बच्चे को संस्थान को सौंपा जाएगा।
माछी गाँव के रामलखन ने कहा कि हम पर न मवेशी हैं न ही कोई जमीन का टुकड़ा, किसी तरह से गुजर बरस हो पाती है।बकरी मिलने अब हमारे जीवन में कुछ बदलाव आएगा।
बाजार में एक बकरी की कीमत चार से पांच हजार के बीच है। रामलखन, फूलचंद, मोहन, संगीता, मालती, रामरती, दुलारे इन सात आदिवासियों को बकरी दी गई।
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