बीस साल से प्रधान दे रहे जनता को आवास बनवाने का झांसा
गाँव कनेक्शन 22 Oct 2016 5:50 PM GMT

कविता द्विवेदी, कम्यूनिटी जर्नलिस्ट
हैदरगढ़ (बाराबंकी)। कई वर्षोँ से सरकारी योजनाओं के अंतर्गत ग्रामीणों को आवास मुहैया कराए जाते हैं लेकिन आज भी उत्तर प्रदेश में ऐसे गाँव हैं जहां गरीब लोगों को सिर छुपाने की जगह भी नसीब नहीं हो रही है। ऐसा ही उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ तहसीन के ग्रामीण 20 वर्षों से आवास मिलने की राह देख रहे हैँ। कितने भी प्रधान आए और गए, लेकिन उन सब का बस एक ही जवाब रहा की "इस बार मिल जाएंगे आवास।"
बाराबंकी जिला मुख्यालस से 45 किलोमीटर पर स्थित हैदरगढ़ तहसील के त्रिवेदीगंज ब्लॉक के नरेन्द्रपुर मदरहा में कुछ लोगों के घर ऐसे हैं जिनमें एक जानवर भी नहीं रह सकता। यहां के मिट्टी के बने घर पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैँ। लोग अपने ही घर में रात को सोने से डरते हैँ। मदरहा के निवासी मंशाराम (58 वर्ष) का कहना है, "हम लोग अपने ही घर में जाने से डरते हैँ कहीं छत हम पर गिर न पड़े। काफी पुराने होने की वजह से खंडहर बन गए हैं। इस बार तो जैसे-तैसे बारिश झेल लिया है, लेकिन अगली बारिश झेलने के लायक नहीं बचेंगे। इतने पैसे नहीं है कि घर को बनवा सकूं, खेती-मजूरी कर परिवार का पेट पाल रहा हूं यही बहुत बड़ी बात है। बहुत बार प्रधान से कहा, लेकिन अभी तक कुछ न हो सका।" शिवकला (28 वर्ष) बताती हैं, "मेरे घर के सब लोग हर मौसम में बाहर सोते हैं। प्रधान से जब कहो तो कहते हैं हम क्या करे आवास नहीं मिल रहा।"
रामरत्न (36 वर्ष) बताते हैं, "बीस वर्षों से कई प्रधान आए और गए। उन सब से हम लोगों ने आवस के लिए कहा लेकिन सबने एक जैसी बात बता कर हमें टरका देते थे। इतना समय बीत जाने के बाद भी हमें आज तक कोई सरकारी मदद नहीं मिली। हम लोग जाएं भी तो कहां जाएं।" सुरेश तिवारी जिनका घर पूरी तरह से खरबा हो गया है। बताते हैँ, "आज 20 साल से प्रधान कह रहे हैं कि हां मिलेगा आवास, लेकिन अभी तक आवास नहीं मिला।" इनके पास बिल्कुल भी जमीन नही है सुरेश मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पालती हैं। ऐसी स्थिति मे ये लोग टूटी हुई छत गिरि हुई मिट्टी की दीवार में रहते हैं। बारिश के दिनों में टूटे हुए घर के अन्दर पानी भर जाता है। 20 साल से प्रधान से आवास की उम्मीद में रह रहे सुरेश का धैर्य जवाब देने लगा है। जहां ठण्ड में लोग घर अन्दर सोते है वहीं सुरेश का परिवार बाहर ही सोता है। सुरेश पत्नी बाचाना बताती हैं "यहां सांप भी दो तीन बार निकला है। अपने बच्चों की चिंता करते हुए उन्हें दूसरों के घर सुला देते हैं और हम दोनों यही टूटे घर में सोते हैं। इतना रुपया नहीं मिलता मजदूरी से कि एक कच्चा घर ही बनवा सके। क्या सरकार मेरी कोई मदद कर सकती है।"
"This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org)."
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