तालाब किनारे की घास चराने से पशुओं को हो सकता है 'लीवर फ्लूक'

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तालाब किनारे की घास चराने से पशुओं को हो सकता है लीवर फ्लूकgaoconnection

लखनऊ/गोरखपुर। लीवर फ्लूक पशुओं की एक परजीवी बीमारी है। यह बीमारी पशुओं में एक प्रकार के परजीवी (फैसियोला) से होती है। 

पशुओं में होने वाले लीवर का बुखार (लीवर फ्लूक) के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बरेली के इज्जतनगर में स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के परजीवी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा.पी.एस बनर्जी बताते हैं, ‘‘इसके अंड़े पशु के गोबर के साथ बाहर आते हैं। इन अंड़ों से जमीन पर एक लार्वा विकसित होता है जब यह पानी के सम्पर्क में आता है तो अंड़े में से लार्वा निकल आता है। इसको विकसित होने के लिए एक घोंघे की जरूरत होती है।’’ 

वो आगे बताते हैं, ‘‘यह लार्वा, घोघे के अंदर पनपता है और फिर यह बाहर आता है और पानी में तैरता रहता है उसके बाद यह घास में चिपक जाता है। जब यही घास कोई पशु चरता है तो वह पशु के पेट से लीवर में चला जाता है। जहां वह धीरे-धीरे लीवर को बीमार कर देता है, जिससे पशु की मृत्यु तो नहीं होती है लेकिन दूध उत्पादन में 30-40 प्रतिशत की कमी आ जाती है, इसके साथ-साथ एक बछिया बियाने के बाद दूसरे ब्यात में आने में भी समय लगता है, जिससे पशुपालक को काफी नुकसान होता है।’’  

पशुपालक के ध्यान देने वाली बात के बारे में बनर्जी आगे बताते हैं, ‘‘जो पशुपालक घास काट कर लाते है वो इस बात का ध्यान रखें कि तालाब और पोखरों के पास न काटें।’’      

गोरखपुर के पशु चिकित्सक डॉ. राजीव दूबे बताते हैं, ‘‘ इस घोंघा में विकसित होने वाले कीड़े का नाम से फैसियोला हीपेटिका होता है। इस रोग से संक्रमित होने के बाद पशुओं के लीवर पर प्रभाव पड़ता है और समय पर उपचार नहीं मिलने पर लीवर फट भी जाता है, जिससे पशु की मौत हो जाती है।’’

लीवर फ्लूक के लक्षण

  • भूख कम लगती है। 
  • पशु के रोएं भीगे-भीगे रहते है।
  • शरीर अस्वस्थ रहता है।
  • बुलबले जैसा बदबूदार दस्त होना
  • उठने में कठिनाई 
  • दूध उत्पादन में कमी
  • गले के नीचे सूजन होना

उपचार

  • लीवर फ्लूक के लक्षण अगर आपको अपने पशुओं में दिखाई दे तो तुरंत अपने नजदीक के पशु चिकित्सक से संपर्क करे। 
  • इस दवा को पशु के गर्भावस्था के दौरान दिया जा सकता है।

रिपोर्टर : दिति बाजपेई/संतोष मिश्रा

 

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