इस गाँव में एक टीचर बच्चों को पढ़ाने के साथ ही महिलाओं को सिखा रहीं हैं पैड बनाना

प्राथमिक विद्यालय चनेहटा, बरेली, उत्तर प्रदेश की शिक्षिका पुष्पा अरुण गाँव की महिलाओं को स्वच्छता का पाठ सिखा रहीं हैं।

Ambika TripathiAmbika Tripathi   27 July 2023 12:26 PM GMT

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इस गाँव में एक टीचर बच्चों को पढ़ाने के साथ ही  महिलाओं को सिखा रहीं हैं पैड बनाना

17 साल की अनुष्का अपने साथ में पढ़ने वाली लड़कियों के साथ ही आसपास की महिलाओं और लड़कियों को सेनेटरी पैड के फ़ायदें बताती हैं, उन्होंने ये सब तभी जान लिया था जब वो प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती थीं। और उन्होंने ये सब सीखा था अपनी पुष्पा मैडम से।

11वीं कक्षा में पढ़ने वाली अनुष्का गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "जब मैं स्कूल में पढ़ा करती थी तो मैम हम लोगों को समझाती थी, वो मैं अपनी मम्मी को ज़रूर बताती थी। एक बार मैंने अपनी मम्मी को बताया कि स्कूल में पैड बनाना भी सिखाया जाता है। मेरी मम्मी को इन सब के बारे पता ही नहीं था।"

इस गाँव की महिलाओं और लड़कियों को सही राह दिखा रही हैं, बरेली जिले के प्राथमिक विद्यालय की अध्यापिका पुष्पा अरुण।


पुष्पा मैडम क्लास में बच्चों को पढ़ाने के साथ, स्कूल ख़त्म होने के बाद आसपास के गाँवों की महिलाओं को सेहत से जुड़ी समस्याओं की जानकारियाँ भी देती हैं। पहले यहाँ पर महिलाएँ मासिक धर्म के दौरान गंदे कपड़े का इस्तेमाल किया करती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

इस बदलाव की कहानी के बारे में पुष्पा अरुण गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "मैं एक बार अपनी नानी के घर गयी थी, तो मैंने देखा हमारे पड़ोस के घर में लड़ाई हो रही थी। जब मैंने जानना चाहा तो मुझे बताया गया कि किसी ने गंदे कपड़े उनके घर के सामने फेंक दिए थे।"

जब पुष्पा ने गाँव की महिलाओं से इसके बारे में पूछा तो एक महिला ने बताया कि क्या करें कहीं जगह नहीं है, दिन में फेंक नहीं सकते हैं, इसलिए रात में इधर-उधर फेंक देते हैं। पुष्पा कहती हैँ, "उसी दिन से मैंने सोच लिया कि गाँव की महिलाओं को इतनी जानकारी तो होनी ही चाहिए।"

वो आगे बताती हैं, "महिलाओं को इसकी जानकारी देनी चाहिए, बस फिर क्या था जैसे बहता पानी अपना रास्ता खुद बना लेता है उसी तरह मैंने भी महिलाओं के लिए काम शुरू किया। गाँव-गाँव जाकर उन महिलाओं के लिए काम करतीं जिन्हें अपने स्वास्थ्य से जुड़ी चीजों की जानकारी नहीं हैं, और हमेशा उन परेशानियों से दो चार होती हैं। गंदे कपड़े इस्तेमाल करती हैं, जिन्हें धूप दिखाने में शर्माती हैं। इससे उन्हें कई तरह के इंफेक्शन हो जाते हैं।"

ऐसे हुई पैड बनाने की शुरुआत

महिलाओं के लिए शुरुआत में पुष्पा ने पैड बांटना शुरु किया, फिर देखा महिलाओं की संख्या ज़्यादा हैं, मदद कोई कब तक कर सकता है और हर महीने सभी महिलाओं के लिए पैड उपलब्ध कराना थोड़ा मुश्किल है।

पुष्पा कहती हैं, "मैँने सोचा कि इस समस्या का भी हल निकाला जाना चाहिए, इसलिए मैंने महिलाओं को खुद पैड बनाना सिखाया, जिससे महिलाएँ खुद अपना काम कर सकें, और अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें।" "मैंने पैड बनाने के लिए महिलाओं को कॉटन और घर में रखें साफ कपड़े को जोड़कर एक पैड तैयार करना सिखाया। क्योंकि महिलाओं के पास उतने पैसे नहीं होते हैं, इसलिए वो कपड़ा इस्तेमाल करती है, तो उनमें तो कम से कम सफाई हो, जिससे महिलाओं का स्वास्थ्य प्रभावित ना हो।"


लेकिन पैड के इस्तेमाल के बाद सबसे ज़रूरी होता है, उसका सही ढंग से निस्तारण करना। जो महिलाओं के लिए बहुत अजीब हो जाता है। खुले में फेंक देने से कुत्ते इधर-उधर कर देते हैं। इसका भी हल पुष्पा ने निकाल लिया। पुष्पा कहती हैं, "एक मटके में ढेर सारे छेद बनाकर, उसमें इस्तेमाल किए हुए पैड दाल दें, फिर उसे ज़मीन में एक गड्ढा खोदकर उसमें रख लें और आग लगा कर मटके का ढक्कन बंद कर दें। बंद करने से सारी चीजें जल जाएँगी और राख छेद से बाहर गिर जाती है।"

नीलम की तरह ही 35 वर्षीय गीता भी, अब खुद घर में पैड बनाकर इस्तेमाल करतीं हैं। गीता गाँव कनेक्शन सें बताते हैं, "पहले दिक्कत होती थी। कपड़ा इस्तेमाल के बाद कहीं फेंक देते थे, जो इधर-उधर पड़ा रहता, अब तो हम भी उसे घड़े में डालकर जला देते हैं।"

लेकिन पुष्पा के लिए ये सब करना इतना आसान नहीं था। पुष्पा कहती हैं, "इसके लिए लोगों ने काफी कुछ बोला ये क्या पागलपन कर रही हो, इससे क्या हो जाएगा, लेकिन मुझे लगा महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए ये ज़रूरी हैं। हम बात करते हैं लेकिन कहीं न कहीं अब भी स्थिति वही पुरानी है, इसलिए मैं सबका ख्याल तो एक साथ रख नहीं सकतीं, इसलिए मैं चाहती थी कि मेरा बेटा डॉक्टर बने और लोगों की मदद करे, आज मेरा बेटा एमबीबीएस कर रहा है।"


इसके साथ ही पुष्पा माँ और बेटियों को गुड टच बैड टच के बारे में भी बताती हैं, जिससे वो सुरक्षित रहें।

महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने वाली पुष्पा की कहानी भी प्रेरणादायक है। जब वो दसवीं में पढ़ रही थीं, तभी उनकी शादी हो गई थी, ससुराल में आकर उन्होंने आगे पढ़ाई की और आर्मी में भी गईं और फिर शिक्षिका बनी। पुष्पा कहती हैं, "कुछ समय तक आर्मी में नौकरी की फिर मेरा सेलेक्शन प्राथमिक विद्यालय में हो गया और मैं यहाँ आ गई। मैं आर्मी बैकग्राउंड से रहीं हूँ तो वहाँ पर चीजें थोड़ी स्ट्रिक्ट होती हैं।"

वो आगे कहती हैं, "यहाँ स्कूल में ऐसा माहौल बिल्कुल भी नहीं था, इसलिए मुझे लगा बच्चे कैसे पढ़ते होंगे , फिर मैंने अपने हिसाब से बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। मैं थियेटर आर्टिस्ट भी हूँ, मैंने बहुत से प्ले किए हैं जो काफी फेमस भी हैं। फोक डांसर भी रहीं हूँ। क्लासिकल डाँन्स की क्लास में आजकल जाती हूँ, जिससे स्कूल में ट्रेनिंग दे सकूँ। बच्चों के साथ काफी फिल्में बना चुकी हूँ।"

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