राजस्थान के हाशिए वाले जनजातीय समुदाय के स्कूल को हाइटेक बनाने का जुनून

राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 250 किलोमीटर दूर कोटा के एक ग्रामीण स्कूल में डिजिटल अटेंडेंस छोटी बात नहीं है। ये स्कूल पीएम श्री योजना में शामिल किया गया है, जहाँ पर आदिवासी समुदाय के बच्चे पढ़ने आते हैं।

Bedika AwasthiBedika Awasthi   24 Jan 2024 7:47 AM GMT

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राजस्थान के हाशिए वाले जनजातीय समुदाय के स्कूल को हाइटेक बनाने का जुनून

पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाली कालबेलिया समुदाय की शिवानी को पहले हिंदी भी नहीं बोलने आती थी, लेकिन आजकल अपनी क्लास में पढ़ने में सबसे आगे हैं। हिंदी ही नहीं, दूसरे विषय में भी अव्वल हैं।

शिवानी राजस्थान के कोटा जिले के परालिया की ढाणी राजकीय प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती हैं, जहाँ बेहतर पढ़ाई के साथ डिजिटल अटेंडेंस होती है। ये मुमकिन हो सका है उनकी टीचर बीना केदावत की वजह से। इस स्कूल में ज़्यादातर बच्चे कालबेलिया, मोग्या जैसे समुदाय से आते हैं, जो घूम-घूमकर अपना जीवन बसर करते हैं। पढ़ाई-लिखाई से कभी इनका दूर-दूर तक नाता नहीं था। हिंदी बोलना तो दूर की बात है।

ख़ास बात ये है कि इस स्कूल को अब पीएम श्री योजना के लिए चुना गया है।


शिवानी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "मुझे हिंदी बिल्कुल भी नहीं आती थी, लेकिन बीना मैम ने हमें बहुत कुछ सिखा दिया है, अब तो मैं भी उनकी तरह टीचर बनना चाहती हूँ।"

बीना केदावत ने जब ये स्कूल ज्वाइन किया था तब यहाँ पर लगभग 25 बच्चे पढ़ने आते थे, लेकिन उनके सफल प्रयासों के जरिये अब यहाँ पर 60 बच्चे पढ़ने आते हैं। जब गाँव कनेक्शन ने बीना से बात की तो उन्होंने बताया, “कोरोना वायरस के समय हमने डिजिटल वर्ल्ड के जरिये गाँवो में शिक्षा को पहुँचाया; हम व्हाट्सएप ग्रुप के ज़रिए बच्चों को होमवर्क देते थे, जिससे बच्चों की पढ़ाई में किसी तरह की रुकावट न आए।"

यही नहीं, बीना बस्तियों में जाकर ज़रूरतमंद बच्चों को पढ़ाती हैं, लेकिन ऐसे बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा उन्हें कहा से मिली के सवाल पर बीना कहती हैं, "एक बार मैंने झुग्गी-झोपड़ी में एक साठ साल की बुज़ुर्ग महिला को बच्चों को पढ़ाते हुए देखा, तब मेरे मन में इच्छा जगी कि जब ये इस उम्र में देश का भविष्य बदलने का काम कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं।"


आज बीना न सिर्फ अपने स्कूल के बच्चों को बेहतर शिक्षा दे रहीं हैं, बल्कि झुग्गी-झोपड़ियों में भी जाकर बच्चों को पढ़ाती हैं। जहाँ पर बच्चों के लिए स्कूल की सुविधा नहीं है। बीना का मानना है कि पढ़ना उन बच्चों का भी हक़ है।"

बीना के स्कूल में आज डिजिटल अटेंडेंस होती है, डिजिटल अटेंडेंस में टीचर मोबाइल फोन से क्यूआर कोड को स्कैन करते हैं, जिससे बच्चों के अभिभावकों के पास मैसेज पहुँच जाता है। आज स्कूल में सीसीटीवी कैमरा, कंप्यूटर, टीवी जैसी सुविधाएँ भी हैं।

बीना की शिक्षा की इस यात्रा में उनके पति हमेशा उनके साथ खड़े रहे और उन्हें प्रेरित करते रहते हैं। बीना कहती हैं, "मेरी इस सफलता में मेरे पति का बहुत बड़ा हाथ रहा है; उन्होंने हर एक प्रयास में समर्थन दिखाते हुए मेरे स्कूल में कई एक्टिविटीज का आयोजन करवाना और ग्रामीण इलाकों में पढ़ाने जाने की मंज़ूरी दी, वो हमेशा मेरी हर एक समस्या में मेरे साथ ढाल बनके खड़े रहे हैं।"

"आखिर में मैं तब सफल होंऊँगी जब मेरे बच्चे मुझसे आगे निकल कर एक सफल मुकाम पर पहुँच जाएँ। " बीना ने आगे कहा। उनके इस सफल प्रयासों की वजह से उन्हें जयपुर में शिक्षक सितारे सम्मान से नवाजा गया है।

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