दीवारों पर चित्र बना कर कैसे एक टीचर बच्चों में बढ़ा रहा है खुद पर भरोसा

गोरखपुर के एक ग्रामीण स्कूल में एक शिक्षक अपने छात्रों की कम्युनिकेशन स्किल बढ़ाने के लिए उन्हें ग्रैफिटी यानी दीवारों पर चित्र बनाकर पढ़ाना पसंद करते हैं। उनके मुताबिक, पेंटिंग बच्चों की जिज्ञासा को बढ़ाती है और आपसी बातचीत को प्रोत्साहित करती है। इससे उनमें एक आत्मविश्वास पैदा होता है।

Pratyaksh SrivastavaPratyaksh Srivastava   1 Sep 2023 8:43 AM GMT

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दीवारों पर चित्र बना कर कैसे एक टीचर बच्चों में बढ़ा रहा है खुद पर भरोसा

मनिकापार, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)। विजय कुमार चौधरी के लिए प्राइमरी स्कूल में छात्रों को पढ़ाना सिर्फ उनकी नौकरी नहीं है बल्कि बेहतर तरीके से सिखाने की उनकी चाह भी है। वह स्कूल के अंदर ही एक कमरे में रहते हैं और कक्षाओं की दीवारों पर पढ़ाई से जुड़े चित्र बनाते रहते हैं। उन्हें अपने इस काम से खासा लगाव है।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “बच्चे वास्तव में इसे पसंद करते हैं। दीवारों पर बने चित्र कक्षाओं में रंग जोड़ते हैं, लेकिन इसके साथ-साथ वो शिक्षकों के लिए शिक्षण सहायता के रूप में भी काम करते हैं। ” चौधरी आगे कहते हैं "हालाँकि मेरे पास शहर में एक घर है, लेकिन मैं यहाँ रहना और गाँव के लोगों के साथ बातचीत करने और स्कूल को सुंदर बनाने में समय बिताना पसंद करता हूँ ।"

44 वर्षीय शिक्षक को साल 2010 में स्कूल में सहायक शिक्षक के रूप में तैनात किया गया था। अब वह इस स्कूल के प्रधानाध्यापक हैं। वह कक्षा एक और पाँच को पढ़ाते हैं।


उन्होंने अपनी एक छात्रा अंशिका से कहा कि वह एक घायल कुत्ते की कहानी सुनाए, जिसे एक छोटी लड़की घर ले जाती है और उसकी देखभाल करती है। अंशिका खुश होते हुए आगे बढ़ती है और दीवार पर बने एक पोस्टर की तरफ देखती है। इस पोस्टर पर कुत्ते और एक छोटी लड़की का सचित्र चित्रण है। अंशिका बड़े ही आत्मविश्वास के साथ अपने सहपाठियों को कहानी सुनाने लगती है।

चित्रात्मक प्रस्तुतियों में चौधरी माहिर हैं। वह पोस्टरों और दीवार पर बने चित्रों से बच्चों को पढ़ाने का प्रयास करते हैं। उनका दृढ़ विश्वास है कि बच्चों को इससे काफी फायदा होता है।

जुलाई 2021 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए ‘निपुण’ (समझ और संख्यात्मकता के साथ पढ़ने में प्रवीणता के लिए राष्ट्रीय पहल) कार्यक्रम के हिस्से के रूप में शिक्षकों को कक्षा एक के छात्रों को पढ़ाने के लिए चित्रों का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। राज्य सरकार की ओर से शिक्षकों को शिक्षक मार्गदर्शिकाएँ दी गई हैं। ये मार्गदर्शिकाएँ बताती हैं कि इस काम को कैसे किया जाएगा।

चौधरी का मानना है कि अगर बच्चें खुश हैं तो वो तेजी से सीखते हैं। इसलिए यह शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे बच्चों को इस तरह पढ़ाएं कि वो स्कूल में खुश रहें। पढ़ाई उन्हें बोझ न लगे।


उन्होंने कहा, “खुशी काफी मायने रखती है। यह स्कूल के बारे में बच्चे की धारणा बनाने के लिए ज़रूरी है। अगर कोई बच्चा स्कूल में जो कर रहा है उससे खुश नहीं है, तो शिक्षक की कड़ी मेहनत भी परिणाम नहीं देगी। ”

चौधरी की एक छात्रा अंशिका ने कहा कि वह अपने स्कूल की दीवारों पर बने चित्रों को देखने में बहुत समय बिताती है। उसने कहा, “स्कूल की दीवारें बहुत सुंदर हैं। इन पेंटिंग्स की वजह से पढ़ाई दिलचस्प हो जाती है।''

दीवारों पर बने चित्र छात्रों को बोलने के लिए प्रेरित करते हैं

शिक्षक चित्रों वाली दीवारों का इस्तेमाल शिक्षण सहायक सामग्री के रूप में करते हैं। वे अपने छात्रों से पूछते हैं कि दीवारों पर क्या बना हैं?

जब चौधरी ने रितिक से उनकी पसंदीदा सब्जी के बारे में पूछा तो उसने कद्दू की ओर इशारा किया। इसके बाद सब्जी के बारे में बातचीत शुरु हो गई।

रितिक ने अपने सहपाठियों को बताया कि वह पूड़ी, पराठा, रोटी और कभी-कभी चावल के साथ कद्दू खाता है।


चौधरी ने कहा, ये ऐसे सवाल-जवाब हैं जो बच्चों के बोलने के प्रवाह में सुधार करते हैं और उन्हें बिना झिझके बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने बताया, "हम उन सवालों से शुरुआत करते हैं जिनके जवाब में सिर्फ एक या दो शब्द की ज़रूरत होती है। फिर धीरे-धीरे उन सवालों पर आगे बढ़ते हैं जिनके लिए छात्रों को लंबे वाक्य बोलने और अधिक शब्दों की ज़रूरत होती है।"

उन्होंने कहा, “यह उन्हें आत्मविश्वासी बनाने में मदद करता है। यह आत्मविश्वास उनकी सीखने की प्रक्रिया को और अधिक सहज बनाने में बहुत मदद करता है।”

खाने में क्या पसंद है

छात्रों को यह भी अधिकार है कि वे उस दिन स्कूल में क्या खाना पसंद करेंगे, इसके बारे में टीचर को बताए।

चौधरी ने कहा, ''हम रसोइयों से उनकी पसंद के खाना तैयार करने के लिए कहते हैं। जो छात्र कहते हैं उस दिन वही बनता है।''

रिया से जब पूछा जाता है कि वह उस दिन क्या खाना चाहती है, तो वह सोयाबीन बड़ी की सब्जी (सोया नगेट्स) के लिए वोट करती है।


उन्होंने कहा, “यह उन्हें स्कूल के फैसलों में शामिल होने का एहसास कराता है। बच्चे ऐसी जगह आना पसंद करते हैं जहाँ उनकी बात सुनी जाए और उनकी पसंद का सम्मान किया जाए। इससे स्कूल छोड़ने की दर नियंत्रित रहती है और उपस्थिति भी बढ़ती है।''

छात्रों के माता-पिता इस बात से बहुत खुश हैं कि स्कूल में स्टाफ उनके बच्चों की इतनी देखभाल करते हैं।

एक छात्रा की माँ ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरी बेटी को इस स्कूल में आए हुए अभी सिर्फ दो महीने हुए हैं। उसमें गजब का आत्मविश्वास आ गया है। वह हर दिन स्कूल जाने के लिए उत्साहित रहती है। उसे दीवारों पर पेंटिंग्स बहुत पसंद हैं। उसके शिक्षक भी उसकी काफी परवाह करते हैं।''

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं यहाँ पढ़ाने वाले टीचर को शुक्रिया कहना चाहती हूँ। वह यहीं रहते हैं और उन्होंने स्कूल की दीवारों पर पेंटिंग भी की है। इससे यह स्कूल छात्रों के लिए बहुत आकर्षक हो गया है। मुझे लगता है कि मेरे बच्चे को यहाँ सही शिक्षा मिल रही है।''

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