टीचर्स डायरी : "अगर उस दिन उस लड़की के घर न जाती तो आज उसका बाल विवाह हो चुका होता"

रुपेश राजोरिया उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के अपर प्राइमरी स्कूल बड़ोली में शिक्षिका हैं, वो न सिर्फ बच्चों को बेहतरीन शिक्षा दे रहीं हैं, बल्कि उनकी परेशानियों को भी सुनती हैं। टीचर्स डायरी में वो आज ऐसा ही एक किस्सा साझा कर रहीं हैं।

Rupesh RajoriyaRupesh Rajoriya   15 May 2023 1:06 PM GMT

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टीचर्स डायरी : अगर उस दिन उस लड़की के घर न जाती तो आज उसका बाल विवाह हो चुका होता

2006 जनवरी मे मेरी ज्वाइनिंग अपर प्राइमरी स्कूल देवा शैली अतरौली अलीगढ़ मे हुई थी, स्कूल के बच्चों से मेरा काफी लगाव है बच्चों का मन मेरे बिना नहीं लगता और न ही मेरा मन बच्चों के बिना। मैं पढ़ाने के साथ ही उनकी समस्याओं पर भी बात करती हूँ , जिससे बच्चे अपनी बातें सहजता से कह पाएँ ।

2007 में मेरा ट्रांसफर अपर प्राइमरी स्कूल बड़ोली में हो गया, बच्चे काफी दुखी थे। एक बच्चा तो अपनी गुल्लक ही उठा लाया और बोला कि मैम आपको पैसे चाहिए, ले लीजिए, लेकिन आप यहाँ से मत जाओ। बच्चों का प्यार मेरे लिए सबसे बढ़कर है, मेरे जाते समय हर एक बच्चों की आँखों में आँसू थे, बहुत ज़्यादा भावुक पल था। उस समय मोबाइल का उतना चलन नहीं था, नहीं तो उन यादों को सहेज कर रख लेती। उनमें से कई बच्चों से अभी बात होती है, अक्सर फोन करते रहते हैं।


एक बार एक बच्ची ने मुझे क्लास में बताया कि मैम मेरी दीदी स्कूल नहीं आती है वो कक्षा पॉँच तक पढ़ाई करके घर बैठी है। जब मैंने उसके बारे में पूछा तो बच्ची ने बताया कि मम्मी-पापा पढ़ा नहीं रहे हैं, उसका एडमिशन स्कूल में नहीं हुआ है।

उस बच्ची के बारे में जानने के लिए मैं उस लड़की के घर गई तो पता चला कि उसकी उम्र थोड़ी ज़्यादा हो गई है। क्योंकि हमारे स्कूल में 14 साल उम्र होनी चाहिए और उसकी उम्र 15 साल हो गई है। मैंने जब बच्ची के माता-पिता से बात की तो मालूम हुआ वो उसकी शादी करना चाह रहे थे। कहने लगे हमारी चार बेटियाँ हैं, उनकी शादी करनी है। मैंने उन्हें समझाया कि अभी बच्ची बहुत छोटी है, इसका एडमिशन मैं कराऊँगी, अभी शादी मत करिए।

फिर मैंने अपनी जिम्मेदारी पर एबीएसए से बात करके उस बच्ची का एडमिशन कराया, और उसकी आर्थिक मदद भी की। मेरी कोशिश रंग लाई, वो अच्छे से पढ़ाई कर रही है। जब भी उससे बात होती है तो कहती है कि मैम आपने मेरी जिंदगी बना दी।

"स्कूल मेरे घर से 35 किलोमीटर दूर है। बस, ऑटो करके स्कूल जाती हूँ। सुबह जल्दी घर से निकल कर समय से स्कूल पहुँचने मे काफी समय लग जाता है, सर्वाइकल की समस्या भी मुझे हो गई है। डॉक्टर कभी कभी ट्रैवल करने से मना भी करते हैं, लेकिन स्कूल और बच्चे मेरे लिए बहुत ज़रूरी हैं।"

जैसा कि रुपेश बागड़िया ने गाँव कनेक्शन की इंटर्न अंबिका त्रिपाठी से बताया

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