"बच्चों को बेहतर शिक्षा देकर अपने बचपन के सपने को कर रहा हूँ साकार"

Suresh Panwar | Jul 13, 2023, 12:36 IST
सुरेश पंवार मध्य प्रदेश के सीहोर ज़िले में प्राथमिक शाला में शिक्षक हैं, साल 2013 में नियुक्ति के बाद आज वो तीसरे स्कूल में नियुक्त हैं, इस दौरान उनका कैसा रहा है सफ़र, टीचर्स डायरी में साझा कर रहे हैं।
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मेरा सपना बचपन से ही एक आदर्श शिक्षक बनने का था, इसी तरह जुलाई 2013 को मेरी प्रथम नियुक्ति मेरे गृह ज़िले सीहोर से लगभग 800 किलोमीटर दूर शासकीय प्राथमिक शाला सलैहा ज़िला सीधी में हुई।

प्राथमिक शिक्षक के पद पर जहाँ भेजा गया वहाँ लगभग 90 बच्चे रजिस्टर में दर्ज थे, लेकिन मुझे पढ़ाने के लिए कक्षा 1 और 2 मिली। मुझे अध्यापन काम में भाषा संबंधित कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, क्योंकि मुझे बघेलखंडी भाषा नहीं आती थी। जबकि में खड़ी हिंदी बोलता था, लेकिन मैंने 15 अगस्त को जब देशभक्ति गीत गाया तो सभी बच्चों और अभिभावकों ने ख़ूब तालियाँ बजाई तब मैं समझ गया कि बच्चों को हिंदी के गीत बहुत अच्छे से समझ में आते हैं।

फिर क्या था मैंने धीरे-धीरे गीत-कविताओं और गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को जोड़ना शुरू किया और एक दिन ऐसा आया कि बच्चे मुझ से खुल कर हिंदी में बात करने लगे। 26 जनवरी को जब मैंने सांस्कृतिक कार्यक्रम कराया तो उस गाँव के सरपंच ने व्यक्तिगत रूप से मुझे 1000 रुपए से पुरस्कृत किया क्योंकि इससे पहले वहाँ पर कभी कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हुए थे।

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इसके बाद सितंबर 2018 को ट्रांसफर होकर अपने गृह ज़िले सीहोर के प्राथमिक शाला डोंगलापानी पहुँचा। यह क्षेत्र भी आदिवासी बहु संख्यक था। जब यहाँ विद्यालय में लगभग 70 बच्चे नामांकित थे लेकिन विद्यालय 20 से 30 बच्चे ही आते थे।

शिक्षा के प्रति अभिभावक और बच्चे उदासीन थे, बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए मेरा पहला प्रयास यह रहा कि मैंने भवन पेंटिंग , शिक्षाप्रद बैटिंग कराई और टीएलएम बनाए और अभिभावकों की बार-बार एसएमसी की बैठक लेकर उन्हें शिक्षा का महत्व बताया।

फिर क्या था धीरे-धीरे अभिभावकों ने बच्चों को पहुँचाना शुरू किया और एक दिन शासकीय प्राथमिक शाला डोंगलापानी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी संस्थान बन गया। कोरोना काल में मोहल्ला पाठशाला, रेडियो स्कूल और चलित पुस्तकालय से बच्चों को अध्यापन काम कराया।

मेरा कारवाँ यहीं नहीं रुका मार्च 2021 में मेरा स्थानांतरण शासकीय प्राथमिक शाला धन्नास हो गया। जब मैं यहाँ के विद्यालय पहुँचा तो दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या 16 थी। यहाँ पहुँच कर भी मैंने सर्वप्रथम विद्यालय को शिक्षाप्रद पेंटिंग और टीएलएम बनाकर और जन सहयोग से स्मार्ट टीवी खरीदकर कक्षा की शुरुआत की। आज लगभग 25 बच्चों का नामांकन है। शिक्षा के क्षेत्र में आज भी मैं हमेशा अच्छा काम करने का प्रयास करता हूँ । आगे भी बच्चों को अच्छी उच्च और संस्कारवान शिक्षा देना मेरा लक्ष्य है।

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