"जो लड़कियाँ स्कूल तक नहीं आती थीं, आज वो दूसरे ज़िलों में भी खेलने जाती हैं"

सुमित कुमार उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर पूर्व माध्यमिक विद्यालय, कजरीनूरपुर में शिक्षक हैं। ये यहाँ के सबसे पुराने विद्यालयों में से एक है, लेकिन समय के साथ इसका महत्व कम हो गया था। सुनील कुमार की मेहनत से कैसे इस विद्यालय का कायाकल्प हुआ वे खुद बता रहे हैं टीचर्स डायरी में ।

Sumit KumarSumit Kumar   21 Jun 2023 8:00 AM GMT

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जो लड़कियाँ स्कूल तक नहीं आती थीं, आज वो दूसरे ज़िलों में भी खेलने जाती हैं

उत्तर प्रदेश का ये एक ऐसा स्कूल है जो कभी काफी मशहूर था। शाहजहाँपुर पूर्व माध्यमिक विद्यालय का नाम बस लीजिए लोग जान जाते थे।

क्योंकि यहाँ के लोगों ने इस स्कूल के लिए अपनी आठ एकड़ ज़मीन दान कर दी थी। यहाँ से पढ़कर बहुत सारे लोग ने कई उपलब्धियाँ हासिल की। लेकिन समय के साथ इस स्कूल की स्थिति पहले जैसी नहीं रही।

एक समय था यहाँ 16 गाँव के बच्चे पढ़ने आते थे, लेकिन जब 2016 में मेरा ट्रांसफर हुआ तब स्कूल की हालत ठीक नहीं थी, बच्चे स्कूल के तय समय पर नहीं बल्कि आराम से सारा काम निपटाकर नौ बजे के बाद आते थे। लड़कियाँ तो घर के कामों के चक्कर में स्कूल ही नहीं आ पाती थीं। स्कूल की स्थिति कुछ ऐसी बन चुकी थी कि कोई भी आए जाये स्कूल में कोई रोकने टोकने वाला नहीं था।


बच्चों को स्कूल तक ले जाने के लिए उनके घर जाकर उनके माता-पिता को समझाया। उनकी काउंसलिंग की, फिर धीरे धीरे बच्चों का आना शुरू हुआ। स्कूल की हालत में सुधार कराया गया। बच्चे पढ़ाई में बहुत ही होशियार हैं, बस उनपर ध्यान देने की ज़रूरत थी।

एक बार स्कूल से बच्चियों को कबड्डी के लिए सहारनपुर लेकर जाना था, लेकिन उसके लिए बाकी टीचरों ने हाथ खड़े कर दिये, उनका कहना था कि लड़कियों के परिवार वाले तैयार नहीं होगें। क्योंकि उनकी सोच अब भी पुरानी है, लेकिन उस दिन नौ लड़कियाँ जाने के लिए तैयार हो गईं, उनके घर वाले उन्हें छोड़ने भी आए। उस दिन मुझे एहसास हुआ कि जो मैं स्कूल के लिए कर रहा हूँ, उसी का ये नतीजा है।


बेसिक की बच्चियों ने पहली बार ऐसे किसी इवेंट में भाग लिया। वो जीत तो नहीं पाई थी, लेकिन आगे दूसरे खेलों में भी लड़कियाँ खेलने जाती रहीं। बैडमिंटन में प्राची यादव और सोनम सिल्वर जीत कर आयीं , गोल्ड से सिर्फ एक रैंक पीछे रह गई थीं जिसकी वजह से उन्हें काफी बुरा लगा था। उन्होंने काफी मेहनत की थी। पहले स्कूल में कुछ खास सुविधाएँ नहीं थी जिसके कारण बच्चों को काफी कुछ सीखने समझने में दिक्कत हो रहीं थीं लेकिन अब स्कूल में हर तरह की सुविधाएँ हैं।

मेरे स्कूल के बच्चे बहुत ही ज़्यादा काबिल हैं। कोई खेती किसानी में आगे है तो कोई कला में, तो कोई गुणा भाग हाथों हाथ करता हैं। इन बच्चों के लिए मैं कुछ और बेहतर करने के प्रयास में हूँ। इनके लिए नए रास्ते बनाने हैं। बच्चों को क्लास में बैठकर पढ़ने में मन नहीं लगता है, इसलिए उन्हें कुछ इस तरह पढ़ाया जाता है जैसे उनको जल्दी चीजें समझ आ जाएं और वे बोर न हों।

आप भी टीचर हैं और अपना अनुभव शेयर करना चाहते हैं, हमें [email protected] पर भेजिए

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