'खेतों में काम करने वाले बच्चों का कराया स्कूल में दाखिला'

डॉ. पुष्पलता पांडेय उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले में आदर्श संविलियन विद्यालय, रामपुर देवरिया में प्रधानाध्यापक रहने के बाद 31 मार्च को रिटायर हो चुकी हैं। 36 साल के अपने अध्यापन कार्यकाल में उन्होंने बहुत से बदलाव किए जिन्हें वो टीचर्स डायरी में साझा कर रही हैं।

Pushplata PandeyPushplata Pandey   11 Aug 2023 8:41 AM GMT

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खेतों में काम करने वाले बच्चों का कराया स्कूल में दाखिला

31 मार्च 2023 को मैं स्कूल से रिटायर हो चुकी हूँ, लेकिन बच्चों के प्रति मेरा भाव वैसा ही रहेगा जैसा पहले था। 1986 में मेरी पोस्टिंग प्राथमिक विद्यालय महुली में हुई थी, मैं तभी से बच्चों की पढ़ाई पर बहुत ध्यान देती थी, बच्चों के लिए कोशिश करती थी, कि नए-नए तरीकों से पढ़ाऊँ जिससे बच्चे खूब अच्छे से पढ़ें और आगे बढ़ें।

उनके अभिभावकों से हमेशा जुड़कर रहती थी, किस्से कविता गाकर बच्चों को पढ़ाती थी। फिर 1991 में मेरा प्रमोशन हुआ और प्रिंसिपल बन गई। 8 से 10 साल शहर में रही लेकिन बच्चों को पढ़ाने के लिए गाँव जाती थी। जब रास्ते से जाती, तो मैं हमेशा देखती गाँव की जो लड़कियाँ हैं वो खेतों में काम करती दिखती थी और लड़के मछली पकड़ते हुए दिखते। उन्हें ऐसे काम करते हुए हमेशा सोचती कि ये लोग स्कूल क्यों नहीं आते। एक दिन मैं रास्ते में ही रुक गई।


मैंने बच्चों के साथ उनके परिवार के लोगों से बात की तो पता चला कि किसी ने पाँच तक पढ़ाई है तो किसी ने चार तक। हर किसी ने थोड़ी बहुत पढ़ाई करके छोड़ दी है। मैंने बच्चों के माता-पिता को समझाया कि आप लोगों के पास ही जूनियर हाईस्कूल है, तो वहाँ पर बच्चों को मुफ्त में पढ़ा सकते हैं। ऐसे कई बार समझाने पर कई बच्चों के एडमिशन हो गए।

शुरुआत में जब स्कूल ज्वाइन किया तो बहुत परेशानियाँ भी हुईं, आज की तरह तब सरकारी स्कूलों में व्यवस्था नहीं थी, लेकिन मैंने ठान लिया था कि अपने स्कूल को बदल के रहूँगी। मैंने पूरे स्कूल को पौधों से ऐसे सजाया कि स्कूल गार्डेन जैसा दिखने लगा। स्कूल में मैं अपने घर से कम्प्यूटर लाकर लगाया।


ऐसे ही अपने स्कूल में बहुत सारे बदलाव किए, जिसके लिए मुझे राज्य पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया और दो साल मेरी नौकरी बढ़ा दी गई।

मेरा भयानक एक्सीडेंट हो गया था, तीन दिनों तक कोमा में रही, सभी को यही लग रहा था कि शायद मैं अब होश में ही न आऊँ, लेकिन बच्चों के प्यार ही था जिसकी वज़ह से मैं ठीक हो पायी। 22 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद जब मैं ठीक हुई तो सभी ने कहा कि मुझे आराम करना चाहिए, लेकिन मैंने स्कूल आना नहीं छोड़ा। इतने साल में पहली बार था जब मैं इतने दिनों के लिए स्कूल से दूर रही थीं, मैं कभी इतने दिनों के लिए स्कूल से दूर नहीं गई थी।

बच्चों और स्कूल का प्यार ही है, जिसकी वज़ह से मैं रिटायर होने के बाद भी मैं कभी-कभी स्कूल जाती रहती हूँ, कोशिश रहती है कि वो रिश्ता हमेशा बना रहे।

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