मध्य प्रदेश के इस ग्रामीण स्कूल में आदिवासी बच्चे सीख रहे हैं फ्री फुटबॉल कोचिंग और कोडिंग

‘रिवरसाइड नेचुरल स्कूल’ मध्य प्रदेश के मोहगाँव में एक रेजिडेंशियल स्कूल है, जहाँ गोंड आदिवासी बच्चों को न सिर्फ फ्री शिक्षा दी जाती है बल्कि उन्हें फुटबॉल खेलना और कोडिंग करना भी सिखाया जाता है।

Laraib Fatima WarsiLaraib Fatima Warsi   30 Oct 2023 11:29 AM GMT

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मध्य प्रदेश के इस ग्रामीण स्कूल में आदिवासी बच्चे सीख रहे हैं फ्री फुटबॉल कोचिंग और कोडिंग

मंडला जिले के एक दूर-दराज इलाकें में बसे मोहगाँव के आदिवासी बच्चों के बीच नॉर्वेगिया के एर्लिंग हालैंड और यूके के जूड बेलिंगहैम जैसे फुटबॉल खिलाड़ी काफी प्रसिद्ध हैं। सभी तस्वीरें- मृदा एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी 

मध्य भारत में भोपाल से लगभग 400 किलोमीटर दूर, मध्य प्रदेश के मंडला जिले के एक दूर-दराज इलाके में बसे मोहगाँव के आदिवासी बच्चों को नॉर्वेगिया के एर्लिंग हालैंड और यूके के जूड बेलिंगहैम जैसे फुटबॉल खिलाड़ी काफी पसँद हैं और वो उनके नक्शे कदम पर चलने की तमन्ना रखते हैं।

गोंड आदिवासी समुदाय के ये बच्चे बड़े होकर इन अँतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की तरह बनना चाहते हैं। 12 साल की तेजस्विनी मरावी भी उनमें से एक हैं। इस गोंड आदिवासी लड़की ने महज सात साल की उम्र से फुटबॉल सीखना शुरू कर दिया था।

तेजस्विनी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं सात साल की उम्र से फुटबॉल खेल रही हूँ, मैं हमेशा से एक फुटबॉलर बनना चाहती थी; मेरा स्कूल मेरे सपने को साकार करने में मेरी मदद कर रहा है।” वह आगे कहती हैं, "मुझे अपनी सुबह-सुबह की प्रैक्टिस काफी पसँद है। छह बजे (सुबह 6 बजे) स्कूल के मैदान में फुटबॉल अभ्यास शुरू हो जाता है और तीन घंटे तक लगातार चलता है।"

जो बच्चे कोडिंग लैंग्वेज सीखने और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं, उन्हीं को ध्यान में रखते हुए इस कोर्स की शुरुआत की गई थी।

तेजस्वनि रिवरसाइड नेचुरल स्कूल की आठवीं क्लास में पढ़ती हैं। छिँदवाड़ा के मोहगाँव शहर में स्थित यह एक आवासीय स्कूल है, जो 2016 में आदिवासी बच्चों के लिए शुरू किया गया था। यहाँ कक्षा एक से लेकर 12 वीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाया जाता है। तेजस्विनी के पिता अमझर गाँव में एक किसान हैं और उनके दो भाई-बहन हैं। वह अपने स्कूल के छात्रावास में रहती हैं। बच्चों से पढ़ाई या हॉस्टल में रहने के लिए किसी भी तरह की कोई फीस नहीं ली जाती है।

रिवरसाइड नेचुरल स्कूल सैकड़ों आदिवासी बच्चों के लिए आशा की किरण है क्योंकि ये स्कूल न सिर्फ आदिवासी बच्चों को फ्री शिक्षा मुहैया करता है बल्कि उन्हें फुटबॉल का प्रशिक्षण भी देता है। पिछले साल, 2022 में, स्कूल के छात्रों ने सुब्रतो कप इंटरनेशनल फुटबॉल टूर्नामेंट में भाग लिया था। यह नई दिल्ली में आयोजित एक लोकप्रिय अँतरराष्ट्रीय इंटर-स्कूल फुटबॉल टूर्नामेंट है।

इस अनोखे स्कूल की स्थापना गैर-लाभकारी संगठन ‘मृदा एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी’ ने की थी। स्कूल चलाने का मकसद दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों के आदिवासी बच्चों के शिक्षा के सपने को पूरा करना और उनके पसंदीदा कैरियर के हिसाब से चीजें सिखाना था। खेल, रोबोटिक्स और प्रोग्रामिंग में प्रासंगिक शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देने के साथ-साथ ‘मृदा’ का काम हाशिए पर रहने वाले आदिवासी बच्चों के जीवन को बदलना है। स्कूल में छात्र फुटबॉल के अलावा कोडिंग भी सीखते हैं।

रिवरसाइड नेचुरल स्कूल सैकड़ों आदिवासी बच्चों के लिए आशा की किरण है क्योंकि स्कूल न सिर्फ आदिवासी बच्चों को फ्री शिक्षा मुहैया कर रहा है बल्कि उन्हें फुटबॉल और कोडिंग भी सिखाता है।

मृदा एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी की सह-संस्थापक प्रिया नाडकर्णी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हम एक नए नज़रिए के साथ आगे बढ़ रहे हैं। बच्चों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेल और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग जैसी को-करिकुलर एक्टिविटीज भी उनके समग्र विकास के लिए समान रूप से ज़रूरी हैं। " मृदा सभी छात्रों के लिए फ्री में रहने और खाने की व्यवस्था करता है, साथ ही उन्हें फ्री ट्रेंनिंग भी दी जाती है और खेल का सामान और कंप्यूटर आदि भी उपलब्ध कराया जाता है। उन्होंने बताया कि स्कूल में फुटबॉल कोचिंग 2017 में शुरू हुई थी।

फिलहाल स्कूल में तकरीबन 334 छात्र-छात्राएँ हैं, जो ज़्यादातर आदिवासी समुदायों से हैं। इनमें से 152 आवासीय छात्र हैं जो परिसर में रहते हैं, और बाकी डे स्कॉलर हैं। स्कूल में 13 शिक्षक और लगभग 36 स्टाफ मेंबर हैं जिनमें कोच, वार्डन, कुक और प्रबंधकीय कर्मचारी शामिल हैं।

38 वर्षीय नाडकर्णी ने कहा, “छात्रों का स्कूल आने-जाने में जो भी ख़र्च होता है, उसका भी ध्यान संस्थान ही रखता है, क्योंकि ये बच्चे वंचित पृष्ठभूमि से आते हैं। हम हर बच्चे पर पूरा ध्यान देते हैं ताकि वे सही ढंग से अपनी पढ़ाई और अपने सपनों को पूरा कर सके।”

स्कूल में छह फुटबॉल कोच हैं जो लड़कों और लड़कियों दोनों को फुटबॉल खेलने की ट्रेनिंग देते हैं।

सह-शिक्षा स्कूल को चलाने में व्यक्तिगत दानदाताओं का खासा योगदान है। स्कूल को दान देने वाले ज़्यादातर लोग फाइनेंस और मैन्युफैक्चरिंग जैसे विभिन्न व्यवसायों से जुड़े हैं। यह स्कूल एक किराए की जगह पर चलता है और इसमें 14 कमरे हैं। इन कमरों में सुबह क्लास लगती हैं और रात में आवासीय छात्रों के लिए अस्थाई रूप से सोने की व्यवस्था की जाती है। यहाँ एक किचन और एक लाइब्रेरी के साथ 11 शौचालय हैं।

छात्रों के लिए खेल का मैदान स्कूल के ठीक सामने है। पहले यह एक खेत था जिसे बाद में खेल के मैदान में बदल दिया गया । स्कूल में छह फुटबॉल कोच हैं जो लड़कों और लड़कियों दोनों को फुटबॉल की ट्रेनिंग देते हैं।

तेजस्विनी ने बताया, “इस स्कूल में आने के बाद, मैं पढ़ाई के साथ-साथ और फुटबॉल खेलने के अपने सपने पर भी काम कर पा रही हूँ । जब हमारी टीम को दिल्ली में सुब्रतो कप में भाग लेने जाना था तो मुझे लगा कि मैं नहीं खेल पाऊँगी लेकिन मेरे कोच और टीम के साथियों ने मेरा हौसला बढ़ाया। ” स्कूल के कम से कम 200 छात्रों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दी जा रही है।


तेजस्विनी की तरह, सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली 12 साल की अंबिका धुर्वे को भी फुटबॉल खेलना पसँद है। वह भी स्कूल के छात्रावास में रहती हैं। जब वह सात साल की थीं तब से फुटबॉल खेल रही हैं। अंबिका के पिता स्कूल में फुटबॉल कोच हैं।

अंबिका ने गाँव कनेक्शन को बताया। “मुझे फुटबॉल खेलना पसँद है और मैं मशहूर होना चाहती हूँ । मेरी तमन्ना है कि मैं नेशनल लेवल पर खेलूं। अपने हॉस्टल के लिविंग एरिया में सप्ताहांत पर हम सब टीवी पर फुटबॉल मैच देखते हैं।” अंबिका ने आगे कहा, "इस स्कूल में आने के बाद मैं अपने पसंदीदा विषय गणित और अंग्रेजी के साथ-साथ अपने लक्ष्य (फुटबॉल) पर भी पूरा ध्यान दे पा रही हूँ।"

2017 में, जब रिवरसाइड नेचुरल स्कूल ने फुटबॉल कोचिंग की शुरुआत की, उसी साल उसने अपने छात्रों के लिए कोडिंग क्लास भी शुरू कीं थीं। ये कक्षाएँ उन छात्रों के लिए हैं, जिन्हें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग करना पसँद है।

नाडकर्णी ने कहा, "कोडिंग शुरू करने के पीछे का विचार उन बच्चों की जरूरतों को पूरा करना था जो कोडिंग लैंग्वेज सीखने और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं।"

रिवरसाइड नेचुरल स्कूल में 11वीं कक्षा के 16 वर्षीय छात्र देवेन्द्र धुर्वे के लिए ये कक्षाएँ बेहद फायदेमंद हैं। देवेंद्र मंडला से हैं और उनके पिता एक किसान हैं। देवेंद्र ने कहा, “मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहता हूँ। मुझे तरह-तरह की कोडिंग भाषाएँ सीखना पसँद है। हमारी सुबह कोडिंग क्लास होती है जिसमें हमें HTML और C++ सिखाया जाता है।'' देवेंद्र स्कूल के हॉस्टल में रहते हैं और छुट्टियों में अपने घर जाते हैं।

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