ठंड से ठिठुर रहीं कस्तूरबा गांधी विद्यालयों की हज़ारों छात्राएं

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ठंड से ठिठुर रहीं कस्तूरबा गांधी विद्यालयों की हज़ारों छात्राएंगाँव कनेक्शन

लखनऊ। कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालयों में पढऩे वाली छात्राएं ठंड में ठिठुरने को मजबूर हैं। कहीं विद्यालयों में छात्राओं के लिए पुवाल पर गद्दे बिछाए गए हैं, तो कहीं एक-एक रजाई में तीन-तीन छात्राओं को सोना पड़ रहा है। 

गाँव कनेक्शन ने चार जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालयों में पड़ताल की, तो कहीं रजाई गद्दे नहीं हैं, तो कहीं बाउंड्रीवाल न होने से सुरक्षा पर संकट है। 

बस्ती के परशुरामपुर विकास खंड के कस्तूरबा गांधी विद्यालय में 93 छात्राएं पंजीकृत हैं, यहां सिर्फ  26 बेड हैं। मजबूरी में ज़मीन पर ही गत्ते और पुवाल डालकर बिस्तर बना लिया गया है। छात्राओं की संख्या के अनुपात में रजाई और कंबल भी नहीं हैं। कुछ ने घरों से रजाई मंगाई है, तो बाकी अपनी सहेलियों की रजाई में ही दुबक लेती हैं। 

"छात्राओं की संख्या को देखते हुए पर्याप्त मात्र में रजाई नहीं हैं। अधिकारियों को अवगत करा दिया गया है।" बस्ती के परशुरामपुर विद्यालय की वार्डेन शशिप्रभा ने बताया। 

वहीं, बस्ती से करीब 650 किलोमीटर दूर ललितपुर जिले के तालबेहट के तरगुवाँ विद्यालय में 100 छात्राएं पंजीकृत हैं, जिससे 92 नियमित रूप से रहती हैं। लेकिन विद्यालय में सिर्फ 60 बेड हैं, मतलब एक बेड पर दो लड़कियों को सोना पड़ता है। यहां छात्राओं के लिए पर्याप्त कंबल और रजाई भी नहीं है। आवास की अधिकांश खिड़कियों के शीशे टूटे हुए हैं। हवा और सर्दी से बचने के लिए कपड़ों के पर्दे लटकाए गए हैं। 

उत्तर प्रदेश में मौजूदा समय में 746 आवासीय विद्यालय हैं, जिनमें 71,953 गरीब घरों की लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं। इन विद्यालयों में रहने खाने से लेकर पढ़ाई तक की व्यवस्था मुफ्त है। कुछ शहरी इलाकों के कस्तूरबा विद्यालयों को छोड़ दें तो सुदूर ग्रामीण इलाकों के विद्यालयों की हालत खस्ता है।

जहां कई विद्यालयों में वार्डेन और जिले के अधिकारियों ने बोलने से साफ मना कर दिया, तो वहीं लखनऊ में बैठे वरिष्ठ अधिकारी समस्या मानने से ही इनकार कर रहे हैं। जिले के अधिकारी 2012 के बाद से बजट न आने का रोना रो रहे हैं। 

सर्व शिक्षा अभियान, उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. मुकेश कुमार सिंह बताते हैं, "हर तीन वर्ष में 75,000 रुपये प्रति विद्यालय को बेडिंग (बेड, गद्दा, रजाई और चादर) के लिए दिए जाते हैं। इसके साथ ही हर माह 25000 रुपये प्रति विद्यालय को हर तरह की मरम्मत के लिए दिए जाते हैं। इसलिए अगर कहीं कोई कमी है तो इसके लिए जिले के अधिकारी जिम्मेदार हैं।" राष्ट्रीय परिवर्तन संस्था की ओर से कराए गए सर्वे में उत्तर प्रदेश के 56 फीसदी कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालयों में चारदीवारी नहीं है जबकि 23 फीसदी के पास सुरक्षा गार्ड नहीं है। चारदीवारी न होने से कई बार जंगली जानवर भी विद्यालय में आ जाते हैं, जिसके कारण लड़कियां भी असुरक्षित महसूस करती हैं।

उन्नाव में स्थित एक कस्तूरबा विद्यालय की वार्डेन ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "सहायक वित्त एवं लेखाधिकारी, उन्नाव अनूप सिंह ने निर्देश दिया था कि जो रजाई गद्दे फट गए हैं, उनकी रुई से गद्दे बनवा लिए जाएं, लेकिन उसके लिए बजट नहीं है। मैं अपनी जेब से कहां से दूं।" कई विद्यालयों में छात्राएं वार्डन की उपस्थिति में खुल कर बोल नहीं पाईं। हालांकि बाराबंकी और लखनऊ जिले के अधिकांश शहरी कस्तूरबा विद्यालयों में व्यवस्थाएं बेहतर मिलीं।

बस्ती में खुले में शौच जाने की मजबूरी

परशुरामपुर विकास खंड के आवासीय विद्यालय के परिसर में ही शौचालय का निर्माण करवाया गया है, लेकिन पिछले कई महीनों से पाइप लाइन टूट जाने की वजह से इसमें पानी की आपूर्ति बाधित है। ऐसे में छात्राओं को शौच के लिए दिन हो या रात बाहर ही जाना पड़ता है।

नहीं आए गर्म कपड़े

दिसंबर बीत गया है लेकिन कस्तूरबा विद्यालयों में अब तक गर्म कपड़े नहीं आए हैं। नियमों के मुताबिक छात्राओं को प्रतिवर्ष स्वेटर, मोजा, स्कार्फ  दिया जाता है।

बेडिंग का बजट 750 का, रजाई ही 1400 की 

एक वार्डेन ने नाम छापने की शर्त पर बताया, कुल बेडिंग के लिए प्रति छात्रा सरकार 750 रुपये देती है। ये पैसा तीन साल में एक बार दिया जाता है, जबकि पिछले वर्ष गांधी आश्रम से एक रजाई खरीदी थी उसकी ही कीमत 1400 रुपये थी। ऐसे में बाकी पैसे कहां से आएं।"

राजेन्द्र गोस्वामी/करन पाल सिंह

 

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