भाजपा रच रही माया को मजबूत करने का सियासी चक्रव्यूह
Rishi Mishra 27 Dec 2016 6:35 PM GMT

लखनऊ। बसपा के खातों की जांच और मायावती के भाई के अकाउंट में गड़बड़ के पीछे बड़ा सियासी चक्रव्यूह है। मायावती पर भाजपा के परदे के पीछे से हो रहे वार के जरिये चुनावी गुणाभाग किया जा रहा है। भाजपा मान रही है कि प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव दिन पर दिन समाजवादी पार्टी और उनके बीच केंद्रित होता जा रहा है, जिसमें बसपा कमजोर पड़ रही है। ऐसे में सपा से सीधी लड़ाई बीजेपी को भारी पड़ती दिख रही है। बसपा को मिलने वाले दलितों, पिछड़े वर्ग और मुसलमानों के वोट अगर शिफ्ट हुए तो उसका बड़ा हिस्सा सपा की ओर चला जाएगा। पांच फीसदी तक की ये शिफ्टिंग चुनावी गणित में भाजपा पर भारी पड़ सकती है। इसलिए बीजेपी मायावती को ईडी और पुराने मामलों में उलझा कर एक राजनैतिक मुद्दा देना चाहती है। जिससे मायावती खुद पर हुए अन्याय के तौर पर उसे चुनावी मैदान में ले जाएं और ये मुकाबला त्रिकोणीय हो सके। भाजपा को हमेशा फायदा तिकोने मुकाबले में ही मिलता रहा है। सीधे मुकाबले में वह अधिकांश बार हारी है।
तब-तब भाजपा को हुआ नुकसान
मायावती की मंगलवार को हुई प्रेस वार्ता के बाद केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी मीडिया के सामने इस मुद्दे पर आये। आमतौर से माया के आरोपों का जवाब केंद्र की जगह प्रदेश भाजपा से ही आता रहा है। बीजेपी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि दरअसल भाजपा खुद इस मुद्दे को उछालना चाहती है। असल में बसपा का वोट जब-जब सपा की ओर से शिफ्ट हुआ, भाजपा भारी नुकसान में रही। मिसाल के तौर पर जब 90 के दशक के मध्य में सपा और बसपा गठबंधन हुआ था, तब राम लहर के बावजूद सपा और बसपा गठबंधन की सरकार आसानी से बन गई थी। इसी तरह से 2014 के लोकसभा चुनाव में जबरदस्त कामयाबी हासिल करने के बाद जब उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुए थे, तब बसपा ने लड़ने से इन्कार कर दिया था। तब उनमें से नौ सीटों पर सपा को जीत हासिल हुई थी। जबकि ये सारी सीटें पूर्व में भाजपा की थीं। भाजपा के विधायकों ने एमपी का चुनाव लड़ा था, वे जीते थे, तभी सीटें खाली हुई थीं। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा अपनी पूरी ताकत से चुनाव लड़ी थीं। भाजपा को जबरदस्त फायदा हुआ था। बीजेपी गठबंधन ने 80 में से 73 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसी गुणा भाग को देखते हुए भाजपा चाहती है कि यूपी में त्रिकोणीय संघर्ष हो।
मायावती लगातार तीसरे नंबर की ओर
कुछ शुरुआती ओपिनियन पोल को छोड़ दें तो नोटबंदी से पहले सारे ओपिनियन पोल ने भाजपा को आगामी चुनाव में सबसे बड़े दल के तौर पर आंका। लड़ाई सपा से बताई, जबकि तीसरे नंबर पर मायावती की बसपा बताई गई। इसके बाद में स्वामी प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक, आरके चौधरी जैसे बड़े नेताओं के छोड़ने के बाद भी माया की ताकत कुछ कम हुई है। इसलिए बीजेपी अब माया को एक सियासी मुद्दा देकर मजबूत बनाने की जुगत में लग गई है। यह बात दीगर है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि नोटबंदी के बाद मायावती के अनर्गल बयानबाजी का सच उजागर हो रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी परेशानी का असली कारण वोटों के व्यापार से एकत्रित कालाधन है।
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