सपा में बर्खास्त विधान परिषद सदस्यों की भी होगी वापसी

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सपा में बर्खास्त विधान परिषद सदस्यों की भी होगी वापसीउत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव।

विद्या शंकर राय

लखनऊ, 17 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) के कद्दावर नेता रामगोपाल यादव की वापसी से सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को तगड़ा झटका लगा है। शिवपाल ने जिस रामगोपाल यादव पर कई गंभीर आरोप लगाकर पार्टी से बाहर कराने में कामयाबी हासिल की थी, वह अब नेताजी (मुलायम) के आशीर्वाद से सपा में वापसी करने में सफल हो गए।

शिवपाल को एक झटका और लगने वाला है, क्योंकि नेताजी जल्द ही सभी बर्खास्त विधान परिषद सदस्यों व युवा नेताओं की वापसी की घोषणा भी कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश में सपा से जुड़े एक विधान परिषद सदस्य ने आईएएनएस से विशेष बातचीत में यह जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि जिन विधान परिषद सदस्यों पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर पार्टी से छह साल के लिए बाहर किया गया है, उनकी जल्द ही वापसी होगी।

उन्होंने कहा, "नेताजी को इस बात का अहसास हो चुका है कि पिछले दिनों सपा के भीतर जो कुछ भी चला उससे पार्टी की काफी फजीहत हुई है और आम लोगों के बीच काफी खराब संदेश गया है। इससे चुनाव की तैयारियां भी प्रभावित हो रही हैं।"

शिवपाल के दौरे के समय अखिलेश के करीबी एमएलसी सुनील सिंह यादव 'साजन' भी दिखाई दिए थे। संभावना है कि इन युवा नेताओं की जल्द पार्टी में वापसी होगी।

सपा के एमएलसी ने बताया कि एमएलसी सुनील साजन, एमएलसी आनंद भदौरिया, यूथ ब्रिगेड के अध्यक्ष मोहम्मद एबाद, समाजवादी युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष ब्रजेश यादव, एमएलसी संजय लाठर और यूथ ब्रिगेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौरव दुबे की वापसी जल्द हो सकती है।

इसके अलावा रामगोपाल यादव के भतीजे अरविंद प्रताप यादव की भी जल्द सपा में वापसी हो सकती है।

समाजवादी पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, रामगोपाल को पार्टी में वापस लिये जाने के बाद अखिलेश यादव खेमा एक बार फिर मजबूती से उभरकर सामने आया है। शिवपाल पार्टी और सरकार के भीतर कमजोर साबित हुए हैं। उन्होंने रामगोपाल पर गंभीर आरोप लगाकर उन्हें बाहर करवाया था। अब रामगोपाल तो पार्टी के भीतर आ गए, लेकिन शिवपाल अभी भी मंत्रिमंडल से बाहर ही हैं।

सूत्रों ने बताया कि मुलायम ने भले ही सार्वजनिक मंचों पर हमेशा शिवपाल की तारीफ की है और संगठन में उनके योगदान का जिक्र बार-बार किया है। लेकिन नेताजी के इस फैसले के बाद शिवपाल संगठन में भी कमजोर साबित हुए हैं।

सूत्र यह भी बताते हैं कि यदि संगठन के भीतर शिवपाल की पकड़ ढीली हुई तो उनके चक्कर में अखिलेश का विरोध करने वाले उनके दर्जन भर समर्थक विधायक भाजपा का दामन थाम सकते हैं, जिससे पार्टी को चुनाव से पहले बड़ा खामियाजा उठाना पड़ सकता है।

    

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