11 लाख आबादी मगर सियासत में मौन आदिवासी

Ashwani NigamAshwani Nigam   6 Feb 2017 7:00 PM GMT

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11 लाख आबादी मगर सियासत में मौन आदिवासीपारंपरिक वेशभूषा में आदिवासी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के विधानसभा का प्रचार जोरों पर हैं। चुनाव जीतने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों की तरफ ताबड़तोड़ रैलियों और जनसभाएं हो रही हैं। जनता का दिल जीतने के लिए बड़े-बड़े वादे किए जा रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के 14 जिलों में निवास करने वाले आदिवासियों को लेकर कोई बात नहीं हो रही है। इस बारे में सोनभद्र जिले के गुलालझरिया गांव के निवासी मानजीत गोंड का कहना है '' नेताओं की नजर में हम बड़े वोटबैंक नहीं है इसलिए हमारी बात कोई नहीं करता है। '' यह हाल तब है जब प्रदेश में पहली बार दो विधानसभा सीटें दुद्धी और ओबरा को आदिवासियों के लिए आरक्षित किया गया है। साथ ही कई सीटों पर आदिवासी वोट बड़ी संख्या में हैं। लेकिन फिर भी आदिवासी किसी भी पार्टी के एजेंडे में नहीं हैं। साल 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 11 लाख, 34 हजार, 273 आदिवासी रहते हैं। जिसमें भोतिया, बुक्सा, जन्नसारी, राजी, थारू, गोंड, धुरिया, नायक, ओझा, पाथरी,राज गोंड, खरवार, खैरवार, सहारिया, परहइया, बैगा, पंखा, अगारिया, पतारी,चेरो, भुइया और भुइन्या जैसे आदिवासी निवास करते हैं। सोनभद्र, मिर्जापुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़,जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी और ललितपुर ऐसे जिले हैं जहां पर आदिवासी रहते हैं। इसके अलावा नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र लखीमपुर-खीरी, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर और महराजगंज जिले में थारू जनजाति के लोग भी रहते हैं।

प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले सोनभद्र के आदिवासी नेता और जिला पंचायत सदस्य '' बघाणु हृदय नरायन गोंड ने बताया '' साग और महुआ फल खाकर बहुत आदिवासी जीवन जी रहे हैं। हमारे पास वोट भी है लेकिन एकुजटता की कमी वजह से हमारे समाज के लोग चुनाव में अपनी ताकत नहीं दिखा पाते। ऐसे में राजनीतिक पार्टियों हमारे मुद्दों पर ध्यान नहीं देती हैं। '' उन्होंने कहा कि पिछली विधानसभा में एक भी आदिवासी विधायक नहीं चुना गया था। इस बार दो विधानसभा सीटें हमारे समाज के लिए आरक्षित हैं इसलिए उम्मीद है कि इन सीटों से चुनाव जीतकर विधायक बनकर आदिवासी नेता आदिवासियों का विकास करेंगे। दुद्धी ब्लाक के आदिवासी जगनारायण सिंह गोंड ने कहा '' उत्तर प्रदेश में आदिवासियों कोई पूछता ही नहीं है। जबकि हमारी जनसंख्या के बराबर ही दूसरी जातियों की राजनीति में बड़ी भूमिका है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में दुद्धी विधानसभा पिछले कई दशक से आदिवासियों के लिए सुरक्षित थी। लेकिन इस सीट से चुने जाने वाले विधायक को भी महत्व नहीं दिया जाता था। पिछले विधानसभा चुनाव में यह सीट भी चली गई थी। जिसके बाद लंबी लड़ाई के बाद इस बार दो सीटें आदिवासियों को मिली हैं।


महराजगंज जिले के तराई क्षेत्र के नरकटहा के थारू आदिवासी रमेश थारू कहते हैं '' हमारे समाज में शिक्षा का अभाव है। अभ भी मजूदरी और जड़ी बूटियों को बेचकर हम लोग अपना जीवन यापन करते हैं। सरकार हमारे लिए क्या योजनाएं चला रही है उसकी हमे कोई जानकारी नहीं है। गांव के एक जगह हमारी बड़ी आबादी नहीं है। इधर उधर लोग बिखरे पड़ हैं इसलिए नेताओं के लिए हम बड़े वोटर नहीं है। ''


प्रदेश में आदिवासियों की स्थिति दयनीय

देश के बाकी राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश के आदिवासियों की स्थिति खराब है। नौकरियों में भी आदिवासियों की संख्या बहुत कम है। आदिवासियों के लिए काम करने वाले सोनभद्र के आदिवासी कार्यकर्ता जगनारायण सिंह गोंड कहना '' आदिवासियों को भरपूर भोजन तक नसीब नहीं हो रहा है। बच्चें स्कूलों से दूर हैं। हमारे लिए योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही चल रही है। '' प्रदेश सरकार ने समय-समय पर आदिवासियों के लिए योजनाओं की शुरूआत की लेकिन कोई भी योजना परवान नहीं चढ़ी।

 

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