किसानों के फिर साथी बनेंगे 'हीरा-मोती', खेती में बढ़ा चलन, चित्रकूट के पशु बाजार में हर सप्ताह बिकते हैं चार हजार बैल

भारतीय कृषि एक बदलाव के दौर से गुजर रही है। कृषि में बढ़ती लागत के कारण लोग फिर से जानवरों से कृषि कार्य करने लगे हैं। कृषि कार्य में फिर से पशुओं के प्रयोग होने से बुंदेलखंड के किसानों की सबसे बड़ी अन्ना समस्या काफी हद तक कम होती नजर आ रही है

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   23 Dec 2019 5:51 AM GMT

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कर्वी(चित्रकूट)। भारतीय कृषि एक बदलाव के दौर से गुजर रही है। कृषि में बढ़ती लागत के कारण लोग फिर से जानवरों से कृषि कार्य करने लगे हैं। कृषि कार्य में फिर से पशुओं के प्रयोग होने से बुंदेलखंड के किसानों की सबसे बड़ी अन्ना समस्या काफी हद तक कम होती नजर आ रही है। कर्वी में प्रत्येक गुरुवार लगने वाले पशु मेले में करीब चार हजार बछड़ों की खरीद फरोख्त होती है, जहां बुंदेलखंड समेत मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसान बैल खरीदने आते हैं।

बैल का भारत की कृषि और पशुपालन से चोली दामन का साथ था। लेकिन आधुनिकता के दौर में लोग हल-बैल की जगह ट्रैक्टर से जुताई करने लगे। धीरे-धीरे खेत और बैलों का रिश्ता खत्म होने लगा। गाँवों में पहले खेती में बैलों का उपयोग बहुतायत में होता था। किसानों के दरवाजों पर एक से बढ़कर एक बैलों की जोड़ियां बंधी होती थीं। जब गाँव का कोई व्यक्ति नए बैलों की जोड़ी लाता था, तो उन बैलों को देखने के लिए गाँव वालों का तातां लग जाता था, लेकिन अब गाँवों में बैलों का उपयोग बहुत कम हो गया है। लेकिन एक बार फिर बैलों के दिन बहुर रहे हैं। लोग कृषि कार्यों में बैलों का खूब प्रयोग करने लगे हैं।

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महोबा के कबरई निवासी पुत्तू लाल (75वर्ष) बातते हैं, " हमारे समय में बैल से ही खेतों की जुताई होती थी। बैलों के प्रति विशेष लगाव होता था। मेलों और बाजार में लोग बैलगाड़ी से जाते थे। गाय की पूजा की जाती थी। लेकिन जबसे ट्रैक्टर आया तबसे लोग बछड़ों से जुताई बंद कर दिए। धीरे-धीरे बछड़ों की उपयोगिता कम होती गई। लोग जानवरों को छुटटा छोड़ने लगे। आज पूरा बुंदेलखंड पानी की समस्या के साथ-साथ अन्ना जानवरों की समस्या से जूझ रहा है। मेरा मानना है अगर यहां से अन्ना प्रथा को दूर करना है तो लोगों को फिर से बछ़ड़ों और बैलों का प्रयोग करना होगा।"

क्या है अन्ना प्रथा

चित्रकूट के रहने वाले हरिकेष सिंह (81वर्ष) पुराने दिन को याद करते हुए बताते हैं, " बुंदेलखंड में यह प्रथा थी की जब चैत्र मास में फसल कट जाती थी तो लोग अपने जानवरों को खेतों में खुला छोड़ देते थे। इसके पीछे किसानों की मान्यता थी कि जानवरों से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। खेत में इन जानवरों का गोमूत्र और गोबर खाद का काम करता था।

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धीरे-धीरे किसान ट्रैक्टर से खेतों की जुताई करने लगे। किसनों ने गोवंश से दूरी बना ली। जिसका नतीजा यह हुआ कि दूध देने वाले जानवरों के अलावा सभी को खुले मे छोड़ दिया। अब यही जानवर किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गए हैं। आज समूचा बुंदेलखंड अन्ना जानवरों की समस्या से जूझ रहा है। लाखों की संख्या में आवारा जानवर किसानों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। "

कर्वी स्टेशन के पास स्थित पशु बाजार में प्रत्येक गुरुवार को पशुओं की मंडी लगती है। यहां पर करीब चार हजार बछड़े और बैल बिकने आते हैं। इस बाजार की खासियत है कि यहां पर सिर्फ बछड़े और बैलों की खरीद फरोख्त होती है। यहां पर महोबा, हमीरपुर, बांदा और चित्रकूट से किसान अपने पशुओं के बेचने आते हैं। वहीं यूपी के बुंदेलखंड के कई जिलों समेत मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से किसान पशुओं को खरीदने आते हैं।



बाजार के मालिक राकेश जैन ने बताया, " यह बाजार करीब सौ साल पुरानी है। पहले गाय से ज्यादा बैलों की महत्ता होती थी। खेती के साथ-साथ माल ‍ढुलाई के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता था। हमारे बुंदेलखंड में ज्यादातर कृषि कार्य बैलों से ही किए जाते थे। इस बाजार में कई जिलों के किसान अपने जानवर बेचने आते हैं। इस बाजार की बजह से बुंदेलखंड की अन्ना समस्या काफी हद तक कम हो रही है। लोग अब जानवरों को खेत में छोड़ने की जगह बेचने आते हैं और जिन्हें जरुरत होती है वे खरीद ले जाते हैं।"

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चित्रकूट के हनुआ निवासी पशुपालक कल्लू (40वर्ष) अपने चार बछड़ों के साथ पशु बाजार में आए थे। कल्लू ने बताया, " करीब पचास किलोमीटर दूर से अपने जानवरों को लेकर आया हूं। खुले में छोड़ने से अच्छा है कि इन जानवरों को बेच दिया जाए। एक तो हमें कुछ पैसे भी मिल जाएंगे और अन्ना जानवरों की संख्या भी नहीं बढ़ेगी। एक बछड़े का हम लोगों को पांच सौ से पंद्रह सौ रुपए मिल जाते हैं।"

छत्तीसगढ़ के बरछा से बछड़ा खरीदने आए किशोर (50वर्ष) ने बताया, " पिछले पांच साल से मैं इस बाजार में पशु खरीदने आ रहा हूं। मेरे पास एक एकड़ खेत है। खेत की जुताई और अन्य खर्चें बहुत हो गए थे। लागत निकालना भी मुश्किल हो गया था। फिर मैंने सोचा की क्यों न बैलों से खेतों की जुताई की जाए। मैं अब कृषि से संबंधित ज्यादातर काम पशुओं से ही करता हूं। अब मुझे काफी फायदा हो रहा है। मेरे गांव के कई लोग अपने बैलों और बछड़ों से खेतों की जुताई करते हैं।"

बैलों से खेत जुताई होती है सस्ती

करीब तीन दशक पूर्व तक किसानों के लिए बैलों और बछड़ों का बहुत महत्व था। उस दौरान खेतों की जुताई करने का किसानों के पास एक मात्र बैलों का सहारा होता था। गांवों में ज्यादातर किसान बैलों की एक जोड़ी अवश्य पालते थे। वक्त बदला और आधुनिक यंत्रों ने खेती करने का तरीका बदल दिया। खेतों की जुताई बैलों के बजाय ट्रैक्टरों से होने लगी।


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कृषि यंत्रों की भरमार से खेती का काम सुगम हो गया। इससे बैल किसानों और मजदूरों के लिए अनुपयोगी हो गए। बैलों का बाजार मूल्य तेजी के साथ गिरने लगा। लेकिन आधुनिक कृषि प्रणाली काफी महंगी होती गई। किसान की लागत ज्यादा और आदमनी कम होती गई। ट्रैक्टर से खेती की जुताई काफी महंगी हो गई है। वर्तमान समय में एक घंटे ट्रैक्टर से जुताई का खर्च करीब सात सौ रुपए आता है। वहीं अगर बैल से खेती की जुताई की जाए तो यह लागत बहुत काम आती है। इसलिए छोटे किसान कृषि कार्यों में पशुओं का प्रयोग करने लगे हैं।

कृषि कार्य में बैल के फायदे

अन्य पशुओं की तुलना में बछड़े और बैल काफी सस्ते मिल जाते हैं। कर्वी पशु मेले में तीन सौ रुपए में भी बछड़ें मिल जाते हैं, जबकि भैंसा या अन्य जानवर इतने कम दाम में नहीं मिल सकते हैं। इसके साथ-साथ गोवंश का रख-रखाव काफी सस्ता होता है। बैल और बछड़े कृषि कार्य में प्रयोग होने वाले अन्य जानवरों की अपेक्षा कम भोजन करते हैं। इसलिए भी किसान इन्हें रखना पसंद करता है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पहाड़ी क्षेत्रों में किसानों की जोता काफी छोटी होती है। वहां पर ट्रैक्टर से खेतों की जुताई बहुत मुश्किल होती है। ऐसे में यहां के किसान बैलों का प्रयोग करते हैं। खेतों से खरपतवार हटाने के लिए बैलों से जुताई एक अच्छा तरीका माना जाता है।

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कृषि मंत्रालय द्वारा जारी 19वीं पशुगणना के अनुसार, पूरे बुंदेलखंड में 23 लाख 50 हजार गोवंश हैं। जिनमें से अधिकांश छुट्टा हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में अन्ना कहा जाता है। इन्हीं पशुओं की बदौलत बुंदेलखंड दुनिया में सबसे कम उत्पादकता वाले क्षेत्र में शामिल है। हमीरपुर जिले के मुख्य पशुचिकित्साधिकारी डॉ. विजय सिंह ने बताया, "जिले में 50 हज़ार से भी ज्यादा जानवर छुट्टा घूम रहे हैं। इससे किसानों की 70 फीसदी फसल नष्ट हो रही है। गोकुल ग्राम से किसानों को काफी राहत मिलेगी।

इस कार्यक्रम से बुन्देलखंड के सात जिलों में गोकुल ग्राम को पीपीपी (प्राइवेट पब्लिक पार्टनर्स) के तहत तैयार किया जाएगा। इस कार्यक्रम में कोई भूमि देना चाहे या कोई अन्य सहयोग करना चाहता है। तो वो अपने जिले के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी से संपर्क कर सकता है।" डॉ. सिंह ने आगे बताया, "इस पशुबाड़े को वैज्ञानिक ढंग से विकसित किया जाएगा। पशु के गोबर, गोमूत्र सभी को उपयोग में लाया जाएगा इस पशुबाड़े में जो भी पशु दुधारू होंगे। उनका दूध निकालकर उससे होने वाली आय को ईएसआई गोकुल ग्राम के काम में लगाया जाएगा।"

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