यूपी विधानसभा चुनाव: 24 साल से बंद पड़ी एक चीनी मिल जिसके चालू कराने के वादे हर चुनाव में होते हैं

सीतापुर जिले के महोली चीनी मिल पर 1998 में ताला पड़ गया था। 1932 में बनी इस मिल में करीब 700 गांवों का गन्ना आता था। इन 24 वर्षों में जब भी चुनाव आए राजनीतिक पार्टियों ने इस मिल को दोबारा चालू कराने के वादे किए, लेकिन चुनाव के बाद बात ठंडे बस्ते में चली गई। गांव कनेक्शन की सीरीज क्या कहता है गांव में कहानी महोली मिल की।

Arvind ShuklaArvind Shukla   14 Feb 2022 4:55 AM GMT

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महोली (सीतापुर, यूपी)। सीतापुर जिले की महोली चीनी मिल को बंद हुए इस फरवरी को 24 साल हो गए। कभी इस मिल में 700 गांवों के हजारों किसानों का गन्ना आता था। इसी मिल के सहारे महोली कस्बा बढ़कर तहसील बना। लेकिन मिल अब वीरान पड़ी है। विधानसभा चुनाव के दौरान जब बड़े-बड़े वादे रहे हैं लोगों को फिर थोड़ी उम्मीद बंधी है कि शायद ये मिल दोबारा चालू हो जाए।

लखनऊ-दिल्ली हाई-वे से मुश्किल से 100 मीटर की दूरी पर महोली चीनी मिल का गेट है। जहां फरवरी 1998 से ताला जड़ा हुआ है। इसी गेट पर कभी गार्ड रहे बिहार के जगदीश प्रसाद (65 साल) अब हाई-वे पर पान बेचने को मजबूर हैं।

"मैं यहां सुरक्षा विभाग में था, 25 साल नौकरी की, लेकिन नियमित नहीं था, तो मिल बंद हुई तो कुछ नहीं मिला। अब पान बेच रहे हैं। मिल बंद हुई तो सब बंद हो गया। विकास बंद हो गया। पैसा आना बंद हो गया।" वो कहते हैं।

जगदीश प्रसाद बिहार में वैशाली जिले के मूल निवासी हैं। भूमिहीन हैं तो नौकरी जाने के बाद भी वापस जाने का कोई मतलब नहीं था। आने-जाने वाले लोग अक्सर उनसे मिल के बारे में बाते करते हैं।

जगदीश आगे कहते हैं, "जब चुनाव आता है कहा जाता है मिल चलेगा, चुनाव के बाद मिल बंद (बातें) बंद हो जाता है। अखिलेश जी (अखिलेश यादव) बोले थे चलाएंगे लेकिन नहीं चला। बीजेपी की सरकार बनी तो बोले चलाएंगे, नहीं चली, अब फिर चुनाव है।"

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खँडहर बनती जा रही है महोली चीनी मिल की इमारत। फोटो- मो. आरिफ

1932 में हुई थी चीनी मिल की स्थापना

महोली चीनी मिल (दि लक्ष्मी जी सुगर इंडस्ट्रीज) की स्थापना साल 1932 में सेठ किशोरी लाल ने की थी। स्थानीय लोग बताते हैं, इस चीनी मिल का दाना इतना बड़ा और सफेद था यहां की चीनी आर्मी को सप्लाई की जाती थी। लेकिन चीनी मिल की बिगड़ती आर्थिक स्थितियों के पहले कांग्रेस सरकार में इसका अधिग्रहण कर यूपी चीनी निगम को सौंपा गया। लेकिन घाटे और बढ़ते कर्ज़ के चलते 1998 में तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने मिल को बंद करने का फैसला किया। उस वक्त मिल पर करीब 7000 का बकाया था। मिल बंद होने से करीब 250 नियमित और 700 से ज्यादा सीजनल कर्मचारी बेरोजगार हो गए। मिल के आसपास काम धंधा कर आजीविका चलाने वाले हजारों लोगों की रोटी-रोटी छिन गई। सैकड़ों किसानों के साथ मिल कई कर्मचारियों का भी पैसा फंस गया। कई कर्मचारियों के मुताबिक जब मिल बंद हुई, जिन कर्मियों ने रिटायरमेंट लिया सबका भुतगान किया, जो लोग कोर्ट गए उनका ही पैसा रुका है।

कैमरा देखकर मिल के गेट पर पहुंचे पंकज पाडे (40वर्ष) के मुताबिक उनके पिता यहां नियमित कर्मचारी थे, जिनके लाखों रुपए बाकी हैं। वो खुद सीजनल (मिल चालू रहने पर काम) कर्मी थे जिन्हें मिल बंद होने पर खाली हाथ निकाल दिया गया।

पंकज पांडे कहते हैं, "मैं यहां टोकन बाबू था, मेरे पिता जी का 5-6 लाख रुपया आजतक नहीं मिला, जबकि वो लेबर कोर्ट से मुकदमा जीत गए थे, हमारे पिता की तरह बहुत सारे लोग हैं, जिनका पैसा नहीं मिला।"

वो हाथ जोड़कर कहते हैं, "मेरे मरे हुए पिता का इस मृत मिल से पैसा दिलाने का कृपा करें।"


स्थानीय लोगों के मुताबिक कभी इस मिल में सीतापुर जिले के सैकड़ों गांवों के अलावा लखीमपुर खीरी जिले के भी 100 से ज्यादा गांवों का गन्ना आता था।

महोली गन्ना विकास समिति के सीनियर गन्ना विकास अधिकारी श्रीनारायण मिश्र गांव कनेक्शन को बताते हैं, "ये मिल फरवरी 1998 में जब बंद हुई उस वक्त यहां महोली जोन (गन्ना विकास समिति) के 536 गांवों और मैगलगंज (लखीमपुर खीरी जिला) गन्ना विकास समिति के 110 गांवों का गन्ना आता था। महोली जोन के किसानों का गन्ना अब जवाहरपुर चीनी मिल और हरदोई कि दो मिलों हरिगांवा और अजवापुर में जाता है।" गन्ना विभाग के मुताबिक जोन में करीब 70 हजार गन्ना किसान हैं, जिनमें से 66 हजार गन्ने की आपूर्ति भी करते हैं।

मिश्र आगे बताते हैं, "ये पुराने जमाने की मिल थी, जिसकी रोजाना पेराई क्षमता 25 हजार कुंटल थी, अब तो लाखों कुंटल गन्ना रोज पेरा जाता है। गन्ना मिल बंद होने से किसानों पर वैसा कोई असर नहीं पड़ा। क्योंकि गन्ने की आपूर्ति लगातार जारी है। पहले से रकबा बढ़ा है। किसानों को ज्यादा पैसे मिल रहे हैं लेकिन अगर मिल चालू हो जाए तो इलाका विकास जरुर हो जाएगा।" वो ये भी कहते हैं कि सीतापुर में एक चीनी मिल को छोड़कर मौजूदा समय में किसानों को 14 दिन में भुगतान भी हो रहा है।

क्या कानूनी दांव पेच भी हैं मिल में बाधा?

महोली के सीनियर गन्ना विकास अधिकारी के मुताबिक इस मिल को चलाने की बातें समय-समय पर हुई हैं वो बताते हैं, "24 अक्टूबर 2017 को यूपी राज्य चीनी निगम के महोली चीनी मिल और मथुरा की एक चीनी मिल को शुरु करने के संबंध में पत्राचार किया था। कई अधिकारियों ने निरीक्षण भी किया था। लेकिन मामला न्याययिक प्रक्रिया के चलते अटक गया।"

पूर्व कर्मचारियों और स्थानीय लोगों के मुताबिक चीनी मिल से जुड़े कई मामले हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में लंबित हैं। कर्मचारियों के बकाए के अलावा मिल के मालिकों ने भी एक मुकदमा किया है, जिसमें उन्होंने मिल के अधिग्रहण के दौरान कम कीमत लगाए जाने का आरोप लगाया है। इसके अलावा कर्ज़ के बकाए का भी केस विचाराधीन है।

चीनी मिल में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और मनोज मिश्रा के मुताबिक ये मिल राजनीतिक शिकार हुई है। उनकी पत्नी और ससुर मिल में कर्मचारी थे।

स्थानीय लोगों के मुताबिक मिल की मशीनों में कबाड़ बन चुकी हैं तो बहुत सारा लोहा चोरी-छिपे बेचा भी जा चुका है। फोटो- मो. आरिफ

"राजनीति का शिकार हुई चीनी मिल, रुक गया क्षेत्र का विकास"

गांव कनेक्शऩ से बातचीत में वो कहते हैं, "ये एशिया की जानी मानी मिल थी जो राजनीतिक शिकार हो गई। मिल बंद होने के लिए कांग्रेसी सरकार और उसके नेता जिम्मेदार हैं। बीजेपी सरकार जब ये मिल बंद हुई इस पर 7000 करोड़ का खर्च हो गया था। लेकिन कांग्रेस सरकार में जब इसका अधिग्रहण किया गया था जो मिल पर जितना बकाया था, उतनी चीनी भरी थी। चुनाव में राजनैतिक दलों के लोग आते हैं कहते हैं हम चलवा देते हैं लेकिन किसी ने सुध नहीं ली।"

मनोज मिश्रा आगे कहते हैं, "मिल में सब मिलाकर 1400 कर्मचारी जरुर रहें होंगे। सबका नुकसान हुआ। मैं तो उस वक्त नहीं था लेकिन लोग बताते हैं कि महोली का विकास इसी मिल के सहारे हुआ। मैं सभी राजनीतिक दलों से निवेदन करूंगा कि सभी मिलकर मिल को चालू करवाएं ताकि इलाके गन्ना किसानों की भलाई हो, युवाओं को रोजगार मिले।" मिश्रा के मुताबिक जिन 6 कर्मचारियों ने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेने इनकार कर दिया था उनके मामले कोर्ट में हैं, चीनी मिल निगम ने उन्हें जबरन रिटायर किया है, उनका पैसा भी बाकी है।

मिल चालू थी तो बहार थी, तरक्की थी

मिल के पूर्व कर्मचारी और आसपास के लोगों के मुताबिक जब मिल चालू थी, पूरे इलाके में रौशन थी। मिल के अंदर स्कूल और अस्पताल चलता था। मिल के प्राइमरी स्कूल की आखिरी प्रिसिंपल मंजू मिश्रा (55वर्ष) स्कूल के गेट से कुछ दूरी पर रहती हैं। वो 10 साल तक तैनात रहीं। इससे पहले इसी पद पर उनके पिता थे।

मंजू मिश्रा गांव कनेक्शन को बताती हैं, "बहुत रौनक रहती थी, पूरे इलाके में कोई स्कूल नहीं था तो बच्चे यहीं आते थे। हम लोग भी यहीं के पले-पढ़े हैं। पूरे इलाके में चहल-पहल थी इससे लेकिन इसके बंद होने से लगता है सब ठहर सा गया है। महोली का विकास रुक गया है। सिर्फ आसपास के गांवों के लिए दूसरे प्रदेशों के लोग भी कमाने आते थे। हम तो चाहते हैं बस ये फैक्ट्री चल जाए, इलाके का विकास हो।" मंजू मिश्रा की ग्रेजुएटी के करीब 6 लाख रुपए बाकी हैं। मामला कोर्ट में है। मिल परिसर में लड़कियों के लिए एक सरकारी कॉलेज भी था जो बंद हो गया।

मिल चुनावी मुद्दा, लेकिन किसकी सरकार पहल करेगी?

चीनी मिल की कॉलोनी में रहने वाले संतोष मिश्रा नगर पंचायत में बीजेपी सभाषद हैं। संतोष के मुताबिक उनके बाबा, पिता और भाई मिलाकर तीन पीढ़ियां मिल में कर्मचारी रह चुकी हैं। वो मिल बंद और के लिए राजनीति और यूनियन बाजी को जिम्मेदार बताते हैं।

"कुछ नेतागीरी और यूनियन बाजी के चलते में मिल बंद हुई। हमारे विधायक शशांक त्रिवेदी ने मिल चलाने के पूरी कोशिश की। कागजी कार्रवाई पूरी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सेठ किशोरी लाल की फैमिली और सरकार के बीच सहमति न बन चलने चलते हैं अंड़गा लगा। पैसा तो मेरे भाई का भी बाकी है लेकिन उन्होंने वीआरएस नहीं लिया था क्योंकि उन्हें मिल चालू होने का उम्मीद थी, बंद होने के दौरान रियारमेंट ले रहे सबको मिल पैसा देनो के तैयार थी। बीजेपी सरकार दोबारा बनेगी फिर कोशिश करेंगे।"

बीजेपी के जिलाध्यक्ष अंचिन मेहरोत्रा ने गांव कनेक्शन से फोन पर कहते हैं, "मिल चालू कराने के लिए हमारे प्रयास जारी हैं। ये बड़ा काम है। हम लोगों ने महोली के साथ कमलापुर मिल (प्राइवेट लिमिटेड) मिल को भी चालू करान के लिए प्रयास किए। मुंबई से एक कंपनी आई लेकिन बजट ज्यादा होने के चलते बात नहीं बनी। आगे भी प्रयास करेंगे। प्रयास से ही सफलता मिलती है।"

वहीं समाजवादी पार्टी के लिए भी मिल मुद्दा है। सपा के जिलाध्याक्ष छत्रपाल बाबू ने गांव कनेक्शऩ से कहा, "मिल चालू होने चाहिए। सरकार बनेगी तो हम प्रयास करेंगे कि मिल चालू हो। सपा ने कितना काम किया है। कई पुल बनवाए, इंटर कॉलेज बनवाए। फैक्ट्री जहां है वो कस्बा है, जगह की कमी थी। इस बार सरकार बनी तो पूरा प्रयास करेंगे।"

चीनी मिल की पुरानी बिल्डिंग में तो जगह कम है लेकिन मिल के पीछे रेलवे लाइन है, जिसके पास कुछ साल पहले सरकार अधिग्रहित की थी, जो खाली पड़ी है।

सीनियर गन्ना अधिकारी श्रीनारायण मिश्र कहते हैं, "चीनी मिल का नया प्लांट लगाने के लिए 60 एकड़ जमीन रेलवे लाइन के उस पार है लेकिन सीधे रास्ते की दिक्कत है। गन्ने रेलवे लाइन के पास कैसे जाएगा?" गन्ने की भरी ट्राली और ट्रक रेलवे अंडर पास निकलना मुश्किल है इतनी जगह में ओवरब्रिज की भी दिक्कत हो सकती है।

चीनी उत्पादन में पहले पायदान पर है उत्तर प्रदेश।

यूपी में चीनी मिलों की स्थिति

चीनी उत्पादन में यूपी पहले पायदान पर है। पूरे देश में 5 करोड़ किसान हैं, जिनमें से 45 लाख से ज्यादा किसान अकेले यूपी में हैं। पूरे देश में 765 चीनी मिलें हैं, जिनमे से 250 बंद पड़ी हैं। बंद पड़ी मिलों में से 38 चीनी मिलें अकेले यूपी की हैं। साल 2020-21 में प्रदेश में 27.54 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती हुई थी। इस साल उत्तर प्रदेश में 119 चीनी मिलें चालू हैं। जिनमें से 24 चीनी मिलें सरकारी क्षेत्र की हैं। 15 दिसंबर 2021 लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि साल 2020-21 में 24 चीनी मिलों ने 66625 लाख टन गन्ने की पेराई की।

गन्ना मिलों की स्थिति और चीनी उत्पादन

पूरे देश में गन्ना किसानों के बकाए और कम रेट का मुद्दा छाया रहता है। जिसके लिए तर्क दिया जाता है कि देश में चीनी का उत्पादन जरुरत से ज्यादा है और निर्यात इसलिए नहीं हो सकता है क्योंकि कई देशों में भारत से कम लागत में चीनी तैयार होती है।

2 फरवरी 2021 को चीनी मिलों की बदहाली को लेकर एक सवाल के जवाब में सरकार ने लोकसभा में बताया कि सामान्य चीनी मौसम में देश में चीनी का उत्पादन 320 से 330 लाख टन है, जबकि हमारी घरेलू खपत 260 लाख टन है। 60 लाख टन के इस अधिशेष स्टॉक के चलते चीनी मिलों में नदगी की दिक्कत रहती है, किसानों को भुगतान में देरी होती है। इसलिए सरकार गन्ने और ओवर स्टॉक से एथेनॉल बनाने के लिए मिलों को प्रेरित कर रही है। साल 2021-22 में पेट्रोल में एथेनॉल की ब्लैंडिग 10 फीसदी जबकि 2025 तक 20 फीसदी ब्लैंडिंग लक्ष्य रखा गया है।

सहयोग- मोहित शुक्ला, सीतापुर

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