सुंदरबन में चक्रवातों से भी बचाता है आदिवासी समुदाय का ये ख़ास शेल्टर

सुंदरबन में आए दिन चक्रवातों का सामना करने वाले आदिवासी समुदाय के लिए ऐसे शेल्टर बनाए जा रहे हैं, जो उन्हें इन तूफानों की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाते हैं। इन आश्रयों को बनाने के लिए बाँस और मिट्टी जैसी स्थानीय सामग्रियों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

Laraib Fatima WarsiLaraib Fatima Warsi   8 Jan 2024 12:46 PM GMT

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सुंदरबन में चक्रवातों से भी बचाता है आदिवासी समुदाय का ये ख़ास शेल्टर

सुंदरबन, भारत (पश्चिम बँगाल) और बाँग्लादेश के बीच साझा किया जाने वाला दुनिया का सबसे बड़ा सक्रिय डेल्टा चक्रवातों के लिए जाना जाता है। समय-समय पर आने वाले ये चक्रवात निचले द्वीपों के निवासियों के लिए मुश्किलें खड़ीं करते रहे हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का स्तर बढ़ता है, तो उष्णकटिबंधीय चक्रवात भी उग्र रूप धारण कर लेते हैं। बड़े मैंग्रोव वनों से ढके इस डेल्टा पर देश का एक सबसे गरीब समुदाय बसेरा करता है और इन चक्रवातों का सबसे ज़्यादा असर इसी समुदाय पर पड़ता है। तूफान के कारण ग्रामीण न सिर्फ अपनी फसलें और घर को खो देते हैं, बल्कि उनके बीच विस्थापन और पलायन भी बढ़ रहा है।

इस साल की शुरुआत से एक पहल चलाई जा रही है, जिसके जरिए लगातार और असामयिक चक्रवाती तूफानों के प्रभाव को कम करने पर काम किया जा रहा है। दरअसल यहाँ स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर जलवायु अनुकूल शेल्टर तैयार किए जा रहे हैं। आपदा के समय चक्रवाती तूफान से बचाने वाले ‘हेल्थ कम स्टोर्म शेल्टर’ ग्रामीणों को न सिर्फ सुरक्षित रखते हैं; बल्कि उन्हें वहाँ बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ भी दी जाती हैं। यह पहल चक्रवाती तूफानों से पैदा होने वाली चुनौतियों का जवाब देने की एक कोशिश है।

इन शेल्टर को बाँस और मिट्टी जैसी स्थानीय सामग्रियों से बनाया जा रहा है। ये स्थानीय ग्रामीणों को तूफान में सुरक्षित रखने के लिए हैं, लेकिन इससे ग्रामीणों की आय भी बढ़ रही है। इन शेल्टर्स को तैयार करने के लिए ‘दिघिर गाँगुली फाउंडेशन ट्रस्ट’ (डीजीएफटी) ने उन्हें बकायादा प्रशिक्षित किया है। फाउंडेशन पश्चिम बंगाल में नॉर्थ 24 परगना जिले के राजारहाट गोपालपुर में एक गैर-लाभकारी सँस्था है।


ऐसा ही एक शेल्टर इस साल फरवरी से जोगेशगंज गाँव में तैयार हो रहा है। अगले तीन महीनों में इसके पूरा हो जाने की संभावना है। गाँव में करीब 450 मुँडा परिवार रहते हैं और इस इलाके तक सिर्फ नाव से ही पहुँचा जा सकता है। लेकिन आपातकाल के दौरान इन समुदायों तक पहुँचना और भी मुश्किल हो जाता है।

24 परगना उत्तर के हिंगलगंज जिले में स्थित गाँव में बनने वाले शेल्टर से 46 वर्षीय विनोद कयाल काफी खुश हैं। वह पेशे से बढ़ई हैं और मुँडा आदिवासी समुदाय से आते हैं। कयाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इससे न सिर्फ मुझे काम मिला हैं, बल्कि अब मैं अपने गाँव में रहते हुए सुरक्षित महसूस कर रहा हूँ; यहाँ अक्सर चक्रवात आते रहते हैं और तूफान हमारे मिट्टी के घरों में तबाही ले आते हैं।”

कायल पहले एक छोटी सी वर्कशॉप में बढ़ई के रूप में काम करते थे। लेकिन इस साल जून से वह दिघिर गाँगुली फाउंडेशन ट्रस्ट में बतौर निर्माण श्रमिक जुड़ गए।

कयाल ने कहा, “जब से मैंने एनजीओ के साथ काम करना शुरू किया है, तब से मैं रोज़ाना 500 से 1,000 रुपये तक कमा लेता हूँ; लेकिन इससे पहले मैं एक दिन में मुश्किल से 500 रुपये ही कमा पाता था, इतनी कम रकम में गुज़ारा करना मुश्किल था।'' वह कहते हैं, "यहाँ हमें बाँस और कँक्रीट से इमारत बनाने की तकनीक सिखाई जाती है ताकि वे आपदा के समय हमारे लिए यह सुरक्षित साबित हो सके।"

कयाल बताते हैं, “इससे पहले मैं बाँस का फर्नीचर बनाता था; मुझे बाँस से चीजें बनाने आता है, लेकिन मैंने पहले कभी निर्माण मज़दूर के रूप में काम नहीं किया था, ट्रेनिंग के साथ अब मैं शेल्टर बनाने में परफेक्ट हो गया हूँ।”

जलवायु अनुकूल शेल्टर

सुंदरबन में चलाई जा रही सामुदायिक स्टॉर्म शेल्टर परियोजना न्यूयॉर्क स्थित आर्किटेक्चर अर्बनिज्म एंड रिसर्च (एयूआर), दिघिर गाँगुली फाउंडेशन ट्रस्ट और शेल्टर प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के आर्किटेक्ट्स के बीच एक सहयोग है।

दिघिर गाँगुली फाउंडेशन ट्रस्ट स्थानीय मुंडा समुदाय के निर्माण श्रमिकों की मदद से खासतौर पर डिजाइन किए गए घरों का निर्माण करवा रहा है।

इसके लिए ट्रस्ट ने मुंडा समुदाय के लिए वर्कशॉप आयोजित कीं और उन्हें शेल्टर निर्माण परियोजना में शामिल होने के लिए तैयार किया। दरअसल 2020 में चक्रवात अम्फान के कारण यह समुदाय सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ था; समुदाय के लोगों ने इसमें गहरी दिलचस्पी ली क्योंकि चक्रवात में उनकी सारी ज़मीन बर्बाद हो गई, जिस पर वे मछली पकड़ते थे और खेती करते थे।

हेल्थ कम स्टॉर्म शेल्टर जोगेशगंज गाँव में तैयार किए जा रहे हैं। सबसे पहले एक गहरी नींव खोदी जाती है और फिर उस पर कंक्रीट, सीमेंट और बाँस से बने कॉलम लगाए जाते हैं। दीवार पर लगे पैनल सभी मॉड्यूलर हैं और बाँस की संरचना पर बनाए गए हैं।


यह लगभग 2,400 वर्ग फुट (प्रत्येक 1,200 वर्ग फुट की दो मँजिल) में बने है जिसमें पाँच कमरे हैं - एक ऑपरेशन थिएटर है, दूसरा ओपीडी है और तीसरा वेटिंग एरिया है। दो स्टोरेज रूम के साथ छह बिस्तर भी हैं।

दिघिर गाँगुली फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष और सह-संस्थापक सॉमेन गांगुली ने कहा, “इस साल की शुरुआत में हमने स्थानीय मुँडा निवासियों के कार्यकर्ताओं की एक टीम बनाई और उन्हें ट्रेनिंग दी; चक्रवात अम्फान के दौरान वे बुरी तरह प्रभावित हुए थे और हमने उनकी मदद करने का बीड़ा उठाया है।”

शेल्टर प्रमोशन काउंसिल के 45 वर्षीय अध्यक्ष सायँतन मित्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “अम्फान के समय वहाँ रहने वाले समुदायों तक पहुँचना असँभव था क्योंकि यह चारों ओर से पानी से घिरा हुआ था; तब हमें बाँस के खँभों पर बने सामुदायिक हेल्थ शेल्टर बनाने का विचार आया।"

मित्रा ने कहा, “हमारा विचार लोगों और उनके जरुरी सामान के लिए एक सुरक्षित जगह तैयार करने में मदद करना है क्योंकि ज़्यादातर समय जब चक्रवात आता है, तो लोगों के पास सुरक्षित जगह नहीं होती है; हमने जो सस्टेनेबल शेल्टर डिजाइन किया है, वह उनकी मदद करेगा।''

दिघिर गाँगुली फाउंडेशन ट्रस्ट के स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर जलवायु अनुकूल संरचना पर काम करने के पीछे की वजह बताते हुए सौमेन गांगुली ने बताया, “मेरा बेटा कमज़ोर और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के साथ काम करना चाहता था; लेकिन 2014 में 22 साल की उम्र में एक दुर्घटना में उसकी मौत हो गई, 2015 में मैंने उसके नाम पर एक ट्रस्ट बनाने और गरीब समुदायों की मदद करने का फैसला किया और तभी दिघिर गाँगुली फाउंडेशन ट्रस्ट की नींव रखी गई।”

इनोवेशन के जरिए जलवायु अनुकूलन

सुंदरबन में इस प्रोजेक्ट को नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था ‘सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एँड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी’ (SEEDS) से समर्थन मिला है। इसने हाल ही में अपने 'इनोवेशन के जरिए जलवायु अनुकूलन' अभियान को आगे बढ़ाने के लिए 11 ज़मीनी स्तर के सँगठनों के साथ हाथ मिलाया है।

'फ्लिप द नोशन' नामक सीड्स ने नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में अपना काम दिखाया था। ‘वर्नाक्युलर आर्किटेक्चर एंड रेजिलिएंट स्ट्रक्चर्स’ इस परियोजना के तहत चुने गए 11 इनोवेटर्स में से एक है।

सीड्स के सह संस्थापक मनु गुप्ता ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पश्चिम बंगाल के तट पर आपदाओं के इतिहास पर सरसरी निगाह डालने पर बुलबुल, आइला, अम्फान और यास जैसे तूफान दिमाग में आते हैं; ये पश्चिम बँगाल में सुंदरबन क्षेत्र के समुदायों को प्रभावित कर रहे हैं, जहाँ तटीय कटाव का भी ख़तरा मँडरा रहा है।”

उन्होंने कहा, "डीजीएफटी (दिघिर गाँगुली फाउँडेशन ट्रस्ट) का हस्तक्षेप तटीय समुदायों में बाढ़, तेज़ हवाओं और बड़ी लहरों की वजह से जीवन और मवेशियों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए एक राह दिखाता है।"


सुँदरबन में बनाए जा रहे स्टॉर्म शेल्टर के बारे में बताते हुए गुप्ता ने कहा, “हमारे तज़ुर्बे ने हमें सिखाया है कि आपदा के समय इमारतें अगर जलवायु के अनुकूल नहीं है तो जोखिम का कारण बन सकती हैं; सुँदरबन के शेल्टर्स में बाँस का इस्तेमाल किया जा रहा है जो आपदा अनुकूल सामग्री के रूप में जानी जाती और व्यापक रूप से इसका इस्तेमाल भी किया जाता रहा है, सौभाग्य से यहाँ बाँस प्रचुर मात्रा में मिल जाता है।”

गुप्ता ने बताया, " निर्माण करते समय स्थानीय शैलियों के साथ वास्तुकला की पारंपरिक शैलियों में बाँस का इस्तेमाल किया जा रहा है; इसलिए ये इमारतें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हैं।"

एयूआर कँपनी के 37 वर्षीय आर्किटेक्ट शुभ्रोदीप रॉय ने गुप्ता की बात पर सहमति जताते हुए कहा, “बाँस सस्ता, मज़बूत और जलवायु के अनुकूल है; हम इन शेल्टर को बनाते समय कँक्रीट और सीमेंट के साथ बाँस का इस्तेमाल करते हैं, इन शेल्टर को दो भागों में विभाजित किया गया है, पहली मंजिल पर समान जाएगा और दूसरी मंजिल पर लगभग 80-100 ग्रामीण रहेंगे।”

उन्होंने समझाते हुए कहा, “हम बाँस का उपयोग करते हैं क्योंकि यह आपदा अनुकूल है और सस्ता भी है; यह चार परतों वाली प्रक्रिया है जिसमें पहली परत कंक्रीट की होती है, दूसरी बाँस की जाली की होती है, तीसरी चपटी बाँस की होती है और आखिरी में इसे सीमेंट के साथ मिलाकर इसके ठीक से जमने का इंतज़ार किया जाता है, इस शेल्टर का निर्माण लगभग 800-1000 बाँस से किया जा रहा है; इसके अलावा 500 बाँस की डंडियों से फर्श को समतल किया जाएगा।”

दिघिर पाठशाला

स्टॉर्म शेल्टर के अलावा संस्थापक ने अपने बेटे दिघिर के नाम पर 'दिघिर पाठशाला' नामक एक स्कूल भी शुरू किया है। इसका उद्घाटन इसी साल 17 दिसंबर को हुआ था।

स्कूल का निर्माण फरवरी 2023 में शुरू हुआ, यह एक कोचिंग सेंटर कम अनौपचारिक स्कूल है। यहाँ नर्सरी से लेकर चौथी क्लास तक के 96 बच्चों के लिए एक खुली लाइब्रेरी है। इस स्कूल में तीन कमरे हैं।

छात्र सुबह और शाम दो पालियों में पढ़ाई करते हैं। बच्चे औपचारिक स्कूल में भी जाते हैं। इन्हें पढ़ाने के लिए चार शिक्षक नियुक्त किए गए हैं।

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