जानिए कैसे बनता है पेठा और क्या है इसका ताजमहल से कनेक्शन

आगरा में बने पेठे को इसके मूल स्थान को प्रमाणित करने के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग दिया गया है। जिससे पेठे की पहचान न सिर्फ आगरा से हमेशा जुड़ी रहेगी बल्कि इसे बनाने वालों को उचित दाम भी मिलेगा।

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

पेठा तो आप सभी ने खाया होगा, लेकिन ये बनता कैसे है, और क्यों है आगरा का ही पेठा मशहूर आज हम आपको न सिर्फ बताएँगे बल्कि बनते हुए भी दिखाएँगे। और हाँ, ये भी बताएँगे कि पेठे का आख़िर ताज़महल से कनेक्शन क्या है?

आज बाज़ार में कई तरह के पेठा आपको दिख जाएँगे जो अलग अलग आकार और रंग में हैं। इनमें पान गिलोरी, गुझिया पेठा, लाल पेठा, शाही अंगूर और गुलाब लड्डू पेठा तो अब ख़ास मिठाई में जगह बना चुके हैं। लेकिन एक दिन में ही इसकी कई वैरायटी नहीं आई, समय के साथ पेठा की बढ़ती माँग को देखते हुए दूसरी मिठाइयों की तरह ही इसके कारीगरों ने पेठा में भी कई प्रयोग किए। जिसके बाद आज 15 तरह से ज़्यादा पेठा बनने लगे हैं।

पान गिलोरी को गुलकंद और कई मसालों से तैयार किया जाता है। इसकी कीमत 200 से 300 रुपये किलोग्राम है। लेकिन ये एक दो दिन से ज़्यादा नहीं रखा जा सकता है।


1958 के बाद जब पेठा में पिस्ता, काजू, बादाम का इस्तेमाल शुरू हुआ तो इसके आकार और रंग में भी बदलाव शुरू हुआ। साल 2000 में सैंडविच पेठा जैसे ही बनना शुरू हुआ, इसके कारीगरों ने पान गिलोरी भी तैयार कर दिया। हू ब हू पान की तरह दिखने वाला ये हरा हरा पेठा शादी या पार्टियों में तो खूब पसंद किया जाने लगा।

बस फिर क्या था इसके बाद पेठा की कई वैरायटी तैयार होने लगी। इनमें मुख्य हैं, सादा पेठा, अंगूरी पेठा, केसर पेठा, लाल पेठा, केसर अंगूरी पेठा, कोकोनट पेठा, चेरी खस पेठा, चेरी मैंगो पेठा, चेरी केवड़ा पेठा, चेरी केसर, कंचा पेठा, रसभरी पेठा, संतरा पेठा , चॉकलेट पेठा, गुझिया पेठा और गुलाब लड्डू पेठा मुख्य हैं। अब तो शुगर फ्री पेठा भी है।

आगरा में बने पेठे को इसके मूल स्थान को प्रमाणित करने के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग दिया गया है। जिससे पेठे की पहचान न सिर्फ आगरा से हमेशा जुड़ी रहेगी बल्कि इसे बनाने वालों को उचित दाम भी मिलेगा।


एक रिपोर्ट के मुताबिक आगरा में 1,500 से ज़्यादा पेठा इकाइयां हैं, जहाँ हर रोज 700 से 800 टन पेठा तैयार होता हैं।

आम तौर पर मिठाइयां खोया, छेना, मावा या बेसन से ही तैयार होती हैं लेकिन आज हम जिस पेठा मिठाई की बात कर रहे हैं वो एक फल से तैयार किया जाता है। जी हाँ, वो हैं कुम्हड़ा। वहीँ कुम्हड़ा जिसे कहीं कहीं कच्चा पेठा भी कहते हैं।

पेठा के बढ़ते कारोबार की वजह से करीब 150 दिन में तैयार होने वाली कुम्हड़े की फसल किसानों में काफी लोकप्रिय हो रही है। देश के कुछ राज्यों में इसे खबहा भी कहा जाता है। इसकी खेती उन्नाव, बरेली, इटावा, कानपुर देहात समेत कई जिलों में होती है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे भतुआ कोहड़ा, भूरा कद्दू, कुष्मान या कुष्मांड फल के नाम से भी जाना जाता है। ख़ास बात ये है कि कद्दू की इस प्रजाति की मार्केटिंग में किसानों को किसी तरह की परेशानी से नहीं जूझना पड़ता है, क्योंकि ज़्यादातर पेठा मिठाई के कारोबारी इस की तैयार फ़सल को खेतों से ही खरीद लेते हैं। पेठा बनाने में इस्तेमाल कुम्हड़ा की मांग आगरा, कानपुर और बरेली की मंडियों में बहुत ज़्यादा है।

पेठा बनने की शुरुआत कब और कहाँ से हुई इससे जुड़ी अलग-अलग कहानियाँ हैं।

ज़्यादातर रिपोर्ट और इतिहास के जानकर हालाँकि इसे शाहजहां से जोड़कर देखते हैं।

कहते हैं इस मिठाई के बनने की शुरुआत शाहजहाँ की रसोई से उस समय हुई जब उन्होंने एक ऐसी मिठाई बनाने को कहा जिसका रंग ताजमहल की तरह शुद्ध और सफ़ेद हो। बस फिर क्या था, जुट गए सभी खानसामे ऐसी मिठाई बनाने में, और कड़ी मशक्कत के बाद तैयार हुआ सफ़ेद पेठा।

आगरा के बुजुर्ग़ तो एक और किस्सा सुनाते हैं। वे बताते हैं की मुमताज़ महल खुद कभी कभी इसे बनाकर शाहजहाँ को खिलाती थीं।

एक कहानी ये भी है कि 1631 और 1648 के बीच जब आगरा में ताज़ महल बन रहा था तब उसके मज़दूरों को हाड़तोड़ मेहनत के बाद हर रोज़ कुछ मीठा देने के लिए एक ऐसी मिठाई तैयार की गई जो सस्ती और आसान हो।


चलिए कहानी के बाद अब आपको बताते हैं आख़िर आगरा का ये मशहूर पेठा बनता कैसे है?

"इसे बनाने के लिए सबसे पहले ठीक से हम कुम्हड़े को धोते हैं जिससे बाहरी गंदगी बिल्कुल साफ़ हो सके। इसके बाद पेठा बनाने के लिए इसके फल को चार टुकड़ों में काटकर बीच का हिस्सा निकाल दिया जाता है। बाकि बचे हिस्से को नुकीले औजार से गोंदा जाता है, "पेठा मिठाई के कारीगर रवींद्र सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया।

वे बताते हैं कि इसे बनाने में कच्चे पेठा का सिर्फ 40 प्रतिशत हिस्सा की इस्तेमाल में लिया जाता है, बाकी 60 फीसदी बेकार हो जाता है।

पेठा बनाने के लिए इस फल को चार टुकड़ों में काटकर बीच का हिस्सा निकाल दिया जाता है। बाकि बचे हिस्से को नुकीले औजार से गोंदा जाता है।

पेठा मिठाई बनाने में कच्चे पेठा का सिर्फ 40 प्रतिशत हिस्सा की इस्तेमाल में लिया जाता है, बाकी 60 प्रतिशत बेकार हो जाता है। 100 किलो पेठा मिठाई बनाने में 150 से 200 किलो कच्चे पेठा की जरूरत पड़ती है ।

इसके बाद साँचों की मदद से अलग- अलग तरह के आकार दिए जाते हैं।

फि‍र बारी आती है चूने के पानी में करीब एक घंटे तक रखने की। ऐसा इसलिए लिए किया जाता है ताकि पेठा उबलने के बाद भी कड़ा रहे।


"चूने के पानी से निकालने के बाद इसे उबाला जाता है। उबलते पानी में थोड़ी फिटकरी डाल देते हैं, ताकि चूना पूरी तरह साफ़ हो जाए, अच्छी तरह पानी से धोने के बाद फिर चीनी की चाशनी में घोलकर उबालते हैं। सूखा पेठा बनाने के लिए इसे सुखा लिया जाता है और गीला बनाने के लिए चाशनी को रहने दिया जाता है।" रवींद्र सिंह समझाते हुए कहते हैं।

अच्छी तरह पानी से धोने के बाद चीनी की चाशनी में घोलकर फिर से उबाल लिया जाता है।

सूखा पेठा बनाने के लिए इसे सुखा लिया जाता है और गीला बनाने के लिए चाशनी को रहने दिया जाता है।

सादा पेठा बनाने में करीब 20 से 25 रुपये प्रति किलोग्राम की लागत आती है।

पेठा भले आगरा का मशहूर हो, अब ये आसपास के दूसरे शहरों में भी बनने लगा है। इसकी बड़ी वजह है ताजमहल को प्रदूषण से बचाने की कवायद। कोयला बंद करने से करीब 85 प्रतिशत पेठा इकाइयां बंद हो गई या पास के दूसरे शहरों में चली गईं।

पेठे से निकलने वाला कचरा भी बड़ी समस्या है। अक्सर ये शिकायत आती रही है कि इसके कचरे को सार्वजनिक जगहों पर फेंक दिया जाता है, जिससे हैजा, मलेरिया, डेंगू और डायरिया जैसी बीमारियों के फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है। जिसे देखते हुए आगरा प्रशासन को कड़े कदम उठाने पड़े।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक आगरा का नूरी दरवाजा जहाँ 2013 से पहले 500 से अधिक पेठा बनाने की इकाइयां थीं वो आधे से अधिक बंद हो चुकी हैं। सीएसई के मुताबिक, वर्तमान में यहां करीब 70 इकाइयां ही बचीं हैं।

राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक संगठित क्षेत्र की तुलना में असंगठित क्षेत्र में 10 गुना अधिक पेठा इकाइयाँ हैं।

petha #Agra #Tajmahal 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.