कुम्हड़ा किसानों को इस वजह से मालामाल करता है आगरा का पेठा

मिठाई बाज़ार में आगरे का पारंपरिक पेठा अब लड्डू और बर्फी को टक्कर दे रहा है। ऐसे में पेठे की बढ़ती माँग से कुम्हड़ा की ख़ेती किसानों के लिए अच्छा विकल्प है। पारंपरिक फ़सलों से मुँह मोड़ चुके कई किसान इसकी ख़ेती पर अब ज़ोर दे रहे हैं। कितना आसान है इसकी ख़ेती और कैसे बनती है पेठे की मिठाई जानिए यहाँ।

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कुम्हड़ा किसानों को इस वजह से मालामाल करता है आगरा का पेठा

आगरा का पेठा, जी हाँ नाम लेते ही इसकी मिठास दिमाग में ख़ुद ब ख़ुद ताज़ा हो जाती है।

आगरा में बने पेठे को इसके मूल स्थान को प्रमाणित करने के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग दिया गया है। जिससे पेठे की पहचान न सिर्फ आगरा से हमेशा जुड़ी रहेगी बल्कि इसे बनाने वालों को उचित दाम भी मिलेगा

आज 15 तरह के पेठे देश भर में बनाये जा रहे हैं, लेकिन सबका फल तो है कुम्हड़ा ही।

जी हाँ, वही कुम्हड़ा जिसे बरसात से चंद रोज पहले किसान भाई खेतों में बोते हैं। 100 रुपए के बीज़ से 3 बीघे में कुम्हड़ा बोया जा सकता है।


बस ध्यान इस बात का रखना होता है कि समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहें और खाद डालते रहें।

कुम्हड़े के लिए बलुई मिट्टी बेहतर मानी जाती है फिर भी जिन ख़ेतों में पानी नहीं रुकता हो वहाँ इसकी ख़ेती बड़े आराम से की जा सकती है। जून के आखिर में या जुलाई की शुरूआत में इसके लिए खेत को अच्छी तरह तैयार कर लें, फिर गोबर की खाद के एक लाइन में छोटे-छोटे ढ़ेर लगा दें और इन्हीं ढेरों पर 5 से 10 बीज़ तक गाड़ सकते हैं।

खरपतवार होने पर उसकी निराई करते रहें। फूल आने के समय खाद का हल्का छिड़काव कर दें। रोग के लक्षण अगर दिखाई दें भी तो जानकर की सलाह से दवा का छिड़काव कर दें। इसे छुट्टा पशु नहीं खाते हैं, इसलिए ज़्यादा फ़िक्र की ज़रूरत नहीं है।

पेठा के बढ़ते कारोबार की वजह से सिर्फ 120 से 150 दिन में तैयार होने वाली कुम्हड़े की फ़सल जिसे खबहा भी कहा जाता है, किसानों में काफी लोकप्रिय हो रही है। उन्नाव, बरेली, इटावा, कानपुर देहात के किसानों की बदौलत ही तो पेठा मिठाई का कारोबार चल रहा है।

ऐसे बनता है पेठा

आगरा से करीब 336 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, में गाँव कनेक्शन की टीम जब पेठा मिठाई बनाने के एक कारख़ाने पहुँची तो वहाँ कुम्हड़े को धोने की तैयारी चल रही थी।

इस कारखाने में दिनभर 100 किलो से ज़्यादा पेठा बनकर तैयार होता है।

"इसे बनाने के लिए सबसे पहले ठीक से हम कुम्हड़े को धोते हैं जिससे बाहरी गंदगी बिल्कुल साफ़ हो सके। इसके बाद पेठा बनाने के लिए इसके फल को चार टुकड़ों में काटकर बीच का हिस्सा निकाल दिया जाता है। बाकि बचे हिस्से को नुकीले औजार से गोंदा जाता है, "लखनऊ में पेठा मिठाई के कारीगर रवींद्र सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया।


वे बताते हैं कि इसे बनाने में कच्चे पेठा का सिर्फ 40 प्रतिशत हिस्सा की इस्तेमाल में लिया जाता है, बाकी 60 फीसदी बेकार हो जाता है।

"करीब 100 किलो पेठा मिठाई बनाने में 150 से 200 किलो कच्चे पेठे (कुम्हड़े) की ज़रूरत पड़ती है।" रवींद्र कहते हैं।

पेठा को गोदने के बाद साँचों की मदद से अलग- अलग तरह के आकार दिए जाते हैं। फि‍र बारी आती है चूने के पानी में करीब एक घंटे तक रखने की। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि पेठा उबलने के बाद भी कड़ा रहे।

"चूने के पानी से निकालने के बाद इसे उबाला जाता है। उबलते पानी में थोड़ी फिटकरी डाल देते हैं, ताकि चूना पूरी तरह साफ़ हो जाए, अच्छी तरह पानी से धोने के बाद फिर चीनी की चाशनी में घोलकर उबालते हैं। सूखा पेठा बनाने के लिए इसे सुखा लिया जाता है और गीला बनाने के लिए चाशनी को रहने दिया जाता है।" रवींद्र सिंह समझाते हुए कहते हैं।

सादा पेठा बनाने में करीब 20 से 25 रुपये प्रति किलोग्राम की लागत आती है।

मिठाई बाज़ार में इस पारम्परिक पेठे की माँग बनी रहने के पीछे वजह है। आगरा पेठा का कारखाना चलाने वाले देवकी नंदन कहते हैं, "इसमें कोई मिलावट नहीं होती है, कोई कर भी नहीं सकता है, इसीलिए व्रत में भी लोग इसे खाते हैं, नवरात्र में खूब माँग होती है आगरा पेठे की।"


इस पेठा मिठाई को बनाने की शुरुआत हुई कैसे, और कहाँ हुई इससे जुड़ी अलग -अलग कहानियाँ हैं। ज़्यादातर रिपोर्ट और जानकर हालाँकि इसे शाहजहां से जोड़कर देखते हैं।

कहते हैं इस मिठाई को सबसे पहले शाहजहां की रसोई में ईजाद किया गया। हुआ यूँ कि शाहजहां ने एक ऐसी मिठाई बनाने को कहा जिसका रंग ताजमहल की तरह शुद्ध और सफ़ेद हो। बस फिर क्या था, जुट गए सभी खानसामे ऐसी मिठाई बनाने में, और कड़ी मशक्कत के बाद तैयार हुआ सफ़ेद पेठा।

आगरा के बुजुर्ग़ तो एक और किस्सा सुनाते हैं। वे बताते हैं की मुमताज़ महल खुद कभी कभी इसे बनाकर शाहजहाँ को खिलाती थीं।

एक कहानी ये भी है कि 1631 और 1648 के बीच जब आगरा में ताज़ महल बन रहा था तब उसके मज़दूरों को हाड़तोड़ मेहनत के बाद हर रोज़ कुछ मीठा देने के लिए एक ऐसी मिठाई तैयार की गई जो सस्ती और आसान हो।

आजकल बाज़ार में पान के शौकीन लोगों के लिए पान पेठा भी मिलने लगा है। जिसे गुलकंद और कई मसालों से तैयार किया जाता है। इसकी कीमत 200 से 300 रुपये किलोग्राम है। लेकिन ये एक दो दिन से ज़्यादा नहीं रखा जा सकता है। शादी या पार्टी में इसकी काफ़ी डिमांड रहती है।

आगरा से निकल कर आसपास के शहरों में पेठा कारोबार के फैलने की बड़ी वजह है ताजमहल को प्रदूषण से बचाने की कवायद। कोयला बंद करने से करीब 85 प्रतिशत पेठा इकाइयां आगरा में बंद हो गईं या पास के दूसरे शहरों में चली गईं।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक आगरा का नूरी दरवाजा जहाँ 2013 से पहले 500 से अधिक पेठा बनाने की इकाइयां थीं वो आधे से अधिक बंद हो चुकी हैं। सीएसई के मुताबिक, अभी वहाँ करीब 70 इकाइयां ही बचीं हैं।

पेठा मिठाई अब कई आकार में है। साल 2000 में सैंडविच पेठा शुरू हुआ तो उसके बाद पान गिलोरी, गुझिया पेठा ,लाल पेठा, शाही अंगूर और गुलाब लड्डू पेठा जैसे कई नाम और आकार वाले पेठा आ गए, लेकिन सभी में मिठास वही है, जिसे ताज़ महल के दीदार के बाद कोई भी लेना नहीं भूलता है, 'आगरे का पेठा'।

KisaanConnection 

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