बासमती किसानों पर संकट के बादल, घटकर आधा हो सकता है मुनाफा

यूरोपियन संघ ने आयात किए जाने वाले बासमती में मिलने वाले फंगेसाइड केमिकल (ट्राइसाइक्लोजाल) की मात्रा 1 पीपीएम से घटाकर 0.01 पीपीएम कर दिया था और अब सऊदी अरब भी ऐसा करने जा रहा है

Mithilesh DharMithilesh Dhar   7 Aug 2018 12:37 PM GMT

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बासमती किसानों पर संकट के बादल, घटकर आधा हो सकता है मुनाफा

इस साल मानसून में खूब बारिश हो रही है। इस बारिश को धान के लिए वरदान लिए कहा जाता है। किसानों के चेहरे पर रौनक भी है। लेकिन चावल की सबसे बेहतरीन प्रजाति यानी बासमती पैदा करने वाले किसानों के लिए ये खबर निराश करने वाली हो सकती है। अच्छे मुनाफे की बाट जोह रहे इन किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। खतरनाक रसायनों के अत्यधिक प्रयोग के कारण यूरोपियन संघ के बाद अब सऊदी अरब ने भी भारत से आयात होने वाले बासमती चावल पर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है।

कुछ महीने पहले यूरोपीय संघ ने बासमती चावल में फंफूदीनाशक ट्रासाइक्लाजोल के लिए अवशेष सीमा कम कर 0.01 एमजी (मिलीग्राम) प्रति किलो निर्धारित किया था वहीं अब सऊदी फूड एंड ड्रग अथॉरिटी (SAUDA) ने नई गाइडलाइंस के तहत बासमती धान में कीटनाशकों के प्रयोग को 90 फीसदी तक कम करने को कहा है।

बाजार में अभी नई फसल नहीं आई है बावजूद इसके इसका असर दिखने लगा है। कृषि और प्रंसस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के ताजा आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान बासमती चावल के निर्यात में सात फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई है। बासमती धान की फसल अगले दो से तीन महीने में पककर तैयार हो जाएगी।


भारत पिछले पांच वर्षां से विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है, लेकिन निर्धारित अवशेष सीमा (एमआरएल) से अधिक कीटनाशकों के अवशेषों के पाए जाने के कारण पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका, यूरोप और ईरान जैसे बाजारों में निर्यातकों की परेशानी बढ़ गई है। यूरोप की तरह सऊदी अरब ने भी कीटनाशकों के प्रयोग के लिए नई गाइडलाइन जारी कर दी है जिसके बाद से भारतीय ट्रेडिंग कंपनियों पर संकट आ गया है। यूरोपियन संघ ने आयात किए जाने वाले बासमती में मिलने वाले फंगेसाइड केमिकल (ट्राइसाइक्लोजाल) की मात्रा 1 पीपीएम से घटाकर 0.01 पीपीएम कर दिया था और अब सउदी अरब भी ऐसा करने जा रहा है।

हरियाणा के कैथल चावल मंडी के बड़े करोबारी और हनुमान राइस एंड जनरल मिल्स के प्रमुख रामकरण गोयल ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया "बासमती चावल में निर्यात सौदे कम होने के कारण धान की मांग कम हो गई है। जैसी खबरें आ रही हैं, उसके अनुसार तो आने वाले समय में मांग और घट सकती है।

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यदि यह रोक जारी रहती है तो बासमती से प्रति क्विंटल औसतन 3500 रुपए तक कमाने वाले किसान को इसका आधा दाम भी मिलना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि इस धान का भाव निर्यात पर निर्भर करता है। इस रोक के बाद अब यूरोप में पाकिस्तान के चावल की दखल बढ़ सकती है। भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। विश्व की 70 प्रतिशत बासमती चावल की उपज भारत में ही होती है। भारत के बाद पाकिस्तान का नंबर आता है। भारतीय चावल पर यदि रोक लगती है तो सीधा लाभ पाकिस्तान को मिलेगा। 2015-16 में भारत ने 22,727 करोड़ रुपए के 40.05 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया जिसमें से 1,930 करोड़ रुपए (तीन अरब डॉलर) के 3.8 लाख टन यूरोपीय संघ के देशों में गया।

बासमती चावल के बड़े किसान अमृतसर के हरवंश सिंह कहते हैं "हमें दवाओं के बारे में सही जानकारी ही नहीं है। यूरोपिय संघ के रोक के बाद सऊदी का ये फैसला हम जैसे किसानों के लिए बहुत परेशानी खड़ी करे वाला है। दाम सही नहीं मिला तो हमारे यहां के किसानों को किसी और फसल की ओर ध्यान देना पड़ेगा।

एक्सपोर्ट में बड़ी गिरावट

भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। दुनिया की कुल बासमती की पैदावार का 70 प्रतिशत हिस्सा भारत व पाकिस्तान में पैदा होता है। भारत से लगभग 40 लाख टन बासमती चावल निर्यात होता है जबकि देश में 20 लाख टन चावल की खपत है। लेकिन जहरीले कीटनाशकों के प्रयोग के कारण निर्यात में लगातार कमी दर्ज की जा रही है। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून के दौरान बासमती चावल के निर्यात में मात्रा के हिसाब से 7 फीसदी की गिरावट आई है।

एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तीन महीनों में बासमती चावल का निर्यात घटकर 11.69 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 12.58 लाख टन का हुआ था। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष 2018-19 के अप्रैल से जून के दौरान बासमती चावल का निर्यात 8,585 करोड़ रुपए का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की सामान अवधि में इसका निर्यात 8,181 करोड़ रुपए का ही हुआ था।

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बासमती चावल बेचने वाले देश के बड़े बासमती चावल निर्यातकों में शुमार कोहिनूर फूड्स के संयुक्त प्रबंध निदेशक गुरनाम अरोड़ा ने गाँव कनेक्शन को बताया "निर्यात में कमी आ रही है। हम किसानों को कीटनाशकों के बारे में जानकारी भी दे रहे हैं। ये उनके हित में ही है। नई फसल आने में अभी समय है। ऐसे में हम लगातार यूरोपीय संघ और सऊदी अरब के अधिकारियों से बात कर रहे हैं। हो सकता है कि आने वाले समय में समस्या का समाधान भी हो जाए। लेकिन अब समय आ गया है कि किसान मानकों के अनुसार ही कीटनाशकों का प्रयोग करें, वरना नुकसान बढ़ता ही जाएगा लेकिन अब चीन भी भारतीय बासमती चावल भारत से आयात करने जा रहा है, ऐसे में स्थिति में थोड़ा सुधार हो सकता है।"


ऐसे में किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अगर पेस्टीसाइड का प्रयोग कम कर देंगे तो पैदावार घट सकती है। ऐसे में उनके पास विकल्प कम बचते हैं। इस बारे में गुरनाम अरोड़ा ने कहा कि हम किसानों को कुछ मुआवजा भी देने की बात कर रहे हैं, ताकि उनके घाटे को कम किया जा सके।

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ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (एआईआरईए) के अध्यक्ष विजय सेतिया कहते हैं " हर साल 40 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल भारत से निर्यात किया जाता है (2,2000 करोड़ रुपए विदेशी मुद्रा की राशि), कुल पूसा बासमती के 10 लाख टन चावल के उत्पादन में से 3.50 लाख मीट्रिक टन चावल अकेले यूरोपीय संघ के देशों में निर्यात किया जाता है जो कि धान के किसानों से 20 लाख टन प्राप्त होता है, यह 15-17 लाख से अधिक किसानों की आजीविका और आय को सीधे प्रभावित करेगा।"

वहीं महारानी राइस के कार्यकारी निदेशक राजीव सेतिया कहते हैं "हम पंजाब और हरियाणा में बासमती किसानों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। उन्हें सही जानकारी ही नहीं है। जिस कारण मनमानी रूप से कीटनाशकों का छिड़काव कर रहे हैं। हमने सरकार से अपील भी की है कि किसानों को एक सीमित मात्रा में ही कीटनाशक दिए जाए ताकि इसके दुष्प्रभाव को रोका जा सके। हम जम्मू के किसानों से बात कर रहे हैं जो कीटनाशकों का प्रयोग कम करते हैं।" जम्मू में लगभग दो लाख टन बासमती चावल की पैदावार होती है लेकिन यूरोप और सऊदी के लिए 10 लाख टन से ज्यादा की जरूरत होती है।


       

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